Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा को लेकर यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या महिलाएं इन धार्मिक अनुष्ठानों को कर सकती हैं। समाज में आमतौर पर यह धारणा रही है कि इन कर्मकांडों को केवल पुरुषों द्वारा ही किया जाना चाहिए, खासकर घर के ज्येष्ठ पुत्र या पुरुष सदस्य द्वारा। लेकिन जब घर में कोई पुरुष सदस्य उपलब्ध नहीं होता, या फिर ज्येष्ठ पुत्र नहीं होता, तब यह सवाल और भी गंभीर हो जाता है कि श्राद्ध का कार्य कौन करेगा।
17 सितंबर से शुरू हुआ श्राद्ध
इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो रही है और यह 2 अक्टूबर तक चलेगा। पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण का विशेष महत्व है, जो आमतौर पर पितरों की तिथि के अनुसार किया जाता है। पारंपरिक रूप से यह कार्य घर के पुरुषों द्वारा किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं भी पितरों के लिए श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं?
गरुड़ पुराण के अनुसार
गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि किसी परिवार में पुत्र नहीं है, तो पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का श्राद्ध कर सकती है, और पितर इसे स्वीकार कर आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही, पुरुष सदस्यों की अनुपस्थिति में परिवार की महिलाएं भी श्राद्ध और पिंडदान करने का अधिकार रखती हैं।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य निभाने का अधिकार केवल पुरुषों तक सीमित नहीं होना चाहिए। महिलाएं भी समान रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म कर सकती हैं। इसके अलावा, कुछ आधुनिक धार्मिक विद्वान भी इस बात का समर्थन करते हैं कि परिवार की महिलाओं को भी श्राद्ध कार्य में हिस्सा लेना चाहिए, ताकि परंपरा जीवित रहे और पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल सके।
माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का किया था पिंडदान
पौराणिक कथा के तहत माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था। यह घटना गया के फल्गू तट पर स्थित सीता कुंड के पास घटित हुई, जहां माता सीता ने राजा दशरथ की इच्छा का सम्मान करते हुए उनका पिंडदान किया। इस अनुष्ठान के दौरान उन्होंने फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू से पिंड बनाकर पिंडदान किया। यह कथा यह भी बताती है कि जब पुत्र अनुपस्थित हो, तब पुत्रवधू को शास्त्रों द्वारा पिंडदान और श्राद्ध करने का अधिकार दिया गया है। इस ऐतिहासिक घटना से यह सिद्ध होता है कि महिलाओं को भी इन धार्मिक कृत्यों का अधिकार प्राप्त है, विशेष रूप से जब घर में पुरुष सदस्य उपलब्ध न हो।
