इन कथा की बिना अधूरी है देवउठनी की पूजा
इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा पूरी कर निद्रा से बाहर आते है जिसके कारण ही इसे देव उठनी पर्व के नाम से जाना जाता है।लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए इस दिन व्रत करते है। वहीं व्रत के दौरान कथाओं का सुनना भी बहुत महत्व रखता है इसलिए देव उठनी का व्रत कथा इन कथाओं के बिना अधूरी मानी जाती है। तो चलिए जानते है प्रचलित कथा।
Dev Uthani Kahani: देव उठनी एकादशी का व्रत और पूजा काफी खास मानी जाती है ये एकादशी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष पर आती है। इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा पूरी कर निद्रा से बाहर आते है जिसके कारण ही इसे देव उठनी पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन के बाद से ही शुभ और मंगल कामों की शुरुआत हो जाती है। हालाँकि इस दिन व्रत का भी बहुत महत्व है। लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए इस दिन व्रत करते है। वहीं व्रत के दौरान कथाओं का सुनना भी बहुत महत्व रखता है इसलिए देव उठनी का व्रत कथा इन कथाओं के बिना अधूरी मानी जाती है। तो चलिए जानते है प्रचलित कथा।
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पौराणिक मान्यता

हिन्दू धर्म के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद की शुक्ल पक्ष को श्री हरी भगवान विष्णु ने शंखासुर नाम के असुर का वध किया था। शंखासुर के साथ भगवान विष्णु का युद्ध बहुत दिनों तक चला था जिसकी वजह से भगवान विष्णु थक गये थे और आराम करने के लिए क्षीरसागर चले गये थे जिसके बाद वह देव उठनी के दिन ही अपनी निद्रा से बाहर आये थे।
पौराणिक कथा
एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती हैं कि स्वामी आप दिन रात जागते हैं या फिर हजारों लाखों साल तक निद्रा में ही रहते है। इस वजह से संसार के सभी प्राणियों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आप हर साल एक नियम से निद्रा ले लिया करें जिससे मुझे भी विश्राम का समय मिल जाएँ। माता लक्ष्मी की ये बात सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराते है और कहते हैं कि मेरे जागने से सभी देवों और तुमको काफी परेशानी होती है। इसलिए मैं हर साल बारिश के 4 महीने निद्रा में रहकर विश्राम करूँगा। मेरी ये निद्रा महानिद्रा कहलाएगी और इस शयन अवस्था में जो भक्त मेरी शुद्ध भावना से पूजा करेंगे उसका कल्याण होगा। वहीं जब मैं निद्रा से बाहर आऊंगा इस अवसर पर जो भी भक्त उत्सव के साथ मेरा पूजन करेंगे मैं उसके घर तुमको लेकर निवास करूँगा।
देव उठनी एकादशी की व्रत कथा
एक राज्य में सभी लोग देव उठनी एकादशी का व्रत किया करते थे। राजा से लेकर प्रजा, पशु जानवर किसी को भी अन्न नहीं दिया जाता था। एक बार दूसरे राज्य से एक व्यक्ति नौकरी की तलाश में इस राज्य आता है और राजा से नौकरी मांगता है जिसपे राजा इस शर्त के साथ उसे नौकरी पर रखते है कि तुमको काम के बदले रोजाना अन्न मिलेगा लेकिन एकादशी के दिन तुम्हें अन्न नहीं मिलेगा। उस समय नौकर ने नौकरी के लिए हाँ कर दी। लेकिन जब एकादशी के दिन सभी को खाने के लिए अन्न के बदले फलाहार दिया गया तो उसने राजा के आगे रोने लगा स्वामी मेरा पेट फलाहार से नहीं भरेगा में भूखा मर जाऊंगा। इसलिए कृपा करके मुझे अन्न दें।
राजा ने उसे शर्त याद दिलाई लेकिन वह नहीं माना जिसके बाद राजा ने उसे खाने के लिए आटा, दाल और चावल दियें। जब वह नदी किनारे नहाकर भोजन पकाने लगा। भोजन बनने के बाद उसने भगवान का ध्यान किया और कहा भोजन पककर तैयार है आयों भगवान भोग लगाओं। ऐसे में भगवान विष्णु पीले कपड़े धारण किये हुए आये और प्रेम से भजन करके अंतर्धान हो गये। अगली बार जब फिर से एकादशी आई तो नौकर ने राजा से कहा महाराज मुझे दोगुना सामान दीजिये मैं उस दिन भूखा ही रह गया था। तो राजा ने पूछा ऐसा क्यों तो उसने जवाब दिया कि मेरे साथ भगवान भी भोजन करते है जिसकी वजह से हम दोनों के लिए अनाज कम पड़ जाता है। राजा उसकी बात सुनते ही कहते हैं कि मैं नहीं मानता कि भगवान ने तुम्हारे साथ भोजन किया।
मैं इतना पूजा पाठ करता हूँ आजतक भगवान ने मुझे नहीं दर्शन दिए तो तुझे क्या देंगे। नौकर ने बोला महाराज आपको विश्वास न हो तो आप साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे बैठ जाते है नौकर भोजन बनाकर भगवान को बुलाता रहता है लेकिन शाम होने के बाद भी भगवान भोजन के लिए नहीं आते है ऐसे में नौकर कहता है कि अगर आप नहीं आये तो मैं अभी ही इस नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगा। प्राण त्यागने का संकल्प नौकर का पक्का था और वह जैसे ही नदी में कूदने जाता है भगवान प्रगट हो जाते है और प्रेम से उसके साथ भोजन करके अंतर्धान हो जाते है। ऐसे में राजा को पता चलता है कि भगवान को प्रसन्न करने और उनके दर्शन करने के लिए व्रत की नहीं बल्कि सच्ची श्रद्धा की जरूरत होती है। राजा को ज्ञान मिला कि व्रत का कोई मोल नहीं जब तक आपका मन साफ़ न हों।
