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स्त्री की पूर्णता और मातृत्व – गृहलक्ष्मी कहानियां

निम्न मध्यवर्गीय प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका कविताजी आज ट्रेन के एसी कूपे में बैठने के लिए छोटे बच्चे की तरह उत्साहित थीं। उन्होंने कल्पनालोक में ही विचरण करते हुए ही एसी कूपे की ठंडक के बारे में सोचा था। बेटी की जिद और अनुकम्पा से उन्हें आज यह सौभाग्य मिलने वाला था। वह अपनी उपलब्धि पर गौरवान्वित थीं। उनके अंतर्मन में अभिजात्यवर्ग के साथ कदम मिलाने में अपार संकोच हो रहा था।

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