पूरी दुनिया में 21 सितम्बर का दिन ‘अल्जाइमर दिवसÓ के रूप में मनाया जाता है। अल्जाइमर रोग एक मानसिक विकार है, जिसके कारण मरीज की याद्दाश्त कमजोर हो जाती है और इसका असर दिमाग के कार्यों पर पड़ता है। आमतौर पर यह मध्यम उम्र या वृद्धावस्था में दिमाग के टिशू को  नुकसान पहुंचने के कारण होता है। यह डीमेंशिया का सबसे आम प्रकार है, जिसका असर व्यक्ति की याद्दाश्त, सोचने की क्षमता और रोजमर्रा की गतिविधियों पर पड़ता है।अल्जाइमर रोग को सामान्य तरीके से डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, अल्जाइमर रोग मानसिक प्रक्रियाओं का स्थायी विकार है जो स्मृति क्षति, अवसाद और व्यक्तित्त्व में बदलाव के कारण होता है। आमतौर पर यह समस्या समय के साथ-साथ गंभीर होती चली जाती है और स्थिति बिगड़ जाती है। इस वजह से व्यक्ति दैनिक कार्यों को करने में असमर्थ हो जाता है।

क्यों होता है अल्जाइमर? 

इस बीमारी का नाम अलोइस अल्जाइमर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इस बीमारी के बारे में बताया। अल्जाइमर रोग से पीडि़त मरीजों की संख्या में आज तीव्र गति से वृद्घि हुई है। 
इसके कारणों में अनियमित जीवनशैली भी एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी में दिमाग की कोशिकाएं अपने आप बनने लगती हैं और अपने आप ही खत्म भी होने लगती हैं। इसे ‘भूलने की बीमारीÓ 
भी कहा जा सकता है।
हल्का अल्जाइमर- यह अल्जाइमर रोग का प्रारंभिक चरण है। व्यक्ति इसके प्रारंभिक चरण में ज्ञान-संबंधी सभी चीजों को याद रखने में असमर्थ हो जाता है, व्यक्ति अपनी दिनचर्या में कई सरल 
कार्यों को करने में कठिनाई महसूस करता है, जैसे बिलों का भुगतान करना, कठिन कार्यों को करना आदि। हालांकि, व्यक्ति कार्यशील रहता है लेकिन उसे इन कार्यों को करने में अधिक समय लग 
जाता है।
मध्यम अल्जाइमर- इस चरण में व्यक्ति की याददाश्त में कमी आने लगती है और उसकी निर्भरता दूसरे व्यक्तियों पर बढ़ जाती है। इसमें सबसे ज्यादा मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान 
पहुंचता है। रोग के इस दूसरे चरण में लोग अपने आप पर काबू नहीं रख पाते हैं और वे अपने नियमित कार्यों को करने में असमर्थ रहते हैं।
गंभीर अल्जाइमर- अल्जाइमर के इस अंतिम चरण के दौरान, पट्टिकाओं और गांठों के फैलने के कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं। जो लोग इस स्थिति तक पहुंच जाते हैं वे आम तौर पर 
बिस्तर पकड़ लेते हैं और बातचीत करने में असमर्थता महसूस करने लगते हैं। इस स्थिति में रोगी के ठीक होने की संभावना बहुत कम रहती है।

कैसे रखें ख्याल?

रोगियों की निरंतर डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए। ताकि उनके व्यवहार में परिवर्तन को समझा जा सके।इस अवस्था में रोगियों को उनके दैनिक कार्यों का संचालन करने के लिए मदद,प्यार और देखभाल की बहुत जरूरत होती है। 
अल्जाइमर से पीडि़त व्यक्ति के साथ मित्रता, दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए।
रोगियों को सक्रिय रखने के लिए उन्हें कुछ शारीरिक व्यायाम कराना चाहिए।
रोगियों से हमेशा बातचीत करते रहना चाहिए ताकि वे प्रतिदिन के अपने कार्यों का सम्पन्न कर सकें और पूर्व के अपने कार्यों को याद रख सकें।

कैसे करें बचाव?

अल्जाइमर से बचाव के लिए दिमाग की एक्सरसाइज को कारगर माना गया है। शोध में ऐसा पाया गया है कि दिमागी कसरत करने वालों को अल्जाइमर होने का कम खतरा रहता है।

मानसिक व्यायाम करें

मस्तिष्क को मजबूत बनाने के लिए मानसिक व्यायाम करना चाहिए। इसके लिए कोई नयी भाषा सीखी जा सकती है और ब्रेन गेम जैसे क्रॉस वर्ड और सुडोकू खेला जा सकता है। शतरंज जैसे 
चुनौतीपूर्ण खेल खेलने से भी मेन्टल एक्सरसाइज होती है।

झपकी लेना फायदेमंद

दिन में झपकी लेना आपके मस्तिष्क के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। अगर आप दिन के समय झपकी लेंगे तो अल्जाइमर के खतरे से दूर रहेंगे। यह बात वैज्ञानिक शोध में भी साबित हो चुकी है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक टीम ने अपने शोध में पाया कि दिन भर जागने वाले छात्रों की सीखने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है, जबकि उन छात्रों की सीखने की क्षमता में वृद्धि होती है जो दिन में एक बार झपकी ले लेते हैं।

पढ़ाई-लिखाई करें

दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए ये जरूरी है कि दिमाग को नियमित रूप से काम में लिया जाये। खान-पान में बदलावअगर आप 40 पार कर गए हैं तो आपको अपने भोजन में बादाम, जौ, टमाटर, मछली आदि को नियमित रूप से शामिल करना चाहिए। इससे मस्तिष्क की कोशिकाएं स्वस्थ रहती हैं।