Overview:प्राचीन कथाएँ – कैसे शुरू हुई धनतेरस पर खरीदारी की परंपरा
धनतेरस पर खरीदारी की परंपरा केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि प्राचीन कथाओं और मान्यताओं से जुड़ी है। समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि का अमृत कलश लेकर प्रकट होना, यमराज से बचाने वाली दीपदान कथा, सोना-चाँदी और बर्तनों की खरीदारी का महत्व और आयुर्वेदिक औषधियों से जुड़ी मान्यताएँ इस त्योहार को खास बनाती हैं। इस दिन की गई खरीदारी घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाती है।
Dhanteras Shopping Tradition: धनतेरस दिवाली से जुड़ा पहला त्योहार है, जिसे हर घर में बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन बाजारों में भीड़, खरीदारी का उत्साह और रौनक साफ नज़र आती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर धनतेरस पर खरीदारी की परंपरा कैसे शुरू हुई? इसके पीछे केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक और सामाजिक कारण भी छिपे हैं।
प्राचीन कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन से जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, तो उस दिन को “धनतेरस” के नाम से मनाया जाने लगा। इसी वजह से इस दिन बर्तन, सोना-चांदी और स्वास्थ्य से जुड़ी वस्तुएँ खरीदना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन की गई खरीदारी घर में समृद्धि और सौभाग्य लाती है।
समय के साथ यह परंपरा और भी मज़बूत होती चली गई। आज भी लोग मानते हैं कि धनतेरस पर खरीदी गई वस्तुएँ पूरे साल घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि बनाए रखती हैं। आइए जानते हैं, प्राचीन कथाओं और परंपराओं से जुड़ी वे कहानियाँ, जिन्होंने इस दिन खरीदारी की शुरुआत को इतना खास बना दिया।
कथा : समुद्र मंथन और धन्वंतरि का प्रकट होना

धनतेरस का सबसे महत्वपूर्ण संबंध समुद्र मंथन की घटना से जोड़ा जाता है। कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। इस दौरान भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश और आयुर्वेद के ग्रंथ लेकर प्रकट हुए। जिस दिन यह हुआ, वही दिन कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि थी, जिसे बाद में “धनतेरस” कहा गया। लोग मानते हैं कि इस दिन कलश, बर्तन और धातु की वस्तुएँ खरीदने से घर में अमृत और आयुर्वेदिक ऊर्जा बनी रहती है। इस कारण हर साल लोग इस दिन धातु और स्वास्थ्य से जुड़ी वस्तुएँ खरीदते हैं।
मृत्यु से सुरक्षा की कथा और खरीदारी का महत्व

एक और लोकप्रिय कथा के अनुसार, एक राजा के पुत्र की शादी के चौथे दिन उसकी मृत्यु का योग था। ज्योतिषियों ने राजा को उपाय बताया कि वधू अपने घर के बाहर दीपक और गहनों से भरपूर ढेर लगाए। जब यमराज उस युवक का प्राण लेने आए, तो उनकी आँखें दीपक और आभूषणों की चमक से चकाचौंध हो गईं और वे बिना कुछ लिए लौट गए। तभी से इस दिन दीपदान और आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई। माना जाता है कि धनतेरस पर किए गए ऐसे उपाय परिवार को अकाल मृत्यु और दुर्भाग्य से बचाते हैं।
बर्तन खरीदने की परंपरा और वैज्ञानिक कारण
धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा भी काफी प्रचलित है। यह केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में लोग तांबे और पीतल के बर्तनों का उपयोग करते थे, जिनमें पानी पीने और भोजन करने से शरीर रोगमुक्त और ऊर्जा से भरपूर रहता था। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि ने लोगों को धातु से बने बर्तनों के फायदे बताए थे। तभी से इस दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। आज भी लोग तांबे, स्टील और चाँदी के बर्तन इस दिन खरीदते हैं ताकि घर में समृद्धि और सेहत बनी रहे।
सोना-चाँदी की खरीदारी और कुबेर पूजा
धनतेरस पर सोना-चाँदी खरीदने की परंपरा का संबंध धन के देवता कुबेर से माना जाता है। कथा है कि इसी दिन देवताओं ने कुबेर को धन का स्वामी नियुक्त किया था। तभी से इस दिन सोना-चाँदी खरीदना शुभ माना गया। यह परंपरा लोगों में धीरे-धीरे रिवाज़ के रूप में बदल गई। साथ ही, आभूषण और धातु की वस्तुओं को लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए लोग मानते हैं कि इस दिन किया गया निवेश पूरे साल घर में सुख-समृद्धि बनाए रखता है।
आयुर्वेद और स्वास्थ्य से जुड़ा महत्व
धनतेरस केवल खरीदारी का त्योहार नहीं, बल्कि इसे “धन्वंतरि जयंती” भी कहा जाता है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन आयुर्वेदिक औषधियाँ खरीदना और स्वास्थ्य संबंधी वस्तुएँ लेना बेहद शुभ होता है। प्राचीन समय से ही लोग इस दिन हर्बल दवाइयाँ और जड़ी-बूटियाँ घर में लाते थे। यह मान्यता आज भी कायम है। इसलिए आधुनिक समय में भी लोग इस दिन स्वास्थ्य बीमा, वेलनेस प्रोडक्ट्स और हर्बल औषधियाँ खरीदना शुभ मानते हैं। इस परंपरा ने धनतेरस को और भी खास बना दिया है।
