बहुत समय पहले की बात है, सुभानपुर में एक अमीर स्त्री रहती थी। उसका नाम था चाँदतारा। चाँदतारा के पास बेशुमार दौलत थी। पर वह बिल्कुल अकेली थी। उसके कोई संतान भी नहीं थी, जिसे वह अपनी अपार दौलत सौंप जाए।
इतना धन होने के बावजूद चाँदतारा के मन में जरा भी घमंड नहीं था। दीन-दुखी और गरीब लोगों के लिए उसके मन में सच्ची हमदर्दी थी। इसीलिए बुढ़ापे में चाँदतारा अकसर यही सोचती कि, ‘अपनी यह दौलत किसे सौंपूँ, जो इसका अच्छा उपयोग करे? इससे दीन-दुखियों और गरीबों की मदद करे।’
चाँदतारा ने काफी सोचा, पर उसे अपने सवाल का जवाब नहीं मिला।
एक बार की बात है। सुभानपुर में बिल्कुल बारिश नहीं हुई। अकाल के कारण लोग दाने-दाने को मोहताज थे। ऐसे में चाँदतारा ने जगह-जगह तंबू लगवाकर खाने-पीने की चीजों के पैकेट बँटवाने शुरू कर दिए।। शर्त यह थी कि बच्चे ये पैकेट लेने आएँगे, तो उन्हें सबसे पहले पैकेट दिए जाएंगे।
अब तो तंबू में बच्चों की अच्छी-खासी भीड़ रहने लगी। कुछ पैकेट बड़े थे तो कुछ छोटे। जैसे ही एक बड़े से टोकरे में भरकर पैकेट लाए जाते, बच्चे पैकेट लूटने के लिए टूट पड़ते। पर एक छोटी सी बच्ची दूर खड़ी रहती। सारे बच्चे अपने लिए बड़े-बड़े पैकेट छाँटकर ले जाते। अंत में एक छोटा सा पैकेट बचा रहता। नन्ही बच्ची नीना चुपचाप उसी को लेकर चली जाती।
चाँदतारा कई दिनों से यह देख रही थी। उसने कभी नीना को बड़े पैकेट के लिए झगड़ते नहीं देखा।
एक दिन की बात, नीना रोज की तरह अपनी टोकरी में खाने का एक छोटा पैकेट रखकर ले गई। पर घर जाते ही जैसे ही उसकी मम्मी ने पैकेट खोला, अंदर से ढेरों हीरे-मोती निकल आए।
नीना की मम्मी ने नीना से वह पैकेट वापस कर आने को कहा। बोली, ”लगता है चाँदतारा ने गलती से यह पैकेट तुम्हें दे दिया है।”
थोड़ी ही देर में नीना दौड़ी-दौड़ी चाँदतारा के पास पहुँची। बोली, ”आपसे शायद गलती हुई है। आपने मुझे गलत पैकेट दे दिया। इसके अंदर से हीरे-मोती निकले हैं।”
चाँदतारा बोली, ”नहीं-नहीं, यह तुम्हारे सब्र का फल है। मैंने तुम्हारी जैसी भली लड़की कोई और नहीं देखी। ये हीरे-मोती रख लो। कभी संकट में तुम्हारे काम आएँगे।”
लेकिन नीना बार-बार मना कर रही थी। आखिर चाँदतारा नीना के साथ उसके घर गई। उसकी मम्मी से बोली, ”ये हीरे-मोती मेरी ओर से नीना के लिए उपहार हैं। इन्हें आप रख लीजिए। लौटाइए नहीं।”
बड़ी मुश्किल से नीना की मम्मी वे हीरे-मोती रखने को तैयार हो गईं।
चाँदतारा का नीना के लिए प्यार अब और बढ़ गया था। वह अब अकसर नीना को अपने पास बुलाकर उससे ढेरों बातें करती। पढ़ाई-लिखाई में उसकी मदद करती और कहानी-कविताओं की ढेर सारी सुंदर-सुंदर किताबें लाकर उसे पढ़ने को देती। हर काम में वह नीना को सबसे आगे रखती। नीना भी चाँदतारा के सारे काम कर दिया करती थी।
चाँदतारा का मन अब शांत था। उसने मरने से पहले वसीयत में सारी दौलत नीना के नाम कर दी। लिखा, ‘मेरी यह सारी दौलत प्यारी नीना के लिए है, जिसके मन में जरा भी लालच नहीं है। नीना भले ही गरीब घर-परिवार की है, उसका दिल सोने का है। उसके मन में सभी के लिए प्यार और हमदर्दी है। वह अपनी इच्छा से गरीबों की भलाई के लिए धन खर्च करेगी, तो मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।’
और सचमुच नीना ऐसी ही निकली। उसने प्यार और हमदर्दी से लोगों के दिलों में ऐसी जगह बना ली कि लोग उसे ‘धरती की देवी’ कहकर पुकारने लगे। आज भी उसकी नेकी के किस्से जगह-जगह सुनाई दे जाते हैं।
