Summary : सुर की समझ है जकिर को लेकिन गायन से दूर रहे
ज़ाकिर खान का परिवार संगीतकार रहा, लेकिन दादा की एक बात ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी। उसी पल से ज़ाकिर ने गायन छोड़ दी...
Zakir Khan Life Story: ज़ाकिर खान अपने मैडिसन स्क्वायर के परफॉर्मेंस की वजह से चर्चा में हैं। इंदौर की गलियों से निकल कर वे स्टैंडअप कॉमेडी के कारण न्यू यॉर्क तक जा पहुंचे। ज़ाकिर का खानदान पूरी तरह से संगीतकारों का था जो राजस्थान से आकर इंदौर में बसा था। उनके दादा मशहूर गायक रहे और पिता ने ताउम्र लोगों को गायन और संगीत सिखाया। इंदौर के मशहूर स्कूल में भी वो संगीत पढ़ाया करते थे। ऐसे परिवार से ज़ाकिर ने केवल सितार ले पाए, गाया उन्होंने कभी नहीं। गले के अलग ही सुर उन्होंने पकड़े और कॉमेडी में नाम किया।
ज़ाकिर का बचपन और उनका गाने से अनोखा रिश्ता
बचपन से ही ज़ाकिर सितार बजाया करते थे। स्वाभाविक है जो बजाएगा, उससे उम्मीद की जाती है कि वो गाए भी। 11-12 साल की उम्र रही होगी ज़ाकिर की। वो अपने दादा के सामने बैठकर सितार बजा रहे थे और गायन भी चल रहा था। ज़ाकिर इस किस्से को नीलेश मिश्रा के स्लो इंटरव्यू में कुछ ऐसे बयान करते हैं, मेरा छोटा भाई जो है उसने म्यूजिक नहीं सीखा है। दिलशाद नाम है उसका। लेकिन वो गाता है, वो भी मेरे इसरार पर। उसका गला ठीक है। जो-जो मुझे पसंद है वो मैं उससे सुनता हूं। मुझे गजलें पसंद हैं तो मैं उससे सुनता हूं। वो भी सुनाता है जबकि उसका मिजाज गजलों वाला है नहीं। मैं कभी नहीं गाता… इसका किस्सा भी बड़ा मजेदार है।
ज़ाकिर कहते हैं, एक दिन मैं ऐसे ही गुनगुना रहा था। मेरे दादा सुन रहे थे। वो सारंगी के बड़े कलाकार थे। वो अक्सर पलंग पर बैठते थे और मैं 11 की उम्र में उनके पलंग के सामने जमीन पर बैठता था और संगीत सीखता था। मेरे गुनगुनाने के बीच अचानक वो ऐसे ही बोल उठे कि बेटा, जबां ऐसी चीज है जिससे इंसान अपने आप को पढ़ा-लिखा भी बता सकता है और आप बहुत पढ़े लिखे हैं और आपकी जबान खराब है तो लोग आपको अनपढ़ भी समझ सकते हैं। तो हमेशा सही शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।

दादाजी की यादगार सीख
ज़ाकिर आगे बताते हैं, इसी बात को आगे बढ़ाते हुए दादाजी कहते हैं कि जैसे मान लीजिए किसी की आंख नहीं है। तो बिनाई होता है देखना… तो जो देख नहीं पाते, अंधे होते हैं… ऐसे लोगों को यह नहीं कहते कि ये अंधे हैं। इनको कहा जाता है कि ये नाबीना हैं साहब। अब देखिए, नाबीना कितना सुंदर लग रहा है। तो नाबीना शब्द उन्हें इंट्रोड्यूस किया। इस बात के दस मिनट बाद उन्होंने हमारे वालिद साहब को आवाज लगाई… अरे इस्माइल। हमारे बाबा आए तो दादा कहने लगे… ये सितार अच्छी बजाता है। इसको गाने मत देना कभी… गले से नाबीना है ये। तो जब मैं थोड़ा-बहुत गाता हूं तो यह बात याद आ जाती है। सुर की समझ है लेकिन ये बात नहीं भुलाई जाती कि वो क्या बोल के गए हैं।
ज़ाकिर स्पष्ट करते हैं, गले का अंदाजा मेरा शायद गलत होता है। सुर समझ जाता हूं लेकिन सही तरह से ला नहीं पाता। मैं उनकी बात से हमेशा इत्तेफाक रखता हूं। जब लोग मुझसे कहते हैं कि ठीक तो गाते हो, अच्छा तो गा लेते हो लेकिन मैं जानता हूं कि सुर गड़बड़ है मेरे। उनकी कही बात आज तक मेरे साथ है, शायद इसीलिए गायन साथ नहीं है।

