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धूप की गंध

इंसान सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं मरता है, बल्कि जीते जी भी वो दूसरों के लिए तब मर जाता है, जब आपसी संवेदनाएं खत्म हो जाती है। प्रभात रंजन जी की ये लघु कथा का भी कुछ ऐसा ही सार है।

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