Adenoid Problem in Kids: सर्दियों के बाद भारत में जैसे ही गर्मी का सीजन शुरू होता है, बच्चों को रेस्पिरेटरी सिस्टम से जुड़ी समस्याएं मां-बाप के लिए चुनौती बन जाती हैं. खासकर, एडेनॉयड से जुड़ी दिक्कतें काफी बच्चों में देखने को मिलती हैं.
सीके बिरला हॉस्पिटल गुरुग्राम में एलर्जी के कंसल्टेंट एंड ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर विजय वर्मा ने बदलते मौसम में बच्चों से जुड़ी हेल्थ समस्याओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी है. एडेनोइड्स नाक के पीछे टिशू के छोटे पैच होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को फंसाकर इम्यून सिस्टम पर असर डालते हैं. हालांकि, जब ये टिशू सूजे हुए या बढ़े हुए होते हैं, तो वे नाक रास्ते को बाधित कर सकते हैं, जिससे मुंह से सांस लेने या सांस लेने में कठिनाई होती है, खर्राटे आते हैं, बार-बार साइनस इंफेक्शन होता है, यहां तक कि स्लीप एपनिया की भी समस्या हो जाती है. जिन बच्चों में इम्यून सिस्टम डेवलप हो रहा होता है, उनमें एडेनॉइड की समस्या उनकी सेहत पर काफी असर डालती है.
भारत में कई तरह के मौसम होते हैं- तेज गर्मी होती है, बारिश-मानसून, कड़कड़ाती ठंड, ये बदलते मौसम एडेनॉइड की समस्या से जूझने वाले बच्चों के लिए मुश्किल खड़ी करते हैं. गर्म और ह्यूमिड वाले महीनों में एडेनॉइड की दिक्कत ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि धूल और प्रदूषण बढ़ जाता है. इससे नाक से सांस में रुकावटें आने लगती हैं, लगातार खांसी होती है और गले में परेशानी होने लगती है जिससे बच्चे ठीक से सांस नहीं ले पाते हैं.
वहीं, मॉनसून के साथ ही कुछ चुनौतियों भी आती हैं. ज्यादा ह्यूमिडिटी, हवा में मौजूद मोल्ड और फंगल बीजाणुओं के चलते एडेनॉइड से संबंधित दिक्कतें बढ़ने का खतरा रहता है, जिससे बार-बार साइनस इंफेक्शन भी हो सकता है और सांस लेने में कठिनाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, बच्चों को अक्सर इस मौसम के दौरान वायरल इंफेक्शन होने का खतरा होता है, जिससे उनकी रेस्पिरेटरी हेल्थ पर असर पड़ता है.
मॉनसून के बाद जब सर्दियां शुरू होती हैं तो नए तरह के चैलेंज पेश आते हैं. ठंडी और सूखी हवा एडेनॉइड टिशू को और खराब कर देती है, जिससे नाक में रुकावटें ज्यादा हो जाती हैं और गले में भी परेशानी होने लगती है. इसके अलावा सर्दी से बचने के लिए घरों के अंदर जो हीटर वगैराह इस्तेमाल किए जाते हैं उससे ह्यूमिडिटी का लेवल कम हो जाता है, सांस की दिक्कतें बढ़ती हैं और बच्चों को इंफेक्शन होने का रिस्क ज्यादा हो जाता है.
बच्चों की एडेनॉइड समस्या को ठीक करने के लिए कई तरह की अप्रोच अपनानी पड़ती है, खासकर बदलते मौसम के असर का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है, सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. इंडोर एयर क्वालिटी यानी घर के अंदर एयर क्वालिटी को दुरुस्त रखना पड़ता है, लगातार हाथों का धुलना और इम्यून सिस्टम को मेंटेन रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीने की जरूरत होती है. अगर बच्चे में एडेनॉइड के लक्षण पनपते हुए दिखाई दें, तो मां-बाप को भी इस पर सतर्क रहने की जरूरत है और जल्दी से डॉक्टर को दिखाने की जरूरत होती है.
एडेनॉइड से संबंधित लक्षण
जिन मामलों में एडेनॉइड से संबंधित लक्षण जैसे नाक की रुकावट, खर्राटे, लगातार मुंह से सांस लेने जैसी परेशानियां हों तो ईएनटी स्पेशलिस्ट को दिखाना चाहिए. फिजिकल एग्जामिनेशन और डायग्नोस्टिक टेस्ट से इलाज में काफी मदद मिलती है. लक्षणों को कम करने के लिए दवाओं और नाक स्प्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है, या गंभीर मामलों में एडेनॉइड्स को हटाने के लिए सर्जरी भी की जाती है.
मौसम के अनुरूप प्लानिंग
इसके अलावा, माता-पिता को इस बात के प्रति जागरूक करने की जरूरत है कि बदलते मौसम के प्रभाव से एडेनॉइड की समस्या बढ़ सकती हैं और मौसम के अनुरूप प्लानिंग करके बच्चों को कई तरह की समस्याओं से बचाया जा सकता है और उनकी लाइफ को बेहतर बनाया जा सकता है. डॉक्टर, माता-पिता और एडुकेटर्स के बीच सामंजस्य बनाकर ऐसा माहौल क्रिएट किया जा सकता है जिसमें बच्चों की हेल्थ को ठीक रखा जा सके और बदलते मौसम से उनके ऊपर होने वाले असर को कम किया जा सके.
एडेनॉइड से पीड़ित बच्चों पर बदलते मौसम के प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता है. पर्यावरण और सांस से जुड़ी स्वास्थ्य चिंताओं के मद्देनजर ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं जिससे बदलते मौसम में भी बच्चों के लिए परेशानी न पैदा हो. आइए हम एक साथ मिलकर अगली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ भविष्य बनाने का प्रयास करें.