parigrah buraai ki jad
parigrah buraai ki jad

एक बार एक भिखारी एक नगरसेठ के पास पहुँचा। वहाँ उसने सेठ भिक्षा माँगी। सेठ बोला कि धन के अतिरिक्त जो माँगो, मैं दे सकता हूँ। भिखारी बोला कि मैं आपका धनभंडार देखना चाहता हूँ। सेठ को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी।

वह उसे अपने कोषागार में ले गया। भिखारी ने कहा कि यदि आपको आपत्ति न हो तो मैं आपका धन छूकर देखना चाहता हूँ। सेठ ने उसे इसकी अनुमति दे दी। भिखारी ने उसके सारे धन और बहुमूल्य रत्नों को छू-छूकर देखा और यथास्थान वापस रखता गया। जब उसका मन भर गया तो उसने सेठ को धन्यवाद दिया और बोला कि अब मैं आपसे अधिक धनी हो गया।

सेठ ने चकित होकर पूछा कि कैसे? भिखारी ने उत्तर दिया कि जिस प्रकार तुम इस धन को देखकर, छूकर वापस रख देते हो, वैसे ही मैंने भी किया है। तुम्हें तो इसकी रक्षा में भी धन व्यय करना पड़ता है, जबकि मैं निश्चित रह सकता हूँ। यह सुनकर सेठ की आंखें खुल गईं और उसने उसी दिन से धन संग्रह करने के बजाय उसे लोकोपकार में व्यय करना शुरू कर दिया।

सारः धन का संग्रह नहीं, उपयोग बुद्धिमत्ता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)