नन्ही गोगो ने देखा, घर में काम करने वाली कालिंदी चाची आई, तो उसके साथ में एक छोटा-सा बच्चा भी है। छोटा-सा, प्यारा-सा गोलमटोल बच्चा।
पर बच्चा इतना चुप-चुप क्यों है? इतना सहमा हुआ क्यों लग रहा है? नन्ही गोगो को बिल्कुल समझ में नहीं आया। वह सोचने लगी, शायद इसकी मम्मी ने डाँटा होगा। वरना कोई बच्चा भला इतना चुप-चुप कैसे हो सकता है?
नन्ही गोगो झट दौड़कर रसोई में गई। बिसकुट वाला डिब्बा खोला, उसमें से चार-पाँच मीठे, कुरकुरे बिसकुट निकाल लाई। प्लेट में बिसकुट लेकर उस बच्चे के आगे खड़ी हो गई। मुसकराते हुए बोली, “खाएगा न, ले खा।”
बच्चे ने कुछ देर अविश्वास से देखा, गोगो खिलाना चाहती है या यों ही ललचा रही है? पर गोगों की आँखों में सच्चा प्यार था। देखकर बच्चे ने झट बिसकुट की प्लेट ले ली। फर्श पर रखकर मजे में बिसकुट खाने लगा।
बिसकुट वाकई अच्छे थे। ताजे-ताजे, कुरकुरे। बच्चे को वे इतने अच्छे लगे कि खाते-खाते वह एकाएक हँसने लगा। देखकर गोगो खुश हो गई। बोली, “क्या नाम है तुम्हारा?”
“नीटू…!” बिसकुट खाते-खाते कोई चार बरस के उस साँवले बच्चे ने कहा।
“अरे वाह, नाम तो अच्छा है, बल्कि बहुत प्यारा। पर तुम बोलते क्यों नहीं हो। इतने चुप-चुप क्यों हो? कुछ तो बोलो…कुछ भी बोलो! मुझसे बातें करो। अच्छा, मुझसे दोस्ती करोगे? मेरा नाम गोगो है, गोगो।” गोगो ने बड़े प्यार से कहा।
कुछ देर तो नीटू सोचता रहा, क्या बात करे, क्या नहीं? पर गोगो इतनी प्यारी बच्ची थी कि थोड़ी देर में नीटू खुद-ब-खुद बातें करने लगा। दोनों बातें करते जाते और खूब हँसते।
अब तो यह रोज का ही सिलसिला बन गया। जितनी देर कालिंदी चाची घर में झाड़ू-पोंछे और सफाई का काम करती, उतनी देर गोगो नीटू से खूब बातें करती, खूब-खूब बातें। अब तो हालत यह हो गई कि बिना नीटू के गोगो को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।
फिर एक दिन कालिंदी चाची काम करने आई तो नीटू साथ में नहीं था। गोगो को बड़ा बुरा लगा। पूछने लगी, “अरे आंटी, आज नीटू को क्यों नहीं लाईं? नीटू के बिना तो मेरा बिल्कुल मन नहीं लगता।”
फिर पता चला, नीटू को बुखार आ गया है। इसीलिए कालिंदी चाची उसे साथ नहीं लाईं। पड़ोस की एक रिश्तेदार के पास ही छोड़ आई हैं, ताकि वह उसे समय से दवाई देती रहे और दूध पिला दे।
गोगो परेशान हो गई। बार-बार मम्मी के पास जाकर कहती, “मम्मी, इतने छोटे-से नीटू को क्यों आ गया बुखार? उसकी मम्मी के पास तो ज्यादा पैसे भी नहीं हैं। फिर बेचारी कहाँ से अच्छी दवाई लाएगी और दूध-बिसकुट भी? मम्मी, मम्मी, नीटू को मेरे बिसकुट बहुत अच्छे लगते हैं। मेरे साथ-साथ बातें करता है और बिसकुट खाता है तो उसकी हँसी छूट जाती है।”
दिन में इतनी बार गोगो ने नीटू के बारे में पूछा कि मम्मी भी कुछ परेशान हो गईं। बोली, “चल, नीटू के बगैर तेरा मन नहीं लगता, तो तुझे उससे मिलवाकर लाती हूँ।”
मम्मी ने अपना पर्स उठाया, उसमें सौ-सौ के दो नोट रख लिए। कुछ खुले पैसे भी। गोगो ने बिसकुट वाला डिब्बा खोलकर दो पैकेट बिसकुट के निकाल लिए। फिर गोगो अपनी मम्मी के साथ चल दी। दोनों कालिंदी चाची के घर गईं तो देखा, नीटू बुखार में तप रहा है। दवाई का कोई ज्यादा असर नहीं था। मम्मी ने कालिंदी चाची को पर्स से निकालकर दो सौ रुपए दिए। कहा, “किसी अच्छे डाॅक्टर से इसकी दवाई ले लेना। जब तक यह ठीक न हो, काम पर आने की जरूरत नहीं है।”
गोगो ने नीटू को बिसकुट के पैकेट दिए, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और प्यार से टाटा करके बोली, “जल्दी ठीक हो जाओ, फिर आना।…अच्छा!”
तीसरे दिन नन्हा नीटू मम्मी के साथ आया तो काफी खुश था। उसका बुखार उतर गया था और उसने थोड़ा-थोड़ा खाना-पीना भी शुरू कर दिया था।
गोगो ने नीटू को खूब प्यार किया। खूब बातें कीं और कहा, “देखना, जल्दी ही तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे।”
बाद में नीटू गया तो गोगो मम्मी से बोली, “मम्मी-मम्मी, मैं नीटू को थोड़ा पढ़ा दिया करूँ? वह भी थोड़ी ए-बी-सी-डी सीख जाएगा।”
“हाँ, बेटी, क्यों नहीं!” गोगो की मम्मी खुश होकर बोलीं।
फिर मन ही मन कहने लगीं, ‘अरे, मेरी नन्ही गोगो, सचमुच कितनी समझदार हो गई है!’
और नन्ही गोगो तो उछल रही थी, ‘वाह जी वाह, मैं तो टीचर बनूँगी!’
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
