भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
दादू राम के दो पोते एक कणव और दूसरा अनीश। दोनों बहुत प्यारे। किसी को भी मोह लेने की कला उनमें न जाने कहां से आई है। आदमी एक बार उनके संपर्क में आया नहीं तो भूलता नहीं। ‘दे दे प्यार दे’ की शूट में हम लोग मनानी गए हुए थे। अजय देवगण पर उनकी नजर पड़ी तो भाग कर पहुंच गए उनके पास।
“अंकल आप फिल्मों के हीरो हैं न?” कणव ने पूछा।
पहले तो अजय देवगण चुप हो गए। सोचने लगे कि आज तक तो किसी ने उनसे यह पूछा ही नहीं था। उन दोनों की ओर बड़े ध्यान से देखने लगे। अजय को दोनों ही हीरो लगने लगे, तुरन्त ही उत्तर देना पड़ा, “हां।”
“मैं आपका फैन हूं।” कणव आगे बोला। बड़े वाला पोता कणव, उम्र सात वर्ष, बड़े स्टाइल से बोला।
“मैं भी तो।” छोटे वाला भी वहीं था। उसने भी अपनी बात की पुष्टि की। वह कणव से दो साल छोटा है। वह थोड़े ही पीछे रहने वाला था।
अजय को अब उनमें कुछ दिलचस्पी होने लगी तो पूछा, “अच्छा बताओ, अगर मेरे फैन हो तो मेरी कौन-सी फिल्में देखी हैं?”
बस, एक बार पूछने की देर थी कि दोनों ने बारी-बारी उनकी कई फिल्मों के नाम ले लिए जिन्हें वे भी शायद भूल गए होंगे। बारी-बारी दोनों फिल्मों के नाम ही नहीं लेने लगे, उनमें उनकी एक्टिंग की भी बात करके तारीफ करने लगे।
“अंकल आपका फोटो दादू के साथ हमारे घर पर भी है।”
जब दादू का नाम लिया तब जाकर उन्हें बच्चों के बारे में मालूम हुआ कि ये किसके बच्चे हैं।
अजय ने दोनों को बारी-बारी गोदी में अपने पास बाजु में भर लिया था और दोनों के साथ फोटो भी खिंचवाए।
लॉकडाउन में स्कूल बंद, सब कुछ बंद, घर में ही रहना पड़ रहा है। आजकल दोनों नटखट घर में अजय की ही फिल्में बारी-बारी से देख रहे हैं। उनके साथ हुई बातों को याद कर रहे हैं। मुश्किल है तो इन दोनों को संभालने की। चुपके-चुपके अपने दोस्तों को फोन मिलाना, फोन भी कभी दादा-दादी का कभी पापा का। अपनी मम्मी का फोन नहीं ले सकते। जब दादा-दादी यह कहें, “अपनी मम्मी का फोन क्यों नहीं लेते? उसे तो वे छूते तक नहीं।”
“न न दादू, उस फोन में करंट है। अपना फोन दो न दादू।”
अगर उनसे किसी न किसी तरह से फोन से पीछा छुड़ाया भी तो दूसरा काम शुरू हो जाता है। काम करेंगे भी दोनों साथ ही, लड़ेंगे भी दोनों साथ ही। एक कहीं इधर-उधर हो जाए तो एकदम से पूछ पड़नी शुरू हो जाती है। दोनों एक-दूसरे के बिना एक पल भी अलग नहीं रह सकते। ईर्ष्या भी एक-दूसरे के साथ पल-पल में ही रहेगी और प्यार-लगाव भी।
घर में उनके होते हुए शांति नहीं हो सकती। उनके होते हुए घर में शांति हो तो समझो कोई बड़ा तूफान आने वाला है, या कोई बड़ी खुराफात हो रही होती है। कुछ न कुछ अवश्य हो रहा होता है। बस, थोड़ी ही देर में घर में से किसी भी कोने में से या तो दोनों की झगड़ने की आवाज आती या रोने की। पल में झगड़ना और पल में ही दोस्ती। यह तो उनके साथ दिन में कितनी ही बार हो जाता है।
झगड़ते समय दोनों अपने-अपने मुंह में उंगली डाल कर ऐलान करते, “कट्टी … कट्टी।”
परन्तु थोड़ी ही देर में आपस में दोनों एक-दूसरे की उंगलियां मिलाते, “दोस्ती, फ्रेंडशिप, फ्रैंड्स।”
उनके दादा-दादी भले ही उनकी शरारतों से तंग आ जाएं परन्तु वे भी उनके बिना नहीं रह सकते। सबके दिलों में बराबर आग लगती है।
लगता है वे एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। चाहे लड़ना हो या प्यार करना हो। आजकल स्कूल बंद हैं तो दोनों घर में ही हैं। अक्सर वे दोनों ही हम दोनों के पास अर्थात् दादा-दादी के पास ही पढ़ना, रहना पसंद करते हैं। मैंने एक दिन उन दोनों को कहा कि मुझे थोड़ी देर सोने दे। आज अपनी मम्मी के पास ही पढ़ लें।
वे कहां माने, “नहीं, हमने तो आपके पास ही पढ़ना है।”
“क्यों?”
