अरे यह बुढ़ऊ भी 65 साल में सठिया गया है, यह देखो न पेन ड्राइव के जमाने में वीसीआर माँग रहा है। अब कहां से लाऊं अभी के अभी। कहता हुआ म्यूजिक स्टोर का मालिक झल्ला उठा। “जा रे महेश, देख जरा पुराने कबाड़ में पड़ा है धूल झाड़ कर ले आ! पता नहीं ये कोई पुरानी अंग्रेजी फिल्म देखेगा…”
“सर वीसीआर मिल गया और चालू भी है।” कहता हुआ ले आया।
65 वर्षीय सुबोध सहाय की आंखों में चमक आ गई, “सर जी, महेश को बोलो न, मेरे घर आकर सेट कर दे!”
“जा रे महेश लगा आ रे।”
घर का मंजर गमगीन था। बिस्तर पर एक औरत जिसके सारे बाल झड़ चुके थे, कीमोथेरेपी से काया जीर्ण हो चुकी थी_ सुबोध सहाय की पत्नी मरणासन्न अवस्था में थी। महेश बोला, “लाओं सेठजी कौन सी कैसेट चलाऊं।”
सुबोधजी बोले, “ये मेरी पत्नी शालिनी है, डॉक्टर ने कहा है कि अब घर ले जाओं, कम से कम तीन-चार घंटे और ज्यादा से ज्यादा तीन दिन का वक्त बचा है। अब आखिरी वक्त अपने आपको लाल चुनरी में देखना चाहती है।” कहते हुए उन्होंने चश्मा उतार कर आंख मसलते हुए एक पुरानी वीडियो कैसेट आगे कर दी, जिस पर लिखा था- सुबोध वेड्स शालिनी।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
