आजमाएं रामबाण नुस्खा
Author Views: आपके लिए एक छोटा-सा आजमाया हुआ रामबाण नुस्खा शेयर कर रही हूं। यदि किसी को शुगर है और उसे मीठा खाने का मन हो या शुगर लेवल किसी कारण अचानक से बढ़ गया हो और उसे नॉर्मल करना हो तो आप अपनी रेगुलर दवा के साथ-साथ इस उपाय को कर सकते हैं- मदार यानी की श्वेतार्क (जो शिवजी को चढ़ाया जाता है) की कुछ पत्तियां लें और उन्हें पैरों के तलवों में लगा ले या उन्हें जूते में रखकर जूते पहन कर कुछ देर टहलें। बहुत ही जल्द आप पाएंगे कि ना सिर्फ शुगर लेवल कम होगा बल्कि उनके लक्षणों में भी सुधार होगा। पर ध्यान रहे यह वैकल्पिक होना चाहिए। इसे मिठाई खाने का तरीका ना बनाएं ना ही अपनी दवा बंद करें।
- विद्या शर्मा
फरीदाबाद (हरियाणा)
रिश्तो में आपसी तालमेल जरूरी है
चारों तरफ तरह-तरह की घटनाएं सुनाई दे रही हैं। कहीं पर पत्नी द्वारा पति को मरवाया जा रहा है कहीं पर पति द्वारा पत्नी और बच्चों को गोली मारी जा रही है। बहुत ही दु:खद समाचार सुनाई दे रहे हैं। घटना किसी के साथ भी हो लेकिन मुख्य कारण इसमें शक और प्रेम संबंधों और अवैध संबंधों का ही है। चाहे किसी को कितना ही कुछ प्राप्त क्यों ना हो जाए ज्यादा पाने की लालसा और सदैव मनचाहा करना, चाहे उसमें नैतिकता ना हो। एक घटना में तो माता द्वारा अपने ही बच्चे की हत्या कर दी जाती है। क्योंकि बच्चा माता को आईना दिखा रहा था उसके कृत्यों का। जिस बच्चे को 9 महीने तक सींचा गया, पाला गया, आभासी दुनिया के चक्कर में उसे ही मार दिया गया। मानसिक द्वंद अपराध और विध्वंश का कारण बनता है। फिल्मी दुनिया में जो पटकथाएं लिखी जाती थी, पर्दे पर उतारी जाती थी। आज कुछ लोग मानसिक विकारों के चलते उन्हें वास्तविक जिंदगी में उतार रहे हैं। अगर संबंधों में दिक्कत है तो आपसी ताल मेल से उन्हें सुलझाइए। अगर किसी के साथ विवाह
करना पसंद नहीं है तो शुरू में ही विरोध कीजिए। किसी कुल के दीपक को बुझाना कहां तक तर्कसंगत है। आज इंसान कुछ कर्म ऐसे कर रहा है जिनकी माफी उसे किसी भी दरबार में नहीं मिलेगी। मानसिक द्वंद से बचकर, रिश्तो को संभालिए। अगर संभव नहीं हो तो आपसी तालमेल मिलाकर अलग हो जाइए। अपराध की काली दुनियां में स्वयं को खड़ा ना करें, जिससे आप, आपका
परिवार और पूरा समाज शर्मसार हो जाए। भगवान से तनिक डरिए। सब शक्तियों में सबसे बड़ी शक्ति वही है।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा-बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
सदा चमकती रहे गृहलक्ष्मी
प्रिय गृहलक्ष्मी, तुम जब मेरे हाथों में सजी हुई मेरे घर में प्रवेश करती हो तो तुम्हारे हर भाव का रंग रूप नव वधू की तरह दमकता है। हर अभिव्यक्ति पर दुनिया के अलग-अलग रंग मुझ जैसे हर पाठक को भाते हैं। किस्से- कहानियों के ढंग, व्यंजनों की खुशबू, आलेखों के विचार, ग्लैमर की चमक मन का रंजन, तन की स्वस्थता, सबकुछ तो काढ़ा हुआ है तुम्हारी चुनरी में। इस चुनरी को ओढ़े तुम और सुंदर लगती हो जब किसी महिला के मन को, विकास को या अधिकार को कहती हो।
