कौन नहीं चाहता सभ्य होना, आजकल सभ्य वही कहलाता है जो फैशन के साथ चल रहा हो, जिधर देखिए मोबाइल ही मोबाइल हैं, एक से एक महंगा फोन खरीद कर हाथ में पकडऩा शान बन गई है, छोटे-छोटे फटे कपड़े ही अमीरी दिखा रहे हैं, ढीली पतलून पहनने का मतलब यह नहीं है कि बंदा ही ढीले व्यक्तित्व वाला है। ये मान कर चलिए कि जरूरत पडऩे पर पतलून उतार कर दौड़ भी लगा सकता है।
ऐसे ही गांव से ब्याह कर लाई दुल्हनियां को शहर में आते ही सबकी नज़रों से दो-चार होना पड़ा। कभी पांव की पायल रुसवा कर देती तो कभी हाथों की खनकती चूडिय़ां। कितने अरमान से ये खनक वह साथ लेकर आई थी कि श्रीमान जी बिंदिया पायल चूड़ी पर उन्हें गीत सुनाएंगे, मगर यहां तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया। पांव छूते ही सब ऐसे पीछे हट गईं, जैसे करंट लग गया हो, सास ने तुरंत बताया कि इन सबकी जरूरत नहीं है।
दुल्हनिया करे तो क्या करे। आज तो हद ही हो गई जब सुनने को मिला, ‘कितनी गंवार हो तुम!’ अब ये गंवार से क्या मतलब भई! एम.ए. पास बहू, गांव से आई है, रीति-रिवाज फॉलो करती है, भारतीय संस्कृति में रचि-बसी है तो क्या बुरा है, लेकिन नहीं बहू को गंवार का तमगा दे दिया गया। कोशिश की जाने लगी कि क्या किया जाए इस गंवार को सभ्य बनाने के लिए, वरना बिरादरी में नाक कट जाएगी।
सबसे पहले छोटी ननद का विचार आया, इनके बाल कटवाकर खूबसूरत बनाया जाए, यानी कि अब दुल्हन की घुटनों तक लटकती चोटी भी गंवार की लिस्ट में आती थी, सो पार्लर ले जाकर चेहरे का नक्शा ही बदल दिया गया। बड़ी ननद ने वेशभूषा को लेकर चिंता व्यक्त की। ये छह मीटर का कपड़ा लपेटकर क्या दिखाना। हमें सिम्पल रहना चाहिए, इस तरह ओवर ड्रेस अप होना ठीक नहीं। यू नो हम लोग ओकेजनली सारीज़ पहनते हैं। यूं रोज पहनने से अच्छा नहीं लगता। सो साड़ी की जगह स्कर्ट पहना दिया गया।
दुल्हनिया को समझ आ गई, सारे घर को आधुनिकता का भूत सवार है। देर रात जागना, देर तक सोना, यहां तक कि पूजा-पाठ, अर्चना भी गांव की लड़कियों के नाम नज़र आते हैं। अब बस रोटियों को पिज़्ज़ा-बर्गर और नूडल्स में बदलना शेष था, सो वह भी हो गया। दुल्हन को पूरा का पूरा बदल डालने का श्रेय घर के हर मैम्बर को था और खुशी भी कि एक गंवार को सभ्य बना डाला। सिवाय कामवाली चंपाबाई के, एक वही दुल्हनिया को ऊपर से नीचे तक निहारा करती थी और बहुत खुश होती थी कि चलो एक तो उसकी पसंद आई इस घर में, वरना इस घर के पुराने कपड़े किसी काम नहीं आते थे।
सभ्य बनाने में आखिरी डिसिजन पतिदेव का आया कि अब तुम भी पार्टी, क्लब ज्वॉइन कर लो तो हम लोग भी पब्लिक में मुंह दिखाने के काबिल बन जाएं। सो किटी पार्टी भी ज्वॉइन करवा दी गई।
एक से बढ़कर एक आधुनिकता की मिसाल थी वहां। ऐसा नहीं था कि सब पैसे वाले घरों से थीं, मिडिल क्लास की औरतें भी इस तरह तैयार हुई थीं कि यह समझना मुश्किल था कि किस वर्ग-विशेष से हैं। देखकर लग रहा था जैसे फैशन शो में आई हैं।
हां, एक समानता नजर आई दुल्हन को, वह थी चुगलियां। यहां भी एक तर$फ कोहनी मार कर तो दूसरी तरफ आंख दबाकर किसी तीसरे की चुगली की जा रही थी। गांव में भी कुछ ऐसा ही होता था, जब औरतें साड़ी का पल्लू मुंह में दबाकर आंखों ही आंखों में या फुसफुसाकर चुगलियां कर लिया करती थीं। शायद चुगलियों का कोई वर्ग नहीं होता होगा।
आज चुगली का मुख्य केंद्र दुल्हनिया थी, सबकी आंखों में परिवार के प्रति प्रशंसा और कहीं कुछ गंवार को शामिल करने पर अटकता सा था। ‘कुछ समय तो लग ही जाएगा इसे सभ्य बनने में, आपकी तारीफ करनी पड़ेगी मिसेज़ बत्रा।’ उसकी सास को जैसे गोल्ड मैडल मिल गया हो।
आज चंपाबाई छुट्टी पर थी, मिसेज़ बत्रा की हिम्मत नहीं थी कि पानी का एक गिलास भी उठा कर पी पाएं। उन्होंने कई आवाज़ें लगाईं। मगर आधुनिकरण के नशे ने जैसे सबके देखने- सुनने-समझने की शक्ति को शून्य कर दिया था।
दुल्हन भी कान में हैडफोन घुसाए हाथ में गिलास लिए सिगरेट के लम्बे कश छोड़ रही थी और एक ही जगह पर थिरक रही थी। कानों में बजते संगीत की स्वर-लहरी दिमाग पर छा चुकी थी… इट्स माई लाइफ…
ये भी पढ़े-
इन 6 टिप्स से बच्चों का आलस्य करें दूर
बच्चों को बताएं बचत के फायदे, अपनाएं ये टिप्स
आप हमें फेसबुक , ट्विटर और यू ट्यूब चैनल पर भी फॉलो कर सकते हैं।