“ममा को मैथ नहीं आता है दादू।”
मुझे लगा कि वह मुझे ही चालू कर रहा है। वह मैथ की ही तो टीचर है। फिर यह कैसे हो सकता है?
मैं अभी सोच ही रहा था तो छोटा ही बोल पड़ा, “दादू, ममा हमें मारती है। बात-बात में डांटती रहती है। इसलिए उनके पास कणव नहीं जाता। वह डरता है।”
“कणव नहीं जाता, तू तो जाता है। तू जा न! यह आ जाएगा।”
“नो दादू। ममा डांटती इसे ही है परन्तु मुझे भी डर लगता है। जब इसे ममा डांटती है तो यह तो भाग जाता है और फिर ममा मेरी ओर हो जाती है। यह जो बैट पड़ा है न, लाया हमारे खेलने के लिए ही था। परन्तु अब ममा ही इसे यूज करती है हमें मारने के लिए। चौके, छक्के कभी इसके पीछे लगते हैं, कभी मेरे।”
उनके जवाब से मुझे बहुत हंसी आई।
खैर, उनकी हर अदा हमें पसंद है और वे इस तरह से हमेशा ही करते आए हैं। मेरे लिए कोई नयी बात नहीं थी। वे आजकल कुछ अधिक ही खीझने लगे हैं। चारों ओर बंदिश, बस पढ़ाई, दोस्त कोई नहीं। वे अपनी जगह ठीक हैं, सही हैं। अगर गलत हैं तो हम ही हैं।
बड़े ने भी एक प्रश्न पूछा था, “दादू यह कोरोना किसने लाया?”
मैं इसके प्रश्न से चुप हो गया था। यह तो हमारी ही गलतियों के परिणाम हैं। हमारी सोच कितनी स्वार्थी हो गई है। हम क्या, कोई भी देश अपनी प्रभुता जमाना चाहता है। इसके लिए उसने बड़े-बड़े हथियार, विषैले अणुबम तैयार किए हैं। और इस कोरोना ने सबको बता दिया है कि तुम्हारी औकात क्या है! तुम क्या हो। सब उसके आगे घुटने टेकने लगे हैं। यह प्रकृति बार-बार इस तरह के झटके देकर, कभी सोनामी, कभी कोई तूफान, कभी इस तरह से कोई महामारी, आपदाएं देती है। चेचक, हैजा, मलेरिया, हैपीटाइटस, कैंसर आदि ने लोगों को पाठ समझाया है। परन्तु आदमी है कि मानता ही नहीं। और अब लाइलाज सारी दुनिया की हेकड़ी पल में ही खत्म।
“दादू क्या सोच रहे हो?”