अपनी चुनरी में बच्चों को आंचल की छांव देती खुद को संपूर्ण करती हो। मेरी गृहलक्ष्मी आजीवन ऐसे ही नववधू की भांति दमकती रहे और अपने परिवेश से आत्मीयता अर्जित करे।
- पायल गुप्ता ‘पहल’
अजमेर (राजस्थान)
गृहलक्ष्मी है प्यारी सखी

प्रिय गृहलक्ष्मी, तुम मेरी सबसे प्यारी सखी हो, जो मुझे लिखने और पढ़ने की रोचक सामग्री देती हो। मुझे तुम्हें पत्र लिखते हुए बेहद खुशी हो रही है कि मैं तुम्हें पत्र के माध्यम से अपने दिल की बात बता पा रही हूं। मुझे महसूस हुआ कि तुम मेरी लेखन यात्रा में कितनी महत्त्वपूर्ण हो। तुम्हारे ऑनलाइन
प्लेटफार्म पर आयोजित नित नई प्रतियोगिताएं मेरी लेखनी को नए एहसास देतीं हैं,
जो कि बेहद महत्त्वपूर्ण है। मुझे गर्व है कि गृहलक्ष्मी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका की मैं लेखिका और पाठिका दोनों हूं। एक प्यारा सा रिश्ता है, मेरे और पत्रिका के बीच, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल है। पत्रिका की साहित्यिक यात्रा अनवरत जारी रहे। नित नई प्रतिस्पर्धाए आयोजित होती रहें, ऐसी मेरी अनेकानेक शुभकामनाएं हैं। वर्ष 2024 के नवंबर अंक में प्रकाशित मेरी कहानी, ‘प्रेमसुख’को गृहलक्ष्मी श्रेष्ठ कहानी चुनें जाने के लिए कोटि-कोटि आभार। ये मेरी साहित्यिक यात्रा का अविस्मरणीय अनुभव है। पत्रिका का सफर यूं ही चलता रहे, हमारा गृहलक्ष्मी के साथ अनोखा रिश्ता बना रहे, ऐसी अनेको शुभकामनाएं हैं।
– रश्मि वैभव गर्ग
कोटा (राजस्थान)
मार्गदर्शन करती है गृहलक्ष्मी
प्रिय गृहलक्ष्मी टीम, मैं आपको यह चिठ्ठी अपने दिल की गहराइयों से लिख रही हूं। मैं गृहलक्ष्मी पत्रिका की एक नियमित पाठक हूं और मुझे आपकी पत्रिका में प्रकाशित होने वाले लेख, कहानियां और जानकारी बहुत पसंद आती है। आपकी पत्रिका ने मुझे न केवल मनोरंजन प्रदान किया है, बल्कि मुझे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी जानकारी दी है। आपकी पत्रिका में प्रकाशित होने वाले लेख और कहानियां मुझे प्रेरित करती हैं और मुझे जीवन के चुनौतीपूर्ण समय में भी मजबूत
बनाती हैं। हम सभी गृहलक्ष्मी के लिए मार्गदर्शन है। मैं आपको धन्यवाद देना चाहती हूं कि आपने मुझे ऐसी पत्रिका प्रदान की है जो मुझे ज्ञान, मनोरंजन और प्रेरणा प्रदान करती है। मैं आपकी पत्रिका की नियमित पाठक बनी रहूंगी और आपको अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव देती रहूंगी। मुझे जुनून गृहलक्ष्मी बनाया है, उसके लिए दिल से आभार।
- सुनीता त्रिपाठी ‘अजय’
जयपुर (राजस्थान)
पुरस्कृत पत्र
विद्या शर्मा , फरीदाबाद ( हरियाणा )
