Rakshabandhan Importance: कहते हैं नजरिया बदलो तो नजारे बदल जाते हैं। यानी कि बहुत कुछ हम लोगों की सोच पर निर्भर करता है। अगर हम अपने त्योहारों को देख लें तो उसमें भी तो मोहब्बत की एक चाशनी घुली होती है। हम हिंदुस्तानी खाने-पीने के बड़े शौकीन हैं। जब हमारे त्योहार आते हैं तो जायकों भी हमारे रसोईयों में महकते हैं। दीवाली को हम खोए की मिठाई से जोड़ते हैं तो होली रंगों के साथ गुजिया को भी लाती है। लेकिन भाई-बहन के रिश्ते की डोर को मजबूत करता रक्षाबंधन का ये त्योहार कुछ अलग है। यही वजह है कि कहीं न कहीं हर धर्म के लोग इसे सेलिब्रेट करते हैं। हम अपने आस-पास देखें जो भले ही हिंदू धर्म का पालन नहीं करते हो लेकिन उनके हाथों सजी राखी बहुत खुशी से मुस्कुराती है। इस दिन बहुत से राज्यों की सरकारें महिलाओं को निशुल्क सरकारी वाहनों में यात्रा करने का अवसर देती हैं। इसमें आप एक और बात करें बस में चढ़ती हुई महिला से उसका धर्म नहीं पूछा जाता। बस यह भाव देखा जाता है कि अपने भाई से मिलने जाने के लिए उसकी चेहरे की खुशी कितनी है।
वो कहानी जो हमें याद है

हम सभी ने कहीं न कहीं राजपूत रानी कर्णावती और हुमायूं कीर वो राखी और पत्र भेजने वाली घटना जरुर सुनी होगी। आपको बता दें कि सुल्तान बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ पर आक्रमण किया तब रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह को राखी और पत्र भेजकर अपनी रक्षा की मांग की थी। जब हुमांयू को यह राखी प्राप्त हुई वे अपनी सेना के साथ अपनी बहन की रक्षा करने पहुंचे। सच है कि इस राखी की इस नाजुक डोर में इतनी ही मजबूती होती है। सोचिए कि एक बादशाह अपनी पूरी सेना के साथ एक राखी के वास्ते पहुंच गया? राखी एक विश्वास का सूत्र है रानी ने बहुत विश्वास से उस राखी को भेजा ओर हुमांयू ने उस विश्वास के मान को बढ़ाया। हालांकि बादशाह अपनी बहन और उनके महल को दुश्मनों से बचा न पाए। आखिर में रानी को जौहर करना पड़ा।
रविन्द्र नाथ टैगोर की वो सीख
1905 में बंगाल का विभाजन हुआ था। इतिहास में यह घटना बंग-भंग के नाम से जानी जाती है। जाहिर है कि बंटवारा जब होता है तो माहौल अच्छा हो नहीं सकता। उस कड़वे वक्त में शांति के लिए नोबल पुरुस्कार जीतने वाले रविंद्र नाथ टैगोर ने अपील की थी हिंदु-मुसलमान को और मुसलमान हिंदुओं को राखी बांधें। ताकि सहिष्णुता और एकता बनी रहे।
आखिर कब शुरु हुआ त्योहार

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थीं। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। अगर हम राजपूत इतिहास में जाएंगे तो पाएंगे कि वहां की महिलाएं जब अपने पति को युद्ध में भेजती थी तो उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती थी। इसकी पीछे उनकी कामना थी कि उनके पति की रक्षा हो और वह दुश्मनों को खदेड़ विजयी बन अपने घरों को लौटें।
साड़ी को बढ़ाकर चुकाया था कर्ज
महाभारत में भी इस पर्व का उल्लेख है कि जब पांडवव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं तब कृष्ण जी ने सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनके अनुसार रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर संकट का डटकर सामना कर सकते हैं। इसके अलावा द्रौपदी द्वारा कृष्ण को और कुंती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के कई उल्लेख मिलते हैं। इतना ही नहीं महाभारत में ही रक्षाबंधन से सम्बन्धित एक और वृत्तांत भी है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर पट्टी बांध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। यह सिर्फ आज के समय की बात नहीं है। एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से शुरु हुई।
हम सभी के लिए एक सीख है राखी

इस बार राखी 30 अगस्त को है। हम सभी इस रक्षाबंधन अपनी मानसिकता को थोड़ा और सकरात्मक करने की कोशिश करें। हम सभी सकारात्मक लोग इतनी मोहब्बत बिखेर दें कि नफरत को घुटने टेकने पड़ जाएं। हम यह कर सकते हैं ऐसा मुझे विश्वास है। त्योहार मनाई। खुश रहिए आपको और मुझे रक्षाबंधन मुबारक।