मैं कुछ सोचने लग गया था। मैंने कहा, “कुछ नहीं बेटा। अच्छा आओ हम ड्राईंग करेंगे सब मिलकर।” मैंने उन्हें व्यस्त रखने के लिए एक प्रपोजल दी।
“ठीक है, ठीक है। मैं दादू हनुमान बनाऊंगा।” छोटा बोला।
“मैं आइसक्रीम बनाऊंगा।” बड़ा बोला।
आजकल दोनों रामायण देखते हैं। छोटे को हनुमान पसंद है। सारे दिन में भी एक नाड़ा लेकर उसकी पूंछ बना कर सबको ‘जय श्री राम’ करता रहता है। इसलिए उसने हनुमान बनाने की इच्छा जाहिर ही नहीं की बल्कि पैंसिल, कागज, रंग लेकर बिना देरी के बनाने भी लग गया।
बड़े को खाने-पीने का शौक है। कभी अपनी मम्मी से बनाना शेक बनवा लेता है, कभी इडली सांभर, कभी डोसा, कभी पास्ता, कभी कुछ तो कभी कुछ। मम्मी भी उन्हें कुछ न कुछ बना कर देती रहती है और हम भी तो इसी बहाने खाते रहते हैं। कुछ न कुछ तो चला ही रहता है।
आजकल उनकी आइसक्रीम बंद की हुई है। इसलिए बड़ा बोल रहा कि आइसक्रीम का चित्र बनाऊंगा। वह भी बनाने लग गया। बहुत सुन्दर आइसक्रीम बनाई, उसमें रंग भरे। जो भी पसंद है। तीन-चार किस्म की आइसक्रीम स्ट्रॉबेरी, चॉकलेट आदि बना डाली।
वह मेरे पास दिखाने आया, “दादू मेरी आइसक्रीम। आह!”
मैंने कहा, “बहुत ही सुन्दर। रंग भी भर दिए हैं तूने।”
बस फिर क्या था। आइसक्रीम का चित्र मेरे सामने हाथ में पकड़ा है और एकदम से रोना शुरू कर दिया।
“अरे क्या हो गया? क्यों रो रहा है?”
“मुझे यह वाली आइसक्रीम चाहिए। इसी समय। एट वन्स।”
“बेटे आजकल डॉक्टर ठंडी चीजों को खाने के लिए इनकार करते हैं।”
“क्यों करते हैं? खाने के लिए बनाई है तो खानी ही चाहिए।”
“बेटा कोरोना है। डॉक्टर गर्म चीजों को ही खाने को बोलते हैं। चाय पिओ, गर्म-गर्म दूध पिओ।”
उसको कितना ही समझाया। वह मान ही नहीं रहा था। रोता जा रहा था। समझाने पर भी उसका रोना और जिद बंद नहीं हुई।
छोटे अनीश को जब मालूम हुआ कि वह दादू को तंग कर रहा है तो वह अपनी मम्मी को अपने साथ एक हाथ में बैट पकड़कर ले आया। बैट को मम्मी को देते हुए बोला, “ममा, यह मान ही नहीं रहा है और दादू को तंग कर रहा है। यह लो जरा ठीक कर दो न इसको। एक चौका हो जाए।”
छोटे की हरकत देख मैं अपनी हंसी रोक नहीं सका।
“आप दोनों इसी समय बुक्स निकालो और पढ़ने बैठ जाओ।” उनकी मम्मी का आर्डर पास हुआ।
बड़े का मम्मी को देखना ही था कि सब रोना-धोना बंद हो गया और पढ़ने के बारे में सुना तो वह जल्दी से खिसक भी गया।
छोटे ने वह बैट एक ओर रख दिया। उसकी मम्मी ने बैट की ओर देखा तक नहीं तो अपने कमरे में जाकर बड़े के स्कूल के बैग से एक कॉपी निकाल कर उसे खोलने लग गया जैसे वह पढ़ने बैठा हो। जब उसने देखा कि कमरे में कोई नहीं आया तो कॉपी से कागज फाड़कर उसके हवाई जहाज बनाने लगा। उन्हें उड़ाने लगा। जब पहला हवाई जहाज नहीं उड़ा तो दूसरा कागज निकाला, उसे उड़ाने लगा। जब वह भी नहीं उड़ा तो तीसरा….. जब वह उड़ा तो वह बड़े की गोद में लैंड कर गया। अपने कागज को पहचान बड़ा कमरे में आ धमका। उसने देखा कि छोटे ने उसकी कॉपी फाड़ दी है। बस, वह तो जोर से चिल्लाया, “मम्मी… मम्मी।”
मम्मी आ पहुंची।
“मम्मी इसने मेरी सारी कॉपी फाड़ दी है।”
अभी नई कॉपी लाई थी। मम्मी ने देखते ही उसे कान से पकड़ लिया, “अरे, तेरे को मालूम है कि यह कॉपी कितने की है। स्कूल की फेयर कॉपी ही फाड़ डाली!”
