अगर आदमी को जीना आता है तब तो ठीक है। वह ढंग से जीवन जिएगा। वरन् ढोंग का जीवन जीना उसकी मजबूरी होगी अगर जीने की कला नहीं आयी तो जीवन ही एक बोझ बन जाता है और सब आता हो लेकिन जीना नहीं आता हो, तो समझो कुछ नहीं आता। आश्चर्य है कि आदमी की उम्र गुजर जाती है लेकिन संसार की वासना-कामना उसका पीछा नहीं छोड़ती। हमेशा नई-नई कामनाएं पैदा होती जाती है।
एक बार कबीर जी ने एक सेठ से कहा : भैया! तुम सत्संग में आया करो। सेठ ने कहा: हां महाराज! बेटे की सगाई हो गई है, बस शादी और हो जाए फिर आऊंगा। लड़के की शादी हो गई। कबीर ने सेठ से कहा: अब तो बेटे की शादी हो गई, सत्संग में आया करो। सेठ बोला: अभी-अभी शादी हुई है। मेहमान का आना-जाना लगा हुआ है। थोड़े दिन बाद आऊंगा। ऐसे-ऐसे 2 साल बीत गए। कबीर बोले: भाई! अब तो आओ। सेठ ने कहा: महाराज! मेरी बहू मां बनने वाली है। मेरा छोरा बाप बनने वाला है और मैं दादा बनने वाला हूं। बस घर में पोता आ जाए। फिर मैं आपके साथ आऊंगा।
पोता हुआ। कबीर बोले: अब तो सत्संग में आया करो। सेठ कहता है महाराज! बड़ा प्यारा पोता है। सब कहते हैं बिल्कुल मुझ पे गया है। जरा उसे गोद में खिला लूं, कंधे पर बिठा लूं। फिर चलता हूं। वो भी हो गया। कबीर ने कहा: अब तो चलो। अरे महाराज! क्या करूं…? बहू-बेटे दोनों नौकरी करते हैं। दोनों सुबह-सुबह काम पर चले जाते हैं, शाम को आते हैं। पोता को दिन भर मुझे ही संभालना पड़ता है। जरा बड़ा हो जाए, फिर..। बड़ा हो गया। कबीर ने कहा: अब तो चलो, अब तो सब कुछ हो गया। सेठ अब बोला : बस स्कूल जाने लगे, इसके बाद तो चलना ही है। पोता स्कूल भी जाने लगा।
कबीर ने कहा : बाबा! अब क्या ख्याल है? चलो लेने आया हूं। अब तो बुढ़ा चिढ़ गया। गुस्से में बोला : अरे महाराज! आप तो मेरे पीछे ही पड़ गए। क्या आपको और कोई नहीं मिलता? वासना दुष्पूर है। आदमी बूढ़ा हो जाता है लेकिन आदमी की वासना कभी बूढ़ी नहीं होती। भूखे पेट को भरा जा सकता है लेकिन भूखी निगाहों को कभी नहीं भरा जा सकता। भूखे मन को कभी नहीं भरा जा सकता। मन की भूख अपार है। मन को कितना भी और कुछ भी मिल जाए फिर भी वह भूखा रहेगा। आदमी भी सत्संग करता है, प्रवचन सुनता है और पांडाल से बाहर निकलता है कि पुराने संसार में खो जाता है।
मेरा कहा आप मानें तो साल में एक महीने के लिए घर छोड़ दीजिए। 50 साल के हो गए। बेटा-बहू बड़े हो गए। उनके भी बेटे-बेटी हो गए। बस अब संसार के क्रिया कर्म से विदा लो। कम से कम साल में एक महीने के लिए घर छोड़ो। गृहस्त का नियत बिगड़ जाती है। सोचते हैं आज छुट्टïी का दिन है, रविवार का दिन है। रविवार का मतलब खूब-खाना और खूब-सोना। अरे भाई! छुट्टïी का दिन है, ज्यादा भक्ति करो, भक्ति करते-करते थक जाओ तो सो जाओ पर किसी की निंदा मत करो।
छुट्टियां मिले तो घुट्टïल सांड बनो। भक्ति करो, जरूरतमंद लोगों की सेवा करो, सात्विक भूमि पर जाओ और स्मरण करो। प्रभु से कहो: हे नाथ! आपको भूलूं नहीं। प्राणों से अपने प्रभु को पुकारो। प्रभु से याचना मत करो। प्रार्थना करो। अन्तर्ध्यान लगाओ। खुद की तलाश खुद में खोजो। खुद को पाना है तो खुद में खोजना जरूरी है।
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