अक्सर यह माना जाता है कि सिगरेट की तुलना में ई-सिगरेट एक सेफ चॉइस है और इसे पीने से सेहत पर कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि आपके दिमाग में भी ई-सिगरेट को लेकर यही धारणा है तो आज का यह आर्टिकल इसे पूरी तरह से दूर करने वाला है। जी हां, इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको ई-सिगरेट से होने वाले नुकसान और विदेशों में हुई इससे जुड़ी रिसर्च के बारे में बताने जा रहे हैं। खासकर टीनएजर्स में इसके बढ़ते उपयोग पर भी प्रकाश डालेंगे। बढ़ते बच्चों के बीच इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट और नशा करने वाले डिवाइस का उपयोग बेतहाशा बढ़ा है। तो आइए शुरू करते हैं…
टीन-एजर्स को लगी लत
आपको जानकर हैरत होगी कि अमेरिका जैसे पढ़े-लिखे और जागरुक देश में ई- सिगरेट पीने के मामलों में 900% का ऐतिहासिक उछाल आया था। यह बात 2011 में एफडीए (फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन – अमेरिका की एक फ़ेडरल एजेंसी) की एक जांच में सामने आई। इसके अनुसार हाईस्कूल जाने वाले छात्रों में ई-सिगरेट इतनी पॉपुलर हुई कि इसे पीने वाले 1.5% से सीधे 16% बढ़ गए जो कि 900% की ग्रोथ थी। जिसके बाद अमेरिका में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के लिए इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
ई-सिगरेट पर क्या कहती है रिसर्च
स्टैंनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर और पीएचडी होल्डर, जुडिथ प्रोचस्का के अनुसार, ई-सिगरेट सामान्य सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक है लेकिन इसको पीना भी कम खतरनाक नहीं। जुडिथ की मानें तो, ई-सिगरेट में प्रोपेलीन ग्लाइकोल नामक एक कैमिकल होता है, जो फेंफडों के साथ ही नर्वस सिस्टम पर बुरा असर डालता है। साथ ही ई-सिगरेट में 7000 किस्म के अन्य कैमिकल भी होते हैं जिनसे होने वाले खतरों के बारे में अभी कम ही जानकारी सामने आ पाई है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का चौंकाने वाला खुलासा
ई-सिगरेट को लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने भी एक रिसर्च की है जिसमें बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार, बाज़ार में पाई जाने वाली 75% ई-सिगरेट में डायसेटिल (Diacetyl) नामक कैमिकल होता है, जो फेंफड़ों पर बेहद बुरा असर डालता है। डायसेटिल युक्त ई- सिगरेट पीने से होने वाले फेंफड़ों के नुकसान को मेडिकल भाषा में पॉपकॉर्न लंग्स कहते हैं।
ई-सिगरेट यानी लत लगने की पहली सीढ़ी
अक्सर ई-सिगरेट का सेवन टीनएजर्स द्वारा किया जाता है। इसके पीछे टीनएजर्स की ऐसी धारणा होती है कि सामान्य सिगरेट की तुलना में ई-सिगरेट कम हानिकारक है, इसलिए इसे तो पिया ही जा सकता है। हालांकि, यह मात्र एक भ्रम है, बाज़ार में मिलने वाली अधिकतर ई-सिगरेट्स में निकोटिन होता है जो सीधे तौर पर दिमाग पर असर डालता है और सिगरेट पीने की लत की शुरुआत कहीं ना कहीं यहीं से होती है।
एक हालिया स्टडी से यह बात सामने भी आई है कि ऐसे टीएनेजर्स जो ई-सिगरेट्स का सेवन करते हैं, उनके सामान्य तम्बाकू युक्त सिगरेट पीने के चांस लगभग 2.5% गुना तक बढ़ जाते हैं। इसलिए देखा जाए तो ई-सिगरेट एक तरह से स्मोकिंग की लत लगाने की पहली सीढ़ी ही है। इसलिए बेहतर होगा कि ई-सिगरेट से दूरी बनाकर रखें और एक बेहतर और स्वस्थ जीवन पाएं।
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