बच्चों के पालन-पोषण का कोई एक नियम तय करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि ऐसे नियम न केवल हर बच्चे के मामले में अलग होंगे, बल्कि बच्चे के बड़े होने और उसके विकास के हर चरण में बदलते भी रहेंगे। लिहाजा, यदि बच्चे के साथ केवल मां हो या केवल पिता (सिंगल पैरेंट), उसके पालनपोषण की बुनियादी बातों पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि अभिभावक की वैवाहिक स्थिति क्या है।

यह बात सही है कि अभिभावक अगर सिंगल हो, तो बच्चे की जिम्मेदारी साझा करने के लिए पति/पत्नी या पार्टनर के नहीं होने से उसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन सिंगल पैरेंट्स के बच्चों के मामलों में अपनाया जाने वाला नजरिया किसी भी दूसरे बच्चे के मामले से बुनियादी रूप में अलग नहीं होता है।

संबंध को समझना महत्वपूर्ण 

सिंगल पैरेंट और बच्चे के परस्पर संबंध को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि दोनों मिलकर एक अलग इकाई की तरह काम करते हैं। यह तो सबको पता है कि पारिवारिक माहौल, परिवार का स्वरूप और रिश्तों के समीकरण किसी भी बच्चे के विकास को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन कारकों के पारस्परिक प्रभाव का बच्चे के विकास में बहुत बड़ा योगदान होता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि परिवार के ढांचे की वजह से किसी सिंगल पैरेंट बच्चे के पालनपोषण के तरीके में बदलाव आए।

 

सिंगल पैरेंट्स और बच्चों की देखभाल 3

 

रिश्ते को दें मजबूती

बतौर अभिभावक हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे के साथ अपने संबंध को बेहतर बनाने पर हमारा ध्यान बना रहे। माता या पिता के रूप में हम बच्चे से प्यार तो बहुत करते हैं, लेकिन उसकी बेहतरी और उसके भविष्य के बारे में एक अभिभावक के रूप में हमारी चिंता बाधा बन सकती हैं। इस चिंता का बच्चे के साथ हमारे संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रिश्ते की अहमियत

यह याद रखना बेहद महत्वपूर्ण है कि किन बातों के लिए हम बच्चे को समझा-बुझा रहे हैं। ऐसा करते हुए मां-बेटा या पिता-बेटी जैसे संबंधों की अहमियत से नजर नहीं हटनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना बतौर अभिभावक आपकी चिंता और सरोकारों का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकलेगा।

संवाद का बेहतर माहौल

तकरीबन सभी रिश्ते उसमें शामिल लोगों के आपसी संवाद के तरीकों की बुनियाद पर बनते हैं। लिहाजा, इसमें कोई शक नहीं है कि अभिभावक और बच्चे के बीच खुले तौर पर बातचीत होनी चाहिए और संवाद का मजबूत सिरा बनना चाहिए। ऐसा होने पर बच्चा अपने मन की बात अभिभावक से कह पाता है और उसे यह भरोसा हो पाता है कि किसी भी स्थिति में सहारे के लिए वह अपने अभिभावक की ओर हाथ बढ़ा सकता है।

बनाएं दमदार सपोर्ट सिस्टम

किसी भी सिंगल पैरेंट के लिए अपनी खातिर एक दमदार सपोर्ट सिस्टम तैयार करना बेहदअहम होता है। पति/पत्नी या पार्टनर के न होने के कारण इसकी जरूरत दोगुनी हो जाती है। इसलिए उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके सामाजिक संपर्कों का दायरा मजबूत हो, रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत ज्यादा न उलझ जाएं और दूसरे लोगों से मिलने-जुलने के लिए पर्याप्त समय निकालें। मनोवैज्ञानिक और मनो-सामाजिक तौर पर स्वस्थ रहने के लिए ऐसा दमदार सपोर्ट सिस्टम बहुत जरूरी होता है।

खुद का रखें ध्यान

सिंगल पैरेंट के रूप में किसी व्यक्ति को कई भूमिकाएं और जिम्मेदारियां निभानी पड़ सकती हैं। हालांकि यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि खुद को नजरंदाज न किया जाए। सभी को अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ वक्त खास अपने लिए निकालना ही चाहिए। केवल अपने लिए निकाले गए इस समय से न केवल हमें खुद को फिर से तरोताजा करने और रोजमर्रा की चुनौतियों से निपटने में मदद मिलती है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में भी इससे बहुत सहायता मिलती है। 

(लेखक दिल्ली के फोर्टिस हॉस्पिटल में कार्यरत एक वरिष्ठ मनोचिकित्सक हैं।)

 

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