Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “मैं किसी और के साथ कैसे रह सकूँगी? किसी और के साथ सोच भी नहीं पाती ख़ुद को।”

“हाँ तो सोचना ही क्यों है? देखो, जब ज़िंदगी में कुछ समझ ना आए तो हमें कभी-कभी ख़ुद को वक़्त के पाले में डाल देना होता है।”

“क्या तुम मुझे भूल पाओगे?”

“बिल्कुल। जितनी जल्दी हो सके भूलने की कोशिश करूँगा।”

“सच में भूल सकते हो तुम मुझे?” उसने त्यौरियां चढ़ाईं।

“आसानी से तो नहीं होगा पर तुम मुझे भूल जाओगी तो कब तक तुम्हारी तस्वीर छाती से चिपका कर मजनू बना फिरूँगा?” मैंने मुस्कान के साथ कहा।

“तब तो कोई दूसरी भी ढूँढ़ ही लोगे।”

“मैं कहाँ ढूँढता हूँ किसी को? तुम्हें भी मैंने तो नहीं ढूँढ़ा। अपने आप कोई आ गई ज़िंदगी में, तो मैं उसे धक्के मार कर कैसे बाहर निकालूँ?”

“वाह! बाबा जी का खुला दरबार सजा हुआ है यहाँ तो…”

“इतना खुला भी नहीं, भक्तों को परखने के बाद ही दरवाजे खुलते हैं इस दरबार के।”

“मस्ती मत करो। सच बताओ, क्या तुम आसानी से भूल जाओगे मुझे?”

“सच सुनना है?”

“हंड्रेड परसेंट सच, बिना किसी मिलावट के।” यूँ तो मैं कोमल हसरतों के क़त्लेआम का तरफ़दार नहीं।

“तुम्हें सब पता होता है पहले ही, कि क्या होने वाला है?” उसने थोड़ा रुक कर कहा।

“सब तो नहीं, पर इतना पता है कि जब तुम अपना कोई रास्ता बना सकती हो; तो तुम्हें इस बात की कोई फ़िक्र नहीं करनी चाहिए कि, मैं किन रास्तों पर, किन विचारों के बोझ या हल्केपन से बढ़ रहा हूँ। तुम्हारे साथ क्या होने वाला है, वह भी बताऊँ?”

“हाँ, प्लीज़ बताओ…”

“ओके डियर, सुनो। बरबादी का जो रास्ता तुमने चुना है, उसमें छः महीने तो तुम्हारे ज़ेवर-सज़ावट, रस्मो-रिवाज़, हनीमून, मायके-ससुराल, ननद-देवर, सास-बहू, वीडियो-फोटो, जान-पहचान, आने-जाने में ही बीत जाने वाले हैं। तुम सबकी नज़रों में जासूसी और जज किये जाने का भी सामान रहोगी और तुम्हारे ऊपर रस्सी पर करतब दिखाने वाले नट की तरह दबाव होगा। मुझे पता है कि, शादी का कारोबार और ख़्वाब फैलाए ही इसलिए गए हैं, ताकि लड़कियों को गुलाम बनाकर रखा जा सके और परिवार में असमानता कायम रखी जा सके। आगे के दिनों में तुम्हें यह समझ विकसित कर लेनी होगी कि, तुम्हारा संसार तुम्हारा पति है। उससे प्यार करने और पटाकर रखने की भरपूर कोशिशें कर लेना तुम। इस बीच कभी-कभार तुम्हें मेरी याद रूलायेगी, पर तुम समझ जाओगी कि तुम्हारा असली जीवन क्या है। प्रेग्नेंसी की खुशियों से जितना तुम स्पेशल महसूस कर पाओगी उतने ही आसपास के नातेदार। दो सालों में शायद तुम्हें पूर्णता देने वाला तुम्हारा हिस्सा दुनिया में हो, जिसमें डूब कर तुम सारी दुनिया को एक तरफ़ और अपने अंश को एक तरफ़ समझने की नई भावनाओं को जन्म दे सको; ममत्व के नशे में डूबे रह सको। तुम्हें लगता है, जीवन की इस उठा-पटक में मुझे उतनी जगह दे पाओगी, जितना मैं तरस रहा होऊँगा? शायद मेरी तड़प और बढ़