विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन में कहा गया है कि 53 प्रतिशत भारतीय बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक लेते हैं और अगर सर्दी जुकाम जैसी मामूली बीमारी में डॉक्टर एंटीबायोटिक नहीं लिखते तो 48 प्रतिशत लोग डॉक्टर बदलने की सोचने लगते हैं। यही नहीं, 25 प्रतिशत डॉक्टर बच्चों के बुखार में भी एंटीबायोटिक लिखते हैं। 

देश के 52 प्रतिशत डॉक्टर मानते हैं कि सेहत बेहतर महसूस होते ही एंटीबायोटिक लेना नहीं छोडऩा चाहिए। एंटीबायोटिक दवाओं के लगातार सेवन से बैक्टीरिया इतने ताकतवर हो जाते हैं कि उन पर दवाओं का असर कम होता है। इसके अलावा ज्यादा एंटीबायोटिक खाने से डायरिया, कमजोरी, मुंह का संक्रमण, पाचन तंत्र में कमजोरी और योनि संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ-साथ किडनी में स्टोन, खून का थक्का बनने, सुनाई न पडऩे जैसी शिकायतें भी बढ़ रही हैं।

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आंकड़े बताते हैं कि भारत के दवा बाजार में एंटीबायोटिक्स की हिस्सेदारी 43 प्रतिशत है। ‘एंटीबायोटिक शब्द दो ग्रीक शब्दों, ‘एंटी और ‘बायोस से मिल कर बना है। ‘एंटी का अर्थ विरोध या खिलाफ और ‘बायोस का अर्थ जीवन होता है। इस तरह एंटीबायोटिक का मतलब है जीवन के खिलाफ यानी एक ऐसा यौगिक, जो बैक्टीरिया को मार देता है या उसके विकास को रोकता है।

एंटीबायोटिक बीमारी न फैलने देनेवाले यौगिकों का एक समूह होता है, जिसका उपयोग बैक्टीरिया, फफूंदी, परजीवी से हुए संक्रमण को रोकने के लिए किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक दवा को यदि बार-बार इस्तेमाल किया जाता है तो शरीर में मौजूद बैक्टीरिया धीरे-धीरे उस दवा के प्रति रजिस्टेंस डेवलप कर लेता है, यानी उस बैक्टीरिया पर दवा का कोई असर नहीं होता है। वह अपने ऊपर एक सुरक्षा कवच बना लेता है, जिससे दवा वहां तक पहुंच नहीं पाती और निष्प्रभावी हो जाती है। डर है कि अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो हम पेनिसिलिन की खोज से पहले के दौर में पहुंच जाएंगे जब सामान्य संक्रमण से ही लोग मर जाते थे। 

एंटीबायोटिक्स दवाएं आमतौर पर इंफेक्शन व कई गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। अगर एंटीबायोटिक्स का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया, तो लाभ की जगह ये नुकसान पहुंचा सकती है। अगर आप जान लें कि एंटीबायोटिक्स कब इस्तेमाल करनी चाहिए और कब नहीं, तो आप खुद को व अपने परिवार को इसके खतरे से बचा सकते हैं। जान लें कि एंटीबायोटिक्स इफेक्टिव जरूर है, लेकिन हर बीमारी का इलाज नहीं। आपका यह जानना भी जरूरी है कि एंटीबायोटिक्स सिर्फ बैक्टीरियल इंफेक्शन से होनेवाली बीमारियों के लिए असरकारी है। वायरल बीमारियों, जैसे- सर्दी ज़ुकाम, फ्लू, ब्रॉन्काइटिस, गले में इंफेक्शन आदि में इसका कोई फायदा नहीं होता।

ज्यादातर वायरल बीमारियां अपने आप ठीक हो जाती हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता वायरल बीमारियों से खुद ही निपटती है इसलिए बजाय ज्यादा दवाएं खाने के, अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की कोशिश करें। 

एंटीबायोटिक्स लेने से सभी बैक्टीरिया नहीं मरते और जो बच जाते हैं, वे और ज्यादा ताकतवर हो जाते हैं। इन बैक्टीरियाज़ को फिर उस एंटीबायोटिक्स से मारना असंभव हो जाता है। इन्हें एंटीबायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरिया कहते हैं। ये एंटीबायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरिया ज़्यादा लंबी और गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं और इन बीमारियों से लडऩे के लिए ज़्यादा स्ट्रॉन्ग एंटीबायोटिक्स की जरूरत होती है, जिनके साइड इफेक्ट्स और भी ज्यादा होते हैं। ये एंटीबायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरिया बहुत तेजी से फैलते हैं और परिवार के बच्चे और साथ काम करने वालों को शिकार बनाते हैं।

एंटीबायोटिक्स दवाएं अनहैल्दी के साथ-साथ हैल्दी बैक्टीरिया को भी मार देती हैं। हां, बैक्टीरियल इंफेक्शन से होनेवाली हेल्थ प्रॉब्लम्स में कई बार एंटीबायोटिक्स लेना जरूरी हो जाता है। ऐसे में दरकार है कि समय रहते चेत जाए और एंटीबायोटिक्स तभी लें, जब जरूरी हो और जब डॉक्टर ने प्रिस्क्राइब किया हो ताकि आपके शरीर पर इन दवाओं का रजिस्टेंस न विकसित हो पाए और जरूरत होने पर एंटीबायोटिक दवाएं अपना सही असर दिखा सकें।

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