Overview:स्त्रियों को हनुमान जी की मूर्ति छूनी चाहिए या नहीं? प्रेमानंद जी महाराज ने तोड़ी वर्षों पुरानी
क्या महिलाएं हनुमान जी को छू सकती हैं? इस पर प्रेमानंद महाराज का उत्तर हमें यह समझाता है कि भक्ति में कोई भेद नहीं होता। भगवान की कृपा भावना पर निर्भर करती है, न कि किसी सामाजिक रेखा पर। समय आ गया है कि हम धार्मिक आस्था को अंधविश्वास से अलग करें और इसे श्रद्धा व समझदारी से समझें।
Premanand Maharaj: हिंदू धर्म में कुछ मान्यताएं इतनी गहराई से जुड़ी होती हैं कि लोग उन्हें बिना सवाल किए मानते चले जाते हैं। ऐसा ही एक सवाल अक्सर उठता है—क्या महिलाएं हनुमान जी को स्पर्श कर सकती हैं? कई लोग इसे वर्जना मानते हैं, तो कुछ इसे परंपरा से जोड़ते हैं। लेकिन हाल ही में जब एक भक्त ने प्रेमानंद जी महाराज से इस विषय पर सवाल किया, तो उनका उत्तर न केवल संतुलित था, बल्कि सोच को एक नई दिशा देने वाला भी था। आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा और इसके पीछे क्या तर्क दिए।
वर्षों पुरानी मान्यता का स्रोत क्या है
यह मान्यता प्रचलित है कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं और इसलिए महिलाएं उन्हें स्पर्श नहीं कर सकतीं। लेकिन इसका स्पष्ट आधार शास्त्रों में कहीं नहीं मिलता। यह अधिकतर लोकमान्यता और सामाजिक परंपरा पर आधारित है।
प्रेमानंद जी महाराज का संतुलित उत्तर
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान भक्ति में भेद नहीं करते। हनुमान जी तो भक्तों की भावना के आधार पर प्रसन्न होते हैं, न कि उनके शरीर या लिंग के अनुसार। उनका यह उत्तर लोगों की सोच को झकझोरने वाला था।
भावना है सबसे महत्वपूर्ण
महाराज जी के अनुसार, अगर कोई महिला सच्चे मन से, श्रद्धा और प्रेम के साथ हनुमान जी की आराधना करती है, तो स्पर्श करना या न करना कोई मायने नहीं रखता। भगवान तो मन की भावना के आधार पर स्वीकार करते हैं।
मंदिरों में महिलाओं की भागीदारी
भारत के कई मंदिरों में महिलाएं न केवल हनुमान जी को स्पर्श करती हैं, बल्कि उन्हें चोला भी चढ़ाती हैं, सिंदूर अर्पित करती हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि परंपराएं समय के साथ बदलती रही हैं।
सामाजिक सोच में बदलाव की ज़रूरत
प्रेमानंद महाराज ने यह भी कहा कि हमें धर्म को डर और रोक-टोक से नहीं, बल्कि श्रद्धा और समझदारी से अपनाना चाहिए। अगर महिलाएं दिल से हनुमान जी को मानती हैं, तो उन्हें दूर रखने की कोई आवश्यकता नहीं।
शास्त्रों की दृष्टि से क्या कहता है धर्म
वाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड और अन्य ग्रंथों में हनुमान जी के भक्तों के बारे में कहीं भी लिंग आधारित रोक का उल्लेख नहीं मिलता। यह अधिकतर परंपरा का हिस्सा रही मान्यता है, न कि धर्म का आदेश।
निष्कर्ष: आस्था में भेद नहीं
प्रेमानंद महाराज का संदेश स्पष्ट है—ईश्वर किसी को भी भेदभाव की दृष्टि से नहीं देखते। महिलाएं भी हनुमान जी की उतनी ही प्यारी भक्त हो सकती हैं जितने पुरुष। जरूरी है भावना की, न कि किसी छूने या न छूने की।
