यू तो लक्ष्मी साधना के हजारों स्वरूपों की व्याख्या करना कुछ पृष्ठों में संभव ही नहीं है। देवी का प्रत्येक स्वरूप अपने आप में पूर्ण कल्याणकारी, पूर्णतायुक्त एवं साधक को पूर्ण अभय प्रदान करने वाला है। इन्हीं साधनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण साधना लक्ष्मी के रूप त्रिपुर सुंदरी साधना है। बहुत ही कम श्रेष्ठजनों को ज्ञात होगा कि त्रिपुर सुंदरी भी लक्ष्मी जी का एक रूप है। इस देवी का सर्वश्रेष्ठ शौर्य, आशीर्वाद, फलदायक स्वरूप है। लक्ष्मी के इस स्वरूप की साधना कभी भी व्यर्थ जा ही नहीं सकती है।

इस स्वरूप में इतनी अधिक शक्ति भरी है कि साधक साधना करते-करते स्वयं शक्तिमान हो जाता है। इस साधना को करने से निम्न मनोरथों की पूॢत होती है।

1. श्रेष्ठ स्वास्थ्य,

2. श्रेष्ठ गृहस्थ सुख,

3. पराक्रम,

4. शक्ति में वृद्धि,

5. जीवन के भोगों की प्राह्रिश्वत,

6. उत्तम पति/पत्नी की प्राह्रिश्वत,

7. पुत्र प्राह्रिश्वत और पुत्र सुख,

8. भाग्योदय,

9. जीवन की चिंताओं से मुक्ति। आज के इस भौतिक युग में जो साधक इस साधना पथ का जप प्रारंभ करेगा वह व्यक्ति/साधक कभी निर्धन नहीं रह सकता। आॢथक समृद्धि व लक्ष्मी प्राह्रिश्वत के लिए यह अचूक साधना है।

महात्रिपुर सुंदरी का स्वरूप अत्यंत ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में वे भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं। वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदॢशत करती हैं। इससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है। सोलह पंखुड़ियों के कमल दल पर पद्यासन मुद्रा में बैठी विराजमान लक्ष्मी स्वरूपा त्रिपुर सुंदरी मातृस्वरूपा हैं। सभी पापों और दोषों से मुक्त करती हुई अपने भक्तों/ साधकों को सोलह कलाओं से पूर्ण करती हैं। उन्हें पूर्ण सेवत्व प्रदान करती हैं। उनके हाथ में माला, अंकुश, धनुष और बाण साधकों को जीवन में सफलता, श्रेष्ठता और आॢथक समृद्धि प्रदान करते हैं। दाएं हाथ में अंकुश इस बात को इंगित करता है कि जो व्यक्ति अपने कर्म दोषों से परेशान है, उन सभी कर्मों पर वह पूर्ण नियंत्रण प्राह्रश्वत कर उन्नति के पथ पर गतिशील होता है। उसे जीवन में श्रेष्ठता, भव्यता, आत्मविश्वास प्राह्रश्वत होता है। सर्वोपरि जीवन में आने वाली सभी बाधाएं, शत्रु, बीमारी, निर्धनता, अशक्तता, सभी को दूर करने का प्रतीक उनके हाथ में धनुष बाण है। मां त्रिपुर सुंदरी साधना पूर्णता प्राह्रश्वत करने की एकमात्र संपूर्ण साधना है।

साधना- सर्वप्रथम निम्न श्लोक से मां को नमन कर उनके बीज मंत्रों के साथ उनके मंत्र का जाप करना चाहिए।

कामोयोनि: कमला वज्रपाणिर्गुहा हंसा मातारिश्वा भ्रमिंद:।

पुनर्गुहा सकला मायया च पुरुच्यैषा विश्वमाता दिविषोम॥

उस ब्रह्मïरूपिणि सवात्मिका सिद्धियात्री जगन्मता जिसकी मूल विद्या: (क) काम, (ए) योनि, (ई) कमला, (ल) वज्रपाणि इन्द्र (हृीं)- गुहा, (हृीं)- स.क.ल. वर्ष और (हृीं) माया है, उस माता त्रिपुर सुंदरी को साधक की श्री वृद्धि के लिए कोटि-कोटि नमन है।

मंत्र- क. ए. ई. ल. हृीं. ह. स. क. ह. ल. हृीं. स. क.

ल. हृीं।

इस पंद्रह अक्षरों के मंत्र में संपूर्ण ऊर्जा केंद्रित है। दस महाविद्याओं एवं नौ देवियों की ऊर्जा इस मंत्र में है।

भगवान शिव के मुखार बिंदु से निकाल यह मंत्र विधिविधान के साथ नियमित दीपावली की रात्रि तक सवा लाख जप करने से लक्ष्मी का वास परिवार में सदैव रहता है। यह सबसे सरल, सुगम, बगैर किसी विधि-विधान के या यंत्रोपचार या मंत्रोपचार या गुरु दीक्षा के संपन्न करने वाली साधना है।

भगवत्पाद शंकराचार्य ने प्रत्येक बीज के आधार पर इनकी स्तुति से संबंधित अनेक उत्कृष्ट पदों की रचना की है। यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसे भी नित्य साधना में शामिल कर निर्धनता से मुक्ति पाई जा सकती है। समापन करने से पूर्व माता त्रिपुर सुंदरी की शक्तियों व बीज मंत्रों का अर्थ अधिक सार्थक होगा।