तभी कणव उसी बैट को ले आया और मम्मी को उसके लिए मारने के लिए देने लगा। छोटा वहां से भाग गया। बड़े को अपने बस्ते को संभालने के लिए बोला। दोनों के लिए कुछ उपदेश हुए और मम्मी किचन में अपने काम के लिए चली आई।
थोड़ी देर शांति के बाद छोटा अपने साथ एक बॉल ले आया। बॉल से खेलते-खेलते वह कणव के पास आ पहुंचा। कणव की नजर जब उस बॉल पर पड़ी तो उसने सब कुछ छोड़ बॉल उससे हथियानी चाही। वह बॉल उसकी थी। छोटा उस बॉल को न दे। बड़ा कहे कि यह बॉल मेरी है। मैं तुम्हें नहीं दूंगा। और झगड़ा हो गया। दोनों एक-दूसरे से उलझ पड़े। एक-दूसरे को मारने लगे। छोटा ऊंचे-ऊंचे रोना लगा। उसकी रोने की आवाज सुन मम्मी आ पहुंची।
मम्मी ने बड़े को फिर धरा। उसे कुछ बोलने लगी। तो उतनी देर में छोटा उसी बैट को ले आया।
“ममी इस बैट से।”
बैट देखते ही बड़ा चुप हो गया। अपने आप ही कान पकड़ लिए और दूसरे कमरे में भाग गया।
बात आई गई हो गई। अभी मम्मी किचन में शाम की सब्जी काटने ही लगी थी कि बड़े ने चुपके से फ्रिज में से कोक की बोतल निकाली और पीने बैठ गया। छोटा अकेला था। उसका मन नहीं लग रहा था। बड़े को ढूंढते हुए जब उसके पास पहुंचा तो उसने देखा कि यह तो कोक पी रहा है।
“भइया कोक मुझे भी दे न।”
“अच्छा एक चूंट ले।” कणव चुपके से पी रहा था। कहीं मम्मी को नहीं पता चल पड़े। उसने एक चूंट अनीश को दे दिया।
छोटे ने एक घुट पिया। दूसरे चूंट के लिए उसने मना कर दिया। तो वह मम्मी को पकड़ कर ले आया, “मम्मी, यह देखो यह ठंडा पी रहा है।”
जल्दी से गया और वही बैट ले आया। मम्मी को दिया।
“मम्मी इसने भी पिया है।” बडे ने अपनी सफाई दी।
“झूठ बोल रहा है।” और बोलते ही वह कोक को उससे छुड़ाने लगा। मम्मी ने उनकी ओर घूर कर देखा और उनको उसी तरह से झगड़ते छोड़ चली गई। यह कहकर कि वह इनसे तंग आ गई है।
दोनों में झगड़ा हो गया। दादा-दादी पहुंच गए। दादी छोटे को समझा रही थी। उतने में बड़ा यह समझा कि छोटे की बारी आई है। वह जल्दी से बैट ले आया।
“दादी, यह बैट इसी का ही है। जरा चौका, छक्का हो जाना चाहिए।”
वे दोनों इस तरह की बातें अपने दादा-दादी से ही कर सकते हैं। दादा-दादी को उनके इस प्रकार के कार्य पर हंसी आने लगती है। और बैट के बदले उन्हें गले लगा लेते हैं।
रात आई। बड़े ने आज जिद की कि मैं तो दादी के पास ही सोऊंगा। उसकी बात मान ली गई। वह अपनी दादी के पास सो गया और छोटे को बता कर सोया, “मम्मी, आज मैं दादी के पास सोऊंगा।”
“तो क्या हुआ, सो जाना।”
छोटे ने इस तरह से कहा कि उसे कोई भी चिंता नहीं। उसे क्या फर्क पड़ता है। वह किसी के पास भी सोए। वह तो अपने पापा के पास ही सोएगा। और वह हर रोज की तरह अपने पापा के पास सो गया। बड़ा दादी के पास सो गया। छोटा हमेशा बैट को अपने पास ही रखता था। उसे साथ लेकर सो गया। उसके पापा ने कहा, “यार यह बैट तू सोते हुए भी नहीं छोड़ता। कभी तेरे को ही इसकी पड़ेगी एक दिन।”
वह केवल मुस्कुराया था लेकिन बैट को साथ लेकर ही सोया।
रात के बारह बजे हैं। दादी का दरवाजा खटका। दादी को नींद आई हुई थी। उठ बैठी। घबराहट होने लगी कि सब सो गए हैं, क्या हो गया? कौन आ गया? लाइट ऑन की। देखा, अनीश। अनीश के हाथ में बैट।
“अरे क्या हुआ अनीश?”
