चुनमुन के बहुत सारे दोस्त थे। और एक दिन तो उसकी चाचा नेहरू से भी दोस्ती हो गई। इसकी बड़ी मजेदार कहानी है।
असल में चुनमुन के हाथ में चाचा नेहरू की एक किताब थी, जो उसे पापा ने लाकर भेंट की थी। उसी किताब को पढ़ते हुए उसने चाचा नेहरू से बड़ी मीठी सी शिकायत की थी, ”चाचा नेहरू, आप बहुत अच्छे हैं, बच्चों को बहुत प्यार करते हैं और बच्चे भी आपको चाचा नेहरू कहते हैं। पर मेरी एक नन्ही-मुन्नी शिकायत है। आपने बड़ों के लिए तो इतने ढेर सारे पोथे लिखे, मोटी-मोटी किताबें लिखीं। पर हम बच्चों के लिए तो कुछ भी नहीं लिखा। मैं आपसे बहुत नाराज हूँ। इसलिए कि आपके लिखे हुए इतने बड़े-बड़े पोथे हमारी समझ में तो आते नहीं। फिर उनकी भाषा भी मुश्किल है। बच्चों के लिए तो सरल भाषा में सीधी-सीधी बातें ही लिखनी चाहिए न! तभी तो वे हमारी समझ में आएँगी। पर आप…आपने सोचा ही नहीं!”
चुनमुन जब यह कह रहा था, तो उसे लगा कि किताब के कवर पर बना चाचा का चेहरा गंभीर हो गया है।
”अरे-अरे चाचा नेहरू, मैंने दिल दुखाने वाली बातें कहीं, इसलिए आप बुरा तो नहीं मान गए!”
सुनकर चाचा नेहरू एक पल चुपचाप चुनमुन का चेहरा देखते रहे, फिर बड़े जोर से हँसे। कहा, ”चुनमुन, तुम्हारी बातें सुनकर बड़ा अच्छा लगा। तुम साफ-साफ और कितनी बढ़िया बातें कहते हो! मैंने तो जरा भी बुरा नहीं माना। बुरा भला किसलिए मानूँगा? पर बेटा चुनमुन, तुम भूल गए कि ये किताबें तब लिखी गई थीं, जब देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी। और तब ये जेल से लिखी गईं, देशवासियों का हौसला बढ़ाने के लिए। बड़े होकर तुम इन्हें पढ़ोगे। पर सुनो, बच्चों के लिए भी मेरी एक किताब है। प्रेमचंद ने उसे इतना पसंद किया कि उसका हिंदी में अनुवाद किया। किताब का नाम है—पिता के पत्र, बेटी के नाम!”
चुनमुन ने उसी दिन पापा से कहकर चाचा नेहरू की किताब मँगवा लीं, ”पिता के पत्र, बेटी के नाम।’
उसने किताब पढ़ी, तो बहुत अच्छा लगा। अरे वाह, ये तो बिल्कुल नई बातें हैं। एक नई दुनिया की बातें।
इस किताब में पिता का बेटी के प्रति प्यार तो था ही, साथ ही बेटी को दुनिया-जहान की चीजों के बारे में बताने की इच्छा भी।
चुनमुन ने उसी वक्त मन ही मन कहा, ”सॉरी चाचा नेहरू, मैं तो यों ही आपसे शिकायत कर रहा था। पर आपने तो अनमोल खजाना मुझे सौंप दिया। अब मैं समझ गया कि कुदरत की हर चीज बोलती है। बस, उसे सुनने वाले कान और समझने वाली दृष्टि चाहिए। यहाँ तक कि रास्ते में पड़ा एक मामूली पत्थर भी खुद में हजारों सालों का इतिहास छिपाए होता है। लगता है, चाचा नेहरू, आपने मुझे ही ये पत्र लिखे हैं। अपने जीवन और दुनिया की इतनी जानकारियाँ इतनी सादा भाषा में इस किताब में हैं कि मैं तो बस हैरान होकर पढ़ता जाता हूँ। साथ ही आपको मन ही मन धन्यवाद देता हूँ चाचा नेहरू, इस अनमोल खजाने के लिए! अगर यह किताब न पढ़ता, तो कितना कुछ छूट जाता। और फिर मुंशी प्रेमचंद का अनुवाद कितना बढ़िया और जोरदार है! सचमुच यह किताब तो मेरे लिए एक अनमोल उपहार है। मैं पापा को भी थैंक्स कहूँगा इसके लिए, क्योंकि उन्होंने ही मुझे यह किताब लाकर दी है।”
सुनकर चाचा नेहरू मुसकराए। बोले, ”मुझे अच्छा लगा चुनमुन कि तुम्हें इतनी पसंद आई यह किताब। मेरी खुशी इससे बढ़ गई, क्योंकि बेटी के नाम ये पत्र लिखते समय मुझे लग रहा था जैसे हर बच्चे के नाम मैंने ये चिट्ठियाँ लिखी हैं। तो मेरा सोचना ठीक था। फिर भी चुनमुन, तुम्हारी बात गलत नहीं है। आज मैं सोचता हूँ कि…काश, मैंने बच्चों के लिए कुछ और लिखा होता। कुछ ज्यादा लिखा होता, क्योंकि एक बच्चा ललककर पढ़ता है, तो कल का देश का भविष्य मुझसे बातें कर रहा होता है! आखिर तुम लोग ही तो मेरी उम्मीद के उज्ज्वल सितारे हो!”
”सच चाचा नेहरू, आप कितने अच्छे हैं। इसीलिए तो सभी बच्चे आपको प्यार से चाचा कहते हैं।” चुनमुन के मुँह से निकला।
और अब चुनमुन को लगता है, जैसे चाचा नेहरू हर वक्त उसके साथ रहते हैं। उसके दिल में रहते हैं।