शक्तियां- ज्ञान, क्रिया, कामिनी, कामदायिनी, रति, रतिप्रिया, नन्दा, मनोमालिनी, इच्छा, सुभगा, भगा, भगसॢपणी, भगमाल्या, अनंग नगाया, अनंग मेरवला और अनंग मदना का ध्यान कर पुष्प अॢपत करें।

हृीं- यह शक्ति बीज अथवा मायाबीज है। इसमें ह- शिव, रप्रवृत्ति, ई-महामया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुखहर्त्ता। इस प्रकार इस बीज का तात्पर्य हुआ-ïशिवयुक्त विश्व माता लक्ष्मी माता मेरे दुखों का, मेरी निर्धनता का हरण करें।

यह सच है कि जीवन एक क्रम ही नहीं है और न ही एक संग्राम है, जिसमें दिन-रात संघर्ष ही किया जाए। जीवन तो एक मधुर सरगमी संगीत की लय है। इसमें सभी राग छिपे हैं। आनंद के साथ जिएं और दूसरों के आनंद में भी बढ़ोतरी करें।

अचूक लक्ष्मी मंत्र वेद, तंत्र एवं पौराणिक शास्त्रों में लक्ष्मी प्राह्रिश्वत के अनेक मंत्र हैं। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र आदि देवता भक्त या साधक को सभी प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं। भूतभावन शिव भी अचला लक्ष्मी प्रदान करते हैं। कुबेर व गणेश भी धन के दाता हैं। लेकिन देवी महालक्ष्मी धन देने वाली एकमात्र देवी है। इसकी साधना से मनुष्य सभी प्रकार से संपन्न होकर सुखी हो जाता है। आज सबसे ज्यादा और तुरंत फल देने वाला कोई मंत्र है तो वह है बीज मंत्र। बहुत ही सीमित दायरे में और कम खर्चे में ही

इसकी पूजन विधि हो जाती है। कम समय में ही इसके फल सामने आने लगते हैं। इस मंत्र को सिद्ध करने की सबसे सरल विधि यहां प्रस्तुत है।

साधना विधि- अर्थ प्राह्रिश्वत के लिए महालक्ष्मी का यह मंत्र इस प्रकार है।

तस्य मा परमा शक्तिर्ज्योत्स्त्रेव हिमदीघिते:।

सर्वावस्थां गता देवी स्वात्मभूतानपायिनी।

अहंता ब्रह्माणस्तस्य साहममस्मि सनातनी॥

(लक्ष्मी-तंत्र 2/11,12)

किसी शुभ मुहूर्त में घट या कलश रखकर उस पर चुंडीदार नारियल (जलयुक्त कच्चा नारियल) रखना चाहिए। कलश मिट्टी के पात्र का होना चाहिए। कलश के नीचे गीली मिट्टी की एक परत बिछाकर उस पर अभिमंत्रित जौं छींट देना चाहिए। नारियल को लाल चुनरी ओढ़ाकर उस पर बनी मुखाकृति को लक्ष्मी स्वरूप मानकर कुमकुम चंदन का टीका करना चाहिए। महालक्ष्मी का चित्र भी रखना चाहिए। फिर धूप, अगरबत्ती जलाकर एक अखंड दीप जलाना चाहिए। आसन (पुरुषों के लिए कुशा का, स्त्रियों के लिए ऊनी या रेशमी आसन) पर बैठकर दाहिने हाथ मे जल लेकर रक्षा कवच का यह मंत्र या अन्य कोई रक्षा मंत्र पढ़ना चाहिए।

बार-बार कहूं बारम्बारा चक्र सुदर्शन है रखवारा इस मंत्र की समाह्रिश्वत पर जल अपने चारों ओर छींट देना चाहिए।

ऐसा करने से भय आदि नहीं लगता। इसके बाद लक्ष्मी का आह्वान करना चाहिए। महालक्ष्मी के चित्र के आगे प्रात:काल मंत्र का 108 बार 45 दिन तक जाप करें। देवी पर लाल पुष्प चढ़ाएं। इस मंत्र को अपने और सिद्ध के लिए प्रात:काल का समय श्रेष्ठ माना गया है। इस मंत्र को पूरी निष्ठा और शुद्धता के साथ करना चाहिए। माला तर्जनी पर रहे। माला दाहिने हाथ की अनामिका पर ही हो। जप करते समय अगर ध्यान बंटे तो जलते हुए दीपक को ध्यान से देखना चाहिए। इससे ध्यान कहीं और नहीं बंटता।

दूसरी प्रमुख बात यह है कि समय एक होना चाहिए। जिस निर्धारित समय पर जप शुरू हो, उसी समय दूसरी प्रात: को शुरू करना चाहिए। तीसरी बात यह कि माला का क्रम घटना नहीं चाहिए। नित्य प्रति के अलावा नवरात्रि में भी इस मंत्र को जपा जा सकता है। अधिक से अधिक 1008 माला का जप विधान युक्त माना गया है। यह जरूरी है कि मंत्र का उच्चारण विशुद्ध हो।

अक्सर यह देखा गया है कि इस मंत्र को जपने और ध्यान करने के साथ कई बार व्यक्ति को डर, भय और उसका आसन घूमता हुआ नजर आने लगता है या लगता है कि उड़ रहे हैं और माला हाथ से छूट जाएगी। इस तरह का अनुभव होने पर माला टूटने का डर रहता है। अत: उसे दूर करने का सरल उपाय है कि मंत्रोच्चारण मन में न करके ऊंचे स्वर में करना शुरू कर दें। इस मंत्र की आराधना करने वाला व्यक्ति निर्धन रह नहीं सकता। आॢथक समस्याओं का निदान सुनिश्चित है।

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