तेरे हुजूर पहुंचकर है मुझको हैरानी,
तेरे जमाल को देखूं कि तुझसे बात करूं।
‘शफकत काज़मी

कितना पुरकैफ, सादा, तरबरवेज है,
हुस्न तेरा, मेरी शायरी की तरह।
‘साहिर होशियारपुरी

अर्श तक तो ले गया था साथ अपने हुस्न को,
फिर नहीं मालूम अब खुद इश्क किस मंजि़ल में है।
‘असगर गोण्डवी

तू जो चाहे कि रहे हुस्न पे मगरूर सदा,
ये गलत है, नहीं निभने के ये दस्तूर सदा।
घासीराम ‘खुशदिल

रात महफिल में तेरे हुस्न के शोले के हुजूर,
शमा के मुंह पे जो देखा तो कहीं नूर नहीं था।
मीर ‘दर्द

गर मेरे बुते-होश-रुबा को नहीं देखा,
उस देखने वाले ने खुदा को नहीं देखा।
‘दाग देहलवी’
फोटोग्राफर : नरेन्दर शर्मा
