Renuka Lake
Renuka Lake

देश भर में ढेरों झील हैं, जिन्हें एक बार देखो तो वहीं ठहर जाने को दिल करता है। ऐसी ही एक मन मोह लेने वाली झील है रेणुका झील। हिमाचल प्रदेश की इस झील के पास पहुंचना भर सुकून देता है। इसके आसपास की हरियाली हो या रास्ते के पहाड़, ये सब आपको बिलकुल अनोखा अनुभव देते हैं। इस झील पर आने ले लिए आपको पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरना होगा। मगर ये नजारे सुंदर दिखेंगे तो आपको रास्ता रोमांचक भी लगेगा। इस झील तक आना ही आपको इतना अच्छा लगेगा कि आप यहां पहुंचने के बाद तो मानिए कि मन इसकी शांति और प्रकृति के बीच खो ही जाएगा। खास बात ये है कि इस झील का अपना एक पौराणिक महत्व भी है। रेणुका झील से जुड़ी पूरी बात जान लीजिए- 

आने का सही समय हिमाचल परदेश के सिरमौर जिले में बनी इस झील में आने का सही समय गर्मी के मौसम में अप्रैल से जून तक है और सर्दी में सितंबर से नवंबर तक। इन महीनों में यहां आने का फायदा आपको अच्छे मौसम और खूबसूरत नजरों के तौर पर मिलेगा।

सबसे बड़ी झील समुद्र तल से 672 मीटर की ऊंचाई पर बनी ये झील क्षेत्रफल के हिसाब से हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी झील है। इसका क्षेत्रफल तकरीबन 3214 मीटर है। 

परशुराम से रिश्ता भगवान परशुराम से इस झील का रिश्ता काफी गहरा है। दरअसल इस झील का नाम उनकी मां देवी रेणुका के नाम पर रखा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि रेणुका इसी झील में समा गईं थीं। 

पौराणिक कहानी इस झील से जुड़ी बहुत प्रभावी पौराणिक कहानी है। माना जाता है कि सहसार्जुन नाम के राक्षस ने रेणुका के पति जमादागिनी को मार दिया था। और इसके बाद उनकी पत्नी रेणुका का अपहरण भी कर लिया था। लेकिन अपहरण से बचने के लिए झील में समा गईं। कई देवी-देवताओं ने उन्हें झील से निकालने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब से इस झील का नाम रेणुका पड़ा। 

रेणुकाकी याद में मेला देवी रेणुका की याद में झील के आस-पास मेला भी लगता है। जिसमें दूर दराज से लोग घूमने भी आते हैं। ये मेला अक्टूबर या नवंबर में होता है, जहां परशुराम ताल तक जुलूस भी निकाला जाता है। जिसमें भगवान परशुराम की मूर्तियों को भी सजावट में इस्तेमाल किया जाता है। भगवान परशुराम को विष्णु जी का अवतार माना जाता है। इन मूर्ति को मंदिर तक ले जाना होता है लेकिन इसके पहले रेणुका झील पर इसे धोया भी जाता है।  

रेणुका मंदिर झील के पास ही रेणुका जी का मंदिर है। जिसके लिए माना जाता है कि ये 18वीं शताब्दी में रातोंरात बन गया था। 

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