Posted inहिंदी कहानियाँ

मां का श्राप – गृहलक्ष्मी कहानियां

रात के करीब डेढ़ बज रहे थे कस्बे में गहन सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन सावित्री के घर से बच्चे के रोने की आवाजें लगातार आ रही थीं। बिजली चली गई थी सावित्री ने मिट्टी के तेल की लालटेन जला दी, मगर उसके तीन महीने के मुन्ने का रोना बंद नहीं हो रहा था सावित्री ने बच्चे को चुप कराने का हर संभव प्रयास किया मगर सब बेकार ही रहा।

Gift this article