तब मैं छह सात साल का था। मेरी दादी प्यार से मुझे अपने पास बिठाती, खाना खिलाती। कभी-कभी मुझे कहतीं, ‘देख तेरी दुल्हनिया आएगी तो मैं उसे अपने कड़े दे दूंगी, अपनी सोने की माला दे दूंगी। मैं सुनता और खुश होता, फिर पूछता वो जो भी मांगेगी आप दे दोगी। दादी भी कहती हां-हां, वो मांगे तो मैं कुछ भी दे दूंगी। एक बार मेरे घर मेरे स्कूल के दोस्त आए। उनमें एक लड़की भी थी, जो मुझे बहुत अच्छी लगती थी। उसको मैं दादी के पास ले गया और बोला, ‘दादी, इसे अपने कड़े, अपनी सोने की चेन दे दो। यही है मेरी दुल्हनिया। यह सुन वो लड़की बेचारी रोने लगी और घर के बाकी लोग हंसने लगे। आज भी इतने साल बाद मैं यह बात याद करके हंस लेता हूं।
