Pachmarhi Tour: भारत के हृदय प्रदेश की सबसे हरी-भरी मणि मंजूषा पचमढ़ी को प्रकृति ने अपनी सुन्दर छटा असंख्य मोहक रूपों में प्रदान की है। सतपुड़ा पर्वत श्रंखलाओं की इस नयनाभिराम पहाड़ी सैरगाह में हर सुबह नई सी होती है। चारों ओर से कल-कल बहते झरनों की मंद-मंद ध्वनि मन को प्रफुल्लित कर देती है। जंगली बांस, जामुन एवं आम के उपवन, साल वृक्षों के सघन वन, महुआ, आंवले, गूलर के वृक्षों की कतारें मिलकर पचमढ़ी को बहुरंगी और निराली शोभा प्रदान करते हैं। पचमढ़ी की घाटी, गिरिकंदराओं की भूल भुलैयों का निर्माण प्रकृति ने युगों पूर्व किया है। सूरज की धूप में प्रपातों का जल रजत के समान दिखाई देता है। गहरे नीलवर्णी पोखर, यहां की हरी-भरी नदियां इनमें बसने वाले वन्य जीव, लंगूर, सांभर, गौर, रीछ, चीते एवं विभिन्न प्रकार के पक्षी सैलानियों और पर्यटकों को अपने पास आने का मौन निमंत्रण देते हैं। पचमढ़ी पुरातात्विक वस्तुओं का खजाना है। महादेव पहाड़ियों के शैलाश्रयों में शैल चित्रकारी की बहुलता है। इनमें ज्यादातर चित्रों का काल 500 से 800 ईसवी के बीच का माना गया है परन्तु प्रारंभिक चित्रकारी दस हजार वर्ष पुरानी होने का अनुमान है।
दर्शनीय स्थल
- प्रियदर्शिनी – 1857 ईसवी में बंगाल की अश्वरोही सेना के एक दस्ते के मुखिया के रूप में कैप्टन फोर साइथ यहां आये। उन्होंने तश्तरी के आकार जैसे इस स्थान पर अप्रतिम सौंदर्य देखा था। मूल रूप में यह स्थल उन्हीं के नाम से जाना जाता है।
- हांडी खोह – 300 फुट ऊंची यह प्रभावोंत्पादक घाटी खड़ी चट्टान के रूप में है। यहां एकांत में बैठकर दूर से बहते जल का स्वर मन को आनंदित कर देता है।
- अप्सरा विहार – यह छोटा स्थल सरोवर है। इसे परी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है।
- रजत प्रताप – जिन्हें साहसिक कारनामों में रूचि है वे चट्टानों एवं पथरीले मार्गों से चलकर इस प्रपात तक पहुंच सकते हैं। 350 फुट से नीचे गिरते हुए इस झरने को देखना सचमुच में आल्हादकारी हैै।
- राजगिरि – यह स्थान 300 फुट ऊंचा है। जहां से पचमढ़ी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
- जलावातरण – (डचेस फॉल), वैली व्यू से 3 कि.मी. दूर इस जलप्रपात में तीन जलधाराएं हैं, पचमढ़ी के जल प्रपातों में सबसे सुरम्य स्थल है।

- जटाशंकर – जम्बूदीप प्रवाह का उद्गम स्थल, कहा जाता है कि भगवान महादेव राक्षस राजा भस्मासुर से बचने के लिये इस स्थान पर तिलक सिंदूर से एक सुरंग में से होकर पहुंच थे। शिव जटाओं के समान दिखने वाली यहां की चट्टानों के कारण इसका नाम जटाशंकर पड़ा।
- छोटा महादेव – यह पवित्र स्थल है जहां एक जल प्रवाह और छोटे झरने के ऊपर चट्टानें लटकी सी प्रतीत होती है।
- बड़ा महादेव – पहाड़ी की पूर्व दिशा की ओर एक श्रेष्ठ शैलाश्रय है जिसमें भगवान शिव की सुन्दर मुर्ति एवं शिवलिंग स्थापित है।
- चौरागढ़ – सतपुड़ा पर्वत माला का प्रमुख स्थान जो महादेव से चार कि.मी. है। इस पवित्र शिखर पर शिव पूजा के प्रतीक त्रिशूल चढ़ाये जाते हैं।
- धूपगढ़ – सूर्य का अस्ताचल बिन्दु है, यहां से डूबते सूर्य एवं समीपवर्ती पर्वत श्रृंखलाओं का दृश्य बड़ा मनोहारी है।
- पांण्डव गुफाएं – यह वही गुफाएं हैं जिनके कारण इस स्थान का नाम पचमढ़ी हुआ। जनश्रुति के अनुसार पांडवो ने अपने निर्वासन काल का कुछ समय यहां बिताया था।
- अन्य दर्शनीय स्थल – लांजी गिरि, आइरीन सरोवर, गुफा समूह, धुआंधार, भ्रांतनीर (डोरोथी डीप) अस्ताचल, बीना वादक की गुफा (हार्पर केव) एवं सरदार गुफा।
कैसे पहुंचें
वायु सेवा – निकटतम हवाई अड्डा, भोपाल (210) कि.मी.
रेल सेवाए – मुम्बई- हावड़ा मुख्य मार्ग पर पिपरिया (50) कि.मी.
सड़क मार्ग – भोपाल, होशंगाबाद, नागपुर, पिपरिया, छिंदवाड़ा से नियमित बसें एवं टैक्सियां उपलब्ध हैं।
कहां ठहरें अमलतास, ग्लेन व्यू, हिलटॉप बंगलो, रॉक एण्ड मैनार, होटल हाईलैण्ड, पंचवटी, सतपुड़ा रिट्रीट, चंपक बंगलो, वुडलैण्ड बंगलो (सभी मध्यप्रदेश पर्यटन की इकाईयां)
अगली स्लाइल में पढ़िए जबलपुर के बारें में जहां मार्बल रॉक्स के बीच सैलानी करते हैं नौका विहार …
जबलपुर
जबलपुर संस्कारधानी के नाम से प्रसिद्ध बारहवीं सदी में गोंड़ राजाओं की राजधानी थी। इसके पश्चात् इस पर कलचुरी वंश का अधिकार हुआ। सन् 1817 तक यह मराठों के आधीन रही जिसे ब्रिटिश शासकों ने छीनकर अपनी औपनिवेशक घरों, बैरकों एवं विशाल छावनी के रूप में इस्तेमाल किया। आज जबलपुर एक, महत्वपूर्ण प्रशासनिक केन्द्र, तथा व्यावसायिक गतिविधियों के लिये जाना जाता है।
दर्शनीय स्थल
- मदन महल फोर्ट – गोंड़ राजा मदन शाह द्वारा 1116 में एक चट्टानी पहाड़ी के ऊपर निर्मित महल है, जहां से शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
- रानी दुर्गावती स्मारक संग्रहालय – महान रानी दुर्गावती की स्मृति को समर्पित इस स्मारक में एक संग्रहालय है, जिसमें मूर्तियों का संग्रह, शिलालेक एवं प्रागैतिहासिक अवशेष हैं।

