जिस पिता के लिए अजय ने अपराध की दुनिया से मजबूरन खुद को जोड़े रखा था, उनकी मौत के साथ ही वह दुनिया भी दम तोड़ चुकी थी, लेकिन क्यों अभी भी अजय खुद को न तो आजाद महसूस कर रहा था और न ही उसे कोई नयापन महसूस हो रहा था?
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बोझिल पलकें, भाग-17
अजय के पिता उसकी कमजोर रग थे और चन्दानी ने अजय की उसी कमजोर रग को बुरी तरह से दबा दिया था, दीवानचन्द को बंदी बनाकर। अंशु को अजय अपनी जिंदगी समझने लगा था, लेकिन जिस पिता ने उसे जिंदगी दी थी, आज उनकी जिंदगी दांव पर लग चुकी थी। क्या अजय के पास अब कहीं, कोई रास्ता बचा था?
