OP Nayyer: हिंदी सिनेमा में जब भी बेहतरीन संगीत की बात होती है, तो ओ. पी. नय्यर का नाम गर्व से लिया जाता है। 50 और 60 के दशक में उनका संगीत रिदम, ऊर्जा और अनोखी मेलोडी के लिए जाना जाता था। लेकिन एक सवाल जो अक्सर संगीतप्रेमियों को हैरान करता है — वो ये कि इतने बड़े और सफल संगीतकार ने भारत की सबसे लोकप्रिय गायिका लता मंगेशकर के साथ क्यों सिर्फ एक बार ही काम किया? आइए, ओ. पी. नय्यर की जन्म जयंती के मौके पर इस दिलचस्प कहानी की तह तक चलते हैं और समझते हैं उन कारणों को, जिनकी वजह से ये जोड़ी कभी एक साथ नहीं बन पाई।
ओ. पी. नय्यर का जन्म और शुरुआती सफर
ओंकार प्रसाद नय्यर का जन्म 16 जनवरी 1926 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) हुआ था। बचपन से ही संगीत के प्रति उनका रुझान था। 1952 में फिल्म आसमान से उन्होंने हिंदी फिल्मों में कदम रखा, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1954 की फिल्म आर पार से, जिसमें उनके संगीत ने पूरी इंडस्ट्री को चौंका दिया।
रिदम के उस्ताद, का अनोखा संगीत स्टाइल
नय्यर साहब ने पारंपरिक शास्त्रीय धुनों की बजाय वेस्टर्न बीट्स और पंजाबी लोकसंगीत का बेहतरीन मिश्रण तैयार किया। उनका संगीत झूमने पर मजबूर कर देता था। यही कारण था कि गीता दत्त, आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी जैसे गायकों की आवाज़ में उन्होंने एक नई ऊर्जा भरी।
लता मंगेशकर, हर संगीतकार की पहली पसंद
950-60 के दशक में लता मंगेशकर लगभग हर बड़े संगीत निर्देशक की पहली पसंद थीं। उनके बिना किसी भी फिल्म का म्यूजिक एल्बम अधूरा माना जाता था। लेकिन इस दौर में भी ओ. पी. नय्यर ने उनके साथ दूरी बनाए रखी, जो बहुत असामान्य था।
सिर्फ एक फिल्म में साथ
ओ. पी. नय्यर और लता मंगेशकर ने साथ में सिर्फ एक ही फिल्म में काम किया — आसमान (1952)। इस फिल्म में लता ने उनके निर्देशन में गाने गाए, लेकिन इसके बाद दोनों ने कभी साथ काम नहीं किया।
आखिर क्यों नहीं हुआ दोबारा सहयोग
इसका सीधा जवाब खुद नय्यर साहब ने एक इंटरव्यू में दिया था — “मुझे उनकी आवाज़ में ठंडक मिलती है, गर्मजोशी नहीं।” उनके अनुसार लता की आवाज़ बेहद सॉफ्ट और मीठी थी, जबकि उन्हें तेज़, जोशीली और धड़कन से भरी आवाजें पसंद थीं, जैसे गीता दत्त और आशा भोंसले।
व्यावसायिक सफलता पर भी नहीं बदला विचार
ओ. पी. नय्यर ने आशा भोंसले के साथ 300 से भी ज्यादा गाने रिकॉर्ड किए और उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी जोड़ी सुपरहिट रही, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी लता मंगेशकर को अपनी फिल्मों में जगह नहीं दी, जो यह दिखाता है कि उन्होंने अपने उस फैसले से कभी समझौता नहीं किया।
इंडस्ट्री में बनी दूरी की चर्चा
कई बार अफवाहें भी उड़ती रहीं कि दोनों के बीच कोई व्यक्तिगत टकराव था, लेकिन नय्यर साहब ने हमेशा इसे नकारते हुए कहा कि यह महज एक “संगीतात्मक पसंद” का मामला था। वहीं, लता मंगेशकर ने भी इस दूरी पर कभी सार्वजनिक बयान नहीं दिया।
विरासत जो आज भी जिंदा है
भले ही उन्होंने लता के साथ काम नहीं किया, लेकिन नय्यर साहब की धुनें आज भी ज़ुबां पर ताज़ा हैं — “इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा”, “जरा हौले-हौले चलो मोरे साजना”, “उड़े जब जब ज़ुल्फें तेरी” जैसी रचनाएं आज भी रेडियो और प्लेलिस्ट्स में सुनी जाती हैं। उनका यह निर्णय, चाहे संगीत प्रेमियों को हैरान करे, लेकिन यह दिखाता है कि वो अपने सिद्धांतों और संगीत की परिभाषा को लेकर कितने स्पष्ट थे।
ओ. पी. नय्यर और लता मंगेशकर – दो दिग्गज, जिनके रास्ते कभी साथ नहीं चले, लेकिन दोनों ने अपने-अपने तरीके से हिंदी फिल्म संगीत को समृद्ध किया। ओ. पी. नय्यर की जयंती पर ये जानना दिलचस्प है कि कभी-कभी कला में ‘नहीं’ कहना भी उतना ही जरूरी होता है, जितना कि ‘हां’।
