Chhath Puja 2022: कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ का पर्व मनाया जाता है। छठ शब्द की उत्पत्ति षष्ठी शब्द से हुई है। लोक आस्था के इस पर्व को हठयोग कहा गया है। दरअसल, सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों समय कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना और फिर 36 घंटे तक निर्जल व्रत किया जाता है। भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना जाता हैं और निरोगी काया के लिए प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देने का विधान हैं। इसी कड़ी में छठ पर्व के दौरान अपने परिवार और सतांन की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, ताकि उनकी कृपा परिवार पर सदैव बनी रहे।
ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य की आराधना करने से मान सम्मान में वृद्धि होती है। सूर्य की दो पत्नियां मानी गई हैं एक उषा और दूसरी प्रत्यूषा और उन्हें दो शक्तियां कहा गया है। इसी के चलते शाम की आखिरी किरण से उषा और सुबह की पहली किरण से प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है।
छठी मैया से क्यों मांगते हैं बेटियां?
यूं तो इस व्रत से कई प्रकार की कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को पहली बार सतयुग में राजा शर्याति की बेटी सुकन्या ने रखा था, तभी इस व्रत में बेटियों की कामना की जाती है। छठ से जुड़े लोकगीतों में छठी माता से बेटी के जन्म की प्रार्थना की जाती है। वैसे तो छठ का त्योहार पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। मगर साथ ही छठ के पारंपरिक गीतों में पुत्री और दामाद की कामना की जाती है। ”रुनकी झुनकी बेटी मांगीला, पढ़ल पंडितवा दामाद ए छठी मइया।” इस गीत में आंगन की रौनक कही जाने वाली हंसती खेलती बेटी के साथ-साथ पढ़े-लिखे दामाद को छठी मइया से मांगा गया है। बेटी और दामाद के रूप में बेटे को मांगा जाता है, ताकि वे उन्हें तीर्थ यात्रा कराएं।
छठ से जुड़ी पौराणिक कथाएं

छठ के दौरान किए जाने वाले व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार एक बार प्रियव्रत नाम के एक राजा हुआ करता था। उनकी पत्नी मालिनी अकसर संतान न होने के कारण दुखी रहती थी। समय बीतता गया, मगर संतान की प्राप्ति नहीं हो पाई। अब संतान की इच्छा को मन में धारण करते हुए राजा ने एक यज्ञ का आयोजन करवाया। जहां महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया, जिसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गई। मगर नौ महीनों बाद राजा के घर मृत बालक ने जन्म लिया। अब ये देखकर राजा बेहद चिंतित हो उठा और आत्महत्या की काशिश करने लगा। तभी राजा के समक्ष एक देवी प्रकट हुई। देवी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं षष्टी देवी हूं, जो पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। जो भी जातक मेरी पूरे मन से पूजा-अर्चना करता है, उसे पुत्र रत्न की प्रप्ति होती है।
अब ये सुनकर राजा अचंभित हो गया और रानी सहित कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की। देवी पूजा से प्रसन्न हुई और राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई। ऐसी मान्यता है कि तभी से छठ का पावन पर्व पूरी धूमधाम से मनाया जाता है। छठ व्रत के संदर्भ में एक और कथा बेहद प्रचलित है, जिसमें जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
