कुंभ मेले की भारतीय परंपरा केवल एक मेले के रूप में नहीं, बल्कि उत्सव के रूप में है। यह ऐसा मेला है जहां लोग श्रद्धा के सागर में उपासना की डुबकी लगाते हैं। धर्मग्रंथों के आधार पर माना जाता है कि 12 कुंभ पर्व कल्पित हैं जिसमें से 4 प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक में होता हैंए तो शेष देवलोक में होते हैं। कुंभ में अर्धकुंभ, सिंहस्थ कुंभ, कुंभ व महाकुंभ मनाया जाता है। कुंभ मेले में देश विदेश से भक्त आते हैं व आस्था की डूबकी पवित्र नदीं में लगाते हैं, कुंभ में पूरे देश के आखाडों के साधु सन्यासी आते हैं। इसके साथ ही हमेशा से कुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण माने जाने वाले नागा साधु कुंभ के समय ही दिखाई देते हैं। भारत के चारों स्थानों पर बृहस्पति के विभिन्न राशियों में संक्रमण और उसमें उपस्थिति की स्थिति अधिक महत्वपूर्ण है, जैसे प्रयाग में बृहस्पति का वृषस्थ और सूर्य का मकरस्थ होना कुंभ पर्व का योग लाता है, तो उज्जैन में बृहस्पति का सिंहस्थ एवं चंद्र.सूर्य का मेषस्थ होना कुंभ पर्व का सुयोग बनाता है।
कुंभ का पर्व इन चार जगहों पर
हरिद्वार में कुंभ: हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का भी आयोजन होता है।
प्रयाग में कुंभ: प्रयाग कुंभ का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह 12 वर्षो के बाद गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयाग में किया जाता है।
अन्य मान्यता अनुसार मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
नासिक में कुम्भ: 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुंभ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है।
उज्जैन में कुंभ: सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्षदायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।
वास्तव में इन चार नदियों के किनारे कुंभ मेला भरने का प्रमुख कारण अमृत कलश से छलकी बूंदें हैं लेकिन इसके अलावा भी इसका एक और कारण है। ऐसा कहा जाता है कि मानव जीवन की भी चार अवस्थाएं होती हैं। चार ही आश्रम होते हैं जिनसे गुजरकर जीवन आगे बढ़ता है। इसलिए इन चार नदियों के किनारे आयोजित कुंभ मेला जीवन की चारों अवस्थाओं को सुंदर और सुदृढ़ बनाता है। यही इसका रहस्य है। प्रत्येक 3 साल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में एक बार आयोजित होने वाले मेले को कुंभ के नाम से जानते हैं। वहीं हरिद्वार और प्रयागराज में प्रत्येक 6 वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ को अर्धकुंभ कहते हैं। वहीं केवल प्रयागराज में प्रत्येक 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ मेला कहते हैं। इसके अलावा केवल प्रयागराज में 144 वर्ष के अंतर पर आयोजित होने वाले कुंभ को महाकुंभ मेला कहते हैं।
पृथ्वी पर गिरीं चार बूंदें
कुंभ का अर्थ है कलश। यह कलश अमृत मंथन से जुड़ा है। कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव और दानवों के मध्य हुए युद्ध के दौरान समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें झलकने की है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। उस वक्त सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इन्द्रपुत्र जयन्त अमृत.कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव.दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव.दानव युद्ध का अंत किया गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार जिन स्थानों पर अमृत की बूंदे गिरी थी, उन चारों स्थानों पर प्रत्येक 12 साल के बाद विशिष्ट ग्रह योग में कुंभ पर्व मनाया जाता है।
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