- धुआंधार प्रपात – नर्मदा नदी, संगमरमर के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए, नीचे की ओर एक प्रपात का निर्माण करती है। पानी के गिरने से पानी के कण ऊपर उठकर धुएं जैसे वातावरण निर्मित करते हैं यहीं वजह है कि इसे धुअांधार का नाम दिया गया।
- चौसठ योगिनी मंदिर- पहाड़ी पर स्थित 10वीं सदी के इस मंदिर से दंतपक्तियों के समान संगमरमर के बीच से बहती हुई नर्मदा का अनुपम सौन्दर्य दिखाई देता है। दुर्गा देवी को समर्पित इस मंदिर के विषय में किवदंती है कि इसका एक भूमिगत मार्ग गोंडरानी दुर्गावती महल से जुड़ा है।
- तिलवारा घाट – यह घाट अपना विशिष्ट महत्व रखता है। 1939 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अवशेषों को यहां विसर्जित किया गया और त्रिपुरी कांग्रेस का सत्र आयोजित किया गया था। घाट के पास ही 12वीं सदी का मालादेवी मंदिर, पिसान हरि, जैन मंदिर, एवं रूपनाथ पर्यटकों के लिये दर्शनीय हैं।
- नर्मदा क्लब – 1889 में स्थापित, यह मध्य भारत का सबसे अच्छा क्लब था। यह ब्रिटिश अधिकारियों, सेना अधिकारियों एवं अभिजात्य वर्ग के भारतीयों का एक हब था। जबलपुर शहर को इस बात का भी गर्व है कि 1875 में स्नूकर नाम के खेल का प्रारंभ यही से हुआ।

- मार्बल रॉक्स – किनारों पर सीधे खड़े मैग्नीशियम मिश्रित चूने के पत्थर निर्मल एवं शांत नर्मदा जल को आकर्षक ठहराव प्रदान करते हैं। यहां पर नवम्बर से मई तक नौका विहार की सुविधा उपलब्ध है। चन्द्रमा की रोशनी में नौकाविहार अत्यन्त ही आनन्दित करता है। लगता है मानो चांदी के जादुई कालीन पर विचरण कर रहे है। नर्मदा ही एक संकीर्ण नहर जैसा हिस्सा जिसे स्थानीय लोग बंदर कूदनी कहते है बहुत ही आकर्षक है। यहां का संगमरमर अत्यन्त नरम है जिसको यहां के स्थानीय कलाकार तराश कर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्ति एवं उपहार की वस्तु तैयार करते हैं।
- भेड़ाघाट- आकाशोन्मुक्त शांत एवं अनिमेष खड़ी हुई भेड़ाघाट की चट्टानें जिसके बीच से कल-कल बहती हुई पुण्य सलिला नर्मदा का अमृत तुल्य जल जिसमें सूर्य की किरणों से खड़ी हुई चट्टानों का प्रतिबिम्ब उभरता है। कप्तान जे. फोर्सेथ ने अपनी पुस्तक ‘हाईलैण्ड्स ऑफ सेन्ट्रल इण्डिया में चट्टानों के विभिन्न सौन्दर्य का वर्जन किया है। उन्होंने लिखा है कि उनकी आंखों ने ऐसा अद्भुत दृश्य कभी भी नहीं देखा।
कैसे पहुंचें
वायुसेवा – जबलपुर में हवाई अड्डा है।