Overview: BMI नहीं, अब BIA बताएगा आपकी असली सेहत की सच्चाई!
एक नई स्टडी में सामने आया है कि BMI अब सेहत मापने का सही पैमाना नहीं है। यह सिर्फ कद और वजन देखकर नतीजा बताता है, जबकि असली खतरा शरीर में छुपे फैट से होता है। BIA यानी बायोइलेक्ट्रिकल इम्पीडेंस एनालिसिस एक नई तकनीक है, जो फैट, मसल्स और पानी की मात्रा को सटीकता से मापती है और भविष्य के स्वास्थ्य जोखिमों का सही अनुमान देती है।
BMI Alternative: वजन और सेहत को समझने के लिए अब तक BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स का इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन एक नई स्टडी ने इस पुराने पैमाने पर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिसर्च का कहना है कि BMI शरीर की असली सेहत को दिखाने में नाकाम है I
BMI सिर्फ कद और वजन के आधार पर शरीर की स्थिति को बताता है, लेकिन यह यह नहीं देखता कि शरीर में फैट, मसल और पानी का अनुपात क्या है। इसका मतलब ये है कि कई बार BMI रिपोर्ट सामान्य आती है, लेकिन अंदर से शरीर में बहुत ज्यादा फैट या रिस्क छुपे हो सकते हैं। इससे भविष्य में दिल की बीमारी, शुगर और फैटी लीवर जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।
नई स्टडी में सामने आया है कि बायोइलेक्ट्रिकल इम्पीडेंस एनालिसिस (BIA) नाम की तकनीक BMI से कहीं बेहतर है। यह तकनीक शरीर में फैट, मसल्स और पानी की मात्रा को सही तरीके से मापती है और आगे चलकर स्वास्थ्य जोखिमों का अनुमान लगाने में ज्यादा मदद करती है।
BMI क्यों है अब पुराना पैमाना?
BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स को हाइट और वेट के आधार पर गिनते हैं, लेकिन ये तरीका शरीर के अंदर की असल स्थिति को नहीं दिखाता। कोई व्यक्ति पतला दिखे, पर अंदर से उसकी चर्बी बहुत ज्यादा हो सकती है। ऐसा इंसान BMI के अनुसार फिट लगेगा, लेकिन वह दिल, लिवर या डायबिटीज़ जैसी बीमारियों के खतरे में हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ, किसी की हड्डियां और मसल्स भारी हों, तो उसका BMI ज़्यादा दिखेगा, जबकि वह असल में फिट होता है। स्टडी में ये साफ हुआ कि BMI से हेल्थ रिस्क का सही अंदाजा नहीं लगता। खासकर युवाओं और बुजुर्गों में यह तरीका गुमराह कर सकता है। इसीलिए अब ज़रूरत है कि BMI के अलावा ज्यादा सटीक और समझदारी भरे ऑप्शन को अपनाया जाए।
BIA तकनीक कैसे करती है काम?
BIA यानी बायोइलेक्ट्रिकल इम्पीडेंस एनालिसिस एक ऐसी तकनीक है जो शरीर में फैट, मसल्स और पानी की मात्रा को बिजली के हल्के करंट से मापती है। इस टेस्ट में मरीज को एक मशीन पर खड़ा किया जाता है, जिसमें उसके हाथ और पैरों से हल्का करंट शरीर में प्रवाहित होता है। फैट, मसल्स और हड्डियों की स्ट्रक्चर अलग-अलग होती है, जिससे मशीन अलग-अलग डेटा इकट्ठा करती है। ये तकनीक शरीर की असली सेहत को दिखाती है और यह BMI से कहीं ज़्यादा सटीक होती है। रिसर्च में पाया गया कि BIA से फैट की मात्रा जानकर भविष्य में होने वाली बीमारियों का अंदाजा बेहतर तरीके से लगाया जा सकता है।
नई स्टडी में क्या चौंकाने वाले खुलासे हुए?
नई स्टडी में 20 से 49 साल के बीच के हज़ारों लोगों की जांच की गई। जिसमें पाया गया कि जिनके शरीर में ज्यादा फैट था, उनकी मृत्यु का खतरा 262% ज़्यादा था, भले ही उनका BMI सामान्य क्यों न हो। यानी BMI से कोई खतरा नहीं दिखा, लेकिन BIA में असली खतरा सामने आया। दिल की बीमारी से मरने का खतरा उन्हीं में ज़्यादा था जिनके शरीर में फैट प्रतिशत अधिक था। इसका सीधा मतलब है कि सिर्फ वजन देखकर किसी की सेहत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। असली जानकारी शरीर के अंदर की फैट और मसल्स की संरचना से मिलती है, जो सिर्फ BIA से ही संभव है।
डॉक्टर अब भी BMI पर क्यों टिके हैं?
BMI का तरीका सस्ता और आसान है, यही वजह है कि डॉक्टर अब तक इसी को प्राथमिकता देते आए हैं। बड़े अस्पतालों में DEXA जैसे एडवांस स्कैन महंगे होते हैं और आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं। लेकिन अब BIA जैसी मशीनें सस्ती होती जा रही हैं और कई क्लिनिक्स में उपलब्ध हैं। रिसर्चर्स का मानना है कि अगर डॉक्टर BMI की जगह BIA को अपनाएं तो समय रहते बीमारियों को रोका जा सकता है। खास बात ये है कि BIA से मरीज को उसकी सेहत का सही आंकलन मिलता है और डॉक्टर भी बेहतर निर्णय ले पाते हैं।
क्या अब वक्त है बदलाव का?
अब जब स्टडी में यह सामने आ चुका है कि BMI से ज़्यादा सटीक जानकारी BIA देता है, तो वक्त है कि डॉक्टर और हेल्थ प्रोफेशनल्स इस बदलाव को अपनाएं। सोचिए, अगर आपके डॉक्टर हर विजिट पर आपकी बॉडी फैट रिपोर्ट दें, एक्सरसाइज की सलाह दें और जरूरत पड़े तो न्यूट्रीशन एक्सपर्ट से मिलवाएं, तो आपकी सेहत पर कितना अच्छा असर होगा। पर्सनलाइज्ड हेल्थ का यही मतलब है – हर इंसान की सेहत का विश्लेषण उसके शरीर की सटीक जांच से करना। BMI एक जनरल average तरीका था, लेकिन BIA एक नई और पर्सनल हेल्थ क्रांति की शुरुआत हो सकती है।
