Ucchi Pillayar Temple Tiruchirappalli
Ucchi Pillayar Temple Tiruchirappalli

Overview:273 फीट ऊंची चट्टान पर विराजे उच्ची पिल्लयार मंदिर की अनोखी गाथा

उच्ची पिल्लयार मंदिर तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु की 273 फीट ऊँची चट्टान पर स्थित भारत के सबसे पुराने गणेश मंदिरों में से एक है। यह तीन स्तरीय मंदिर परिसर भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित है। पल्लव, नायक और विजयनगर राजाओं द्वारा विकसित यह मंदिर वास्तुकला, इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत संगम है। चढ़ाई और दर्शन से भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है

Ucchi Pillayar Temple Tiruchirappalli: उच्ची पिल्लयार मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में “रॉकफोर्ट” के नाम से मशहूर एक अद्भुत चट्टान की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है और भारतीय इतिहास के सबसे पुराने गणपति मंदिरों में से एक है । लगभग 273 फीट ऊँची इस चट्टान पर बने इस मंदिर की नींव पल्लव राजाओं ने रखी थी, और मदुरै के नायक एवं विजयनगर शासकों ने बाद में इसके सौंदर्य और संरचना को और उँचाई तक पहुँचाया ।

मंदिर परिसर में तीन मंदिर हैं — नीचे मणिक्का विनायक (भगवान गणेश), बीच में थायुमानस्वामी (भगवान शिव), और सबसे ऊपर उच्ची पिल्लयार (भगवान गणेश) का मंदिर । यहाँ चढ़ने के लिए लगभग 400–437 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जो रोमांच और भक्ति का अनूठा संगम है ।

चढ़ाई का नजारा अनमोल है — शीर्ष पर पहुंचकर तिरुचि शहर, कावेरी–कोल्लिडम संगम, श्रीरंगम और तिरुवनैकवल के दर्शनीय स्थल नजर आते हैं । यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता का जीवंत प्रमाण है।

“अद्भुत स्थान और नाम की कहानी”

उच्ची पिल्लयार मंदिर की चट्टान लगभग 83 मीटर (273 फीट) ऊँची है, जो इसे तिरुचिरापल्ली की सबसे पहचानने योग्य जगह बनाती है । “उच्ची” तमिल में ऊँचा होता है और “पिल्लयार” भगवान गणेश का स्थानीय नाम, इस तरह नाम ही इस मंदिर की ऊँचाई और भगवान दोनों का वर्णन करता है । यह स्थान सिर्फ ऊँचाई का नहीं, बल्कि आस्था और इतिहास का प्रतीक है — जहाँ से भगवान गणेश की असीम शक्ति स्पष्ट होती है।

“तीन-स्तरीय मंदिर परिसर का चमत्कार”

यह मंदिर सिर्फ एक शिखर पर नहीं, बल्कि तीन अलग-अलग स्थानों पर फैले मंदिरों का समूह है। सबसे नीचे भगवान गणेश का मणिक्का विनायक मंदिर है, बीच में शिव को समर्पित थायुमानस्वामी मंदिर, और सबसे ऊँचाई पर उच्ची पिल्लयार का मंदिर है । यह संयोजन भक्ति के रास्ते को दर्शकों के लिए एक क्रमिक यात्रा का अनुभव कराता है — धरती से शुरुआत, मध्य में आंतरिक शांति और अन्त में परम दर्शन।

“इतिहास और मिथक का संगम”

सदियों पहले पल्लवों ने मंदिर की नींव रखी, नायक राजाओं और विजयनगर वंश ने इसे निखारा । इसके निर्माण से जुड़ी कथा भी रोचक है—रामायण युध्द के बाद, रावण के भाई विभीषण को रामा द्वारा रांगनाथ की मूर्ति भेंट की गई, जिसे गणेश ने चतुराई से रोक लिया, और भागते-भागते चट्टान की चोटी पर विराजमान हो गए — यही उच्ची पिल्लयार मंदिर का मूल पौराणिक आधार है । समय के साथ इससे जुड़े मंदिरों और लोककथाओं का जाल बुन गया।

“चढ़ाई का आनंद और दृश्य सौंदर्य”

लगभग 400–437 सीढ़ियाँ चट्टान में खुदी हुई हैं, जिन्हें पार कर भक्त चोटी तक पहुंचते हैं । चढ़ाई कुछ चुनौतीपूर्ण है, लेकिन रास्ते की ठंडी हवा और हर कदम पर बढ़ती उत्सुकता थकावट को दूर कर देती है । चोटी पर पहुंचकर सामने शुभ दृश्य होते हैं — तिरुचिरापल्ली शहर की रोशनी, कावेरी और कोल्लिडम नदियों का मिलन, और दूर श्रीरंगम व तिरुवनैकवल जैसे मंदिरों का दर्शन — एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला अनुभव है ।

“वास्तुकला, संरक्षण और स्थायित्व”

यह मंदिर डेविडियन–तामिल शैली में बना है। इसे पल्लव काल की चट्टानों को खोदकर बनाया गया है और बाद में नायक और विजयनगर राजाओं ने इसे और बढ़ाया और सजाया। यह संरचना भारतीय पुरातत्व विभाग और तमिलनाडु सरकार की देख-रेख में सुरक्षित है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को बनाए रखती है। मंदिर केवल भक्ति का स्थान नहीं है, बल्कि स्थापत्य कला की जीवंत विरासत भी है—जो सौंदर्य और कहानी दोनों को सालों तक संजोकर रखता है।

मेरा नाम वामिका है, और मैं पिछले पाँच वर्षों से हिंदी डिजिटल मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर सक्रिय हूं। विशेष रूप से महिला स्वास्थ्य, रिश्तों की जटिलताएं, बच्चों की परवरिश, और सामाजिक बदलाव जैसे विषयों पर लेखन का अनुभव है। मेरी लेखनी...