“दादी, मैंने आपके साथ सोना है।”
दादी यह सुनकर मुस्कुराई। अनीश को अपने पास खींचकर पूछा, “अच्छा तूने अगर मेरे पास सोना है तो यह बैट क्यों साथ लाया है इस समय। जा, इसे छोड़ आ।”
“नहीं दादी, सपने में कणव मेरे बादाम खा जाता है।”
“ओह, अच्छा!” दादी मुस्कुराई और दादी ने उसे अपनी एक ओर सुला दिया। दूसरी ओर तो कणव सोया हुआ था और दादू तो पहले ही अलग बिस्तर पर।
सुबह कणव जब उठता है तो उसे प्यास का आभास होता है। इधर-उधर देखता है तो न दादी दिखाई देती है न दादू। पास ही अनीश सोया हुआ होता है। उसका बैट साथ रखा है। पानी का जग देखता है तो उसमें पानी नहीं है। वह दादी, दादू, ममा, पापा सब को आवाज लगाता है। परन्तु कोई उसकी आवाज नहीं सुन पाते। शायद सब बाथ रूम में होंगे। वह किचन में जाता है। किचन की शैल्फ में शीशे के जग में पानी देख वह उसे पकड़ना चाहता है। परन्तु वहां पर पहुंच नहीं पाता तो नीचे फर्श पर एक डौंगा रखकर उस पर पांव रख कर वह जग को पकड़ लेता है। उसे जब खींचने लगता है तो डौंगा खिसक जाता है और जग नीचे गिरकर कई टुकड़ों में बिखर जाता है।
जग की टूटने की आवाज सारे घर में गूंज जाती है। सब कमरों से आवाज आती है, “क्या हुआ? … क्या हुआ?”
कणव डर जाता है। अनीश भी उठ जाता है। दादी भी किचन में आ जाती है। मम्मी, पापा, दादू सब किचन में पहुंच जाते हैं। मम्मी कणव को बुरी तरह से डांट रही होती है, “तूने पानी पीना था तो बोला क्यों नहीं? कितना मंहगा जग तोड़ दिया। अभी एक महीना ही लाए हुए हुआ था इसे।”
अनीश जो अपने साथ अपना बैट लाया था, दूर खड़ा यह दृश्य देखता है तो चुपके से बैट को भागकर बैड के नीचे छिपा देता है और फिर से किचन में आ जाता है। दादू, दादी एक ओर खड़े होकर चुप सब देख रहे होते हैं। वे बहू के सामने कुछ नहीं बोल रहे होते हैं। गुस्से में कणव को जब मम्मी मारने लगती है तो अनीश उसके साथ चिपट जाता है।
“नो ममी… नो।”
दादू, दादी ने कणव और अनीश को अपनी बाहों में भर लिया। दादू गुस्से से बोलता है, “नो नो कणव की मम्मी, नो।”
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
