Summary : शोले के वक्त तक अमिताभ के पास एक हिट नहीं थी
रमेश सिप्पी को शोले में अमिताभ बच्चन को लेने पर इंडस्ट्री ने चेतावनी दी थी, लेकिन उनकी गहरी नज़र ने टैलेंट पहचान लिया। यह जोखिम सफल हुआ और बच्चन ने जय के किरदार से अपने करियर को नई ऊंचाई दी।
Ramesh Sippy: रमेश सिप्पी की ऐतिहासिक ब्लॉकबस्टर ‘शोले’ (1975) को इसी महीने रिलीज हुए 50 साल पूरे हो रहे हैं। आज इस फिल्म की कल्पना बिना अमिताभ के नहीं की जा सकती। अमिताभ बच्चन ने ‘जय’ का किरदार निभाया था। जय-वीरू की जोड़ी में वे शांत और गंभीर स्वभाव वाले थे। वैसे ये दौर अमिताभ के लिए अच्छा नहीं था। वे बॉक्स ऑफिस पर कोई सफलता नहीं चख पाए थे। इसी वजह से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े लोग सिप्पी को चेतावनी दे रहे थे कि वे उन्हें फिल्म में न लें।
पार्टी में मेहमान बोले- ऐसी गलती मत करना
रमेश सिप्पी ने याद किया, “जब सीता और गीता (1972) की सफलता की खुशी हम घर पर मना रहे थे, तब बहुत लोग आए थे। वे धीरे-धीरे मुझे समझा रहे थे कि बच्चन को मत लो, क्योंकि उनकी लगातार फिल्में फ्लॉप हो रही थीं। सबने कहा था कि यह गलती मत करना, ऐसा बिल्कुल मत करो। ये वो लोग थे जो फिल्म कारोबार और बॉक्स ऑफिस के लिहाज से सबसे समझदार माने जाते थे।”
सिप्पी को दिखा था अमिताभ में दम
सिप्पी को अमिताभ में कुछ खास लगा। उन्होंने कहा, “उनकी कुछ फिल्में भले नहीं चलीं, लेकिन उनमें अच्छे काम थे। आनंद (1971) में राजेश खन्ना का रोल ज्यादा ही भावुक और दिखावटी था, जबकि बच्चन का किरदार बिल्कुल चुप और गंभीर था। मेरा मानना है कि अगर बच्चन का वह किरदार काम नहीं करता, तो राजेश खन्ना का रोल भी उतना असरदार नहीं होता क्योंकि बच्चन के शांत अंदाज ने ही दूसरे किरदार को उड़ान दी।”
बहुमुखी प्रतिभा वाले अमिताभ
सिप्पी ने अमिताभ की बहुमुखी प्रतिभा की भी तारीफ की। उन्होंने कहा, “जिस भी तरह का काम उन्हें दिया जाता, वो पूरी तरह ढल जाते थे। उस दौर की एक और फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ (1972) में उन्होंने बस के अंदर एक गाना गाया था। वह सीन कमाल का था! इतने लंबे-चौड़े इंसान होने के बावजूद उनका बॉडी मूवमेंट कितना सहज और लयदार था कि देखकर मजा आ जाता है। वे इतने हावी थे कि शायद लोग गाना भूल जाएं, लेकिन उनका अंदाज नहीं भूलते। असल में उन्हें बहुत असहज लगना चाहिए था, लेकिन उन्होंने खुद को किरदार में इस तरह ढाला कि सब बिल्कुल सही दिखा।”
जावेद भी कर चुके तारीफ

पिछले साल प्राइम वीडियो इंडिया की डॉक्यूसीरीज़ एंग्री यंग मेन में भी जावेद अख्तर ने याद किया था कि उन्होंने बच्चन को ‘बॉम्बे टू गोवा’ में एक कॉमिक एक्शन सीन करते देखा था और तभी उनके टैलेंट को पहचान लिया था। रमेश सिप्पी ने कहा, “जब मैंने ये दो विपरीत किस्म की फिल्में देखीं, तो मुझे लगा कि इस इंसान में जबरदस्त क्षमता है। वैसे तो मेरे पास पहले से ही बड़े कलाकार थे, धर्मेंद्र जी (वीरू के रूप में), संजीव कुमार (ठाकुर), हेमा मालिनी (बसंती) और जया भादुरी (राधा)। तो मैंने सोचा एक पर रिस्क क्यों न लिया जाए और मेरा दांव सफल रहा।”
शोले रिलीज से पहले ही दो हिट
ये बात अलग है कि ‘शोले’ रिलीज होते-होते बच्चन एक बड़े स्टार बन चुके थे। उन्होंने प्रकाश मेहरा की जंजीर (1973) और यश चोपड़ा की दीवार (1975) जैसी हिट फिल्में दे दी थीं। इन्हें सलीम-जावेद ने लिखा था। इन्हीं फिल्मों ने उन्हें एंग्री यंग मैन के रूप में स्थापित किया, हालांकि शोले में उनका किरदार उस छवि से थोड़ा अलग था।

