पहली बारिश की बूंदों में
भीगी बालू रेत सा
तुम्हारा प्यार
समाया है आज भी
मेरे अंतर्मन में
पड़ती हैं जब जब भी
बौछारें तुम्हारी यादों की
उठने लगती है
वही सौंधी-सौंधी सी महक
आज भी मेरे रोम-रोम से
मूँद कर अपनी पलकें
खींच कर एक लम्बी साँस
भर लेती हूँ मैं
वो सुवास
अपने भीतर
और महक उठती हूँ
एक बार फिर से
मैं भी
बालू रेत सी
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