गर्मियों की वीरान-सी दुपहर है। समूची गली एक तरह की नि:स्तब्धता में डूबी हुई। अपने कमरे में दीवार पर लेटी है और मैं अभी-अभी बाहर से लौटी हूँ। गर्मियों, दवाओं, बुढ़ापे और चिन्ताओं से इतर माँ को कुछ भी याद नहीं रहता और मुझे इन दिनों न जाने क्या-क्या याद नहीं आता है। पड़ोस के […]
