सब कुछ भरा-पूरा हो
इन दिनों जमकर खरीददारी करें। रसोई,बाथरूम व घर के किसी भी कोने में सामान की कमी न रहे। आपको अभी से कार सीट और डायपर ले लेने चाहिए क्योंकि डिलीवरी के बाद शरीर में इतनी ताकत नहीं होगी और आप शिशु को छोड़कर बाजार भी नहीं जा पाएँगी। फ्रिज में खाने-पीने का सूखा व पैकेट बंद सामान भर दें। इस्तेमाल के बाद फेंके जानेवाले बर्तन, तौलिए व रूमाल ले आएँ।शायद आप कुछ दिन तक झूठे बर्तन मांजने के हाल में नहीं होंगी। कुछ ऐसे व्यंजन पका कर फ्रीजर में लगा दें जिन्हें कभी भी माइक्रोवेव में गर्म करके खाया जा सके।
इस बात का भी रखें ख्याल
(थोड़ी सी जानकारी)
आप प्रसव-पीड़ा शुरू होने के कितने समय बाद डॉक्टर को बुलाना चाहेंगी? क्या थैली फटने का इंतजार करेंगी? या फिर हल्का सा दर्द उठते ही अस्पताल फोन कर देंगी? इन सब बातों के बारे में डॉक्टर से पहले ही राय ले लें व उनके निर्देश कहीं लिख लें। आपको यह भी पता होना चाहिए कि अस्पताल पहुँचने में कितना समय लगेगा और आप किस रास्ते से जाना चाहेंगी। घर में बच्चों,पालतू व बुजुर्गों का भी इंतजाम कर दें ताकि ऐन मौके पर हड़बड़ाहट न हो। अपने सामान के बीच एक कॉपी में सब लिख कर रखें या फिर इन निर्देशों को फ्रिज पर चिपका दें।
अधिकतर महिलाएँ जन्म से ही माँ नहीं होती। रोते शिशु को चुप कराना, डायपर बदलना या फिर नहलाना_ यह सब काम तो कुदरतन आ जाते हैं। मातृत्व भी एक कला है, जिसके लिए थोड़ा सा अभ्यास व धैर्य चाहिए।
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