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चित्त की समता – आनंदमूर्ति गुरु मां

वृक्ष के सिर्फ पत्ते और शाखाएं निकाल देने से वृक्ष का अन्त नहीं होता। इसी तरह जब तक मनुष्य अपने स्वरूप के मूल तक नहीं पहुंचता, ‘मैं’ कौन हूं इसका ज्ञान प्राप्त नहीं करता, तब तक ना अज्ञान दूर होगा और ना ही परमात्मा की प्राप्ति होगी।

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