Govinda and Amitabh Bachhchan
Govinda and Amitabh Bachhchan

Summary: वो वक्त जब अमिताभ बच्चन भीड़ में आम आदमी बन गए

1990 के दशक के मध्य में अमिताभ बच्चन ने अपने घटते स्टारडम का दौर महसूस किया, जब उनके “एंग्री यंग मैन” वाला जादू फीका पड़ने लगा और गोविंदा नए सुपरस्टार बनकर उभरे।

Amitabh and Govinda: बॉलीवुड में बड़े से बड़े स्टार की भी चमक एक समय फीकी पड़ने लगती है। महानायक अमिताभ बच्चन भी एक दौर में इस कड़वे सच से गुज़रे जब उनकी चमक थोड़ी फीकी पड़ने लगी। उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि 1990 के दशक के मध्य में उन्होंने अपने घटते स्टारडम का दर्द महसूस किया। वह दौर ऐसा था जब उनका “एंग्री यंग मैन” वाला करिश्मा, जिसने कभी पूरे देश को दीवाना बना दिया था, दर्शकों को उतना आकर्षित नहीं कर पा रहा था। ऊपर से राजनीति में उनके छोटे से कार्यकाल ने भी लोगों की धारणा को बदल दिया था।

90 के दशक के सुपरस्टार थे गोविंदा

इसी बीच, गोविंदा का सितारा बुलंदियों पर था। उनकी बेमिसाल कॉमेडी टाइमिंग, ज़बरदस्त डांस मूव्स और देसी आकर्षण ने उन्हें 90 के दशक का सबसे बड़ा सुपरस्टार बना दिया था। जब अमिताभ बच्चन ने दोबारा फिल्मों में वापसी करने का फैसला किया, तो उन्होंने डेविड धवन की फिल्म बड़े मियां छोटे मियां (1998) में गोविंदा के साथ काम किया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही, लेकिन इसने अमिताभ को यह एहसास दिलाया कि फिल्म इंडस्ट्री का परिदृश्य अब पूरी तरह बदल चुका था।

2016 में एक इंटरव्यू में अमिताभ बच्चन ने कहा था, “समय के साथ सब कुछ बदल जाता है। पहले जो भीड़ आपको देखने के लिए पागल होती थी, वह अब वैसी नहीं रहती। लोग अब आपको वैसे नहीं देखते जैसे पहले देखा करते थे। एक समय था जब किसी रेस्टोरेंट में घुसते ही अफरा-तफरी मच जाती थी, और फिर एक दिन ऐसा भी आता है जब आप अंदर जाते हैं और कोई ध्यान ही नहीं देता। ये भी एक फेज़ होता है, जिससे हर कलाकार को गुजरना पड़ता है।”

Amitabh opens up about his fading stardom
Amitabh opens up about his fading stardom

एक समय था जब भीड़ से बचना मुश्किल हो गया था

उन्होंने अपने सुनहरे दौर की एक झलक साझा करते हुए कहा, “एक बार लावारिस और मुकद्दर का सिकंदर के समय मैं न्यूयॉर्क में एक शो के लिए गया था। यह प्रमोशन नहीं, बस एक शो था। वहां दीवानगी का आलम था। लोग इतने पागल थे कि मंच से उतरना मुश्किल हो गया था। हालत यह थी कि मेरी लिमोज़िन को स्टेज पर लाना पड़ा, फिर लिफ्ट से नीचे उतरकर हमें सड़क तक पहुंचाया गया ताकि भीड़ से बचा जा सके।” लेकिन कुछ साल बाद, जब वे गोविंदा और रवीना टंडन के साथ एक फिल्म प्रमोट कर रहे थे, तो माहौल बिल्कुल अलग था। बच्चन ने कहा, “हम एक बड़ी लिमोज़िन से थिएटर के बाहर उतरे, लेकिन किसी ने पलटकर नहीं देखा। हम बस बाकी दर्शकों की तरह अंदर चले गए। उस वक्त अहसास हुआ कि समय कितनी तेजी से बदल जाता है।”

मेरी जगह लोग गोविंदा का ऑटोग्राफ चाहते थे

अमिताभ बच्चन ने एक और मज़ेदार किस्सा सुनाया जो गोविंदा की लोकप्रियता को दिखाता है। उन्होंने बताया, “मैं फिल्म हम  की शूटिंग कर रहा था, गोविंदा मेरे साथ थे। तभी कुछ युवा हमारे पास आए और उनमें से एक लड़के ने मुझसे ऑटोग्राफ मांगा। तभी एक छोटी, प्यारी सी लड़की ने उसे हल्का सा थप्पड़ मारा और बोली, ‘वो नहीं, ये! गोविंदा का ऑटोग्राफ लो।’” यह किस्सा सुनाते हुए अमिताभ ने हंसते हुए कहा था कि यह वह पल था जब उन्हें सच में एहसास हुआ कि नई पीढ़ी अब किसी और को अपना सुपरस्टार मानने लगी है। उन्होंने कहा कि समय सबका बदलता है। स्टारडम आता है, जाता है।

अभिलाषा सक्सेना चक्रवर्ती पिछले 15 वर्षों से प्रिंट और डिजिटल मीडिया में सक्रिय हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में दक्षता रखने वाली अभिलाषा ने करियर की शुरुआत हिंदुस्तान टाइम्स, भोपाल से की थी। डीएनए, नईदुनिया, फर्स्ट इंडिया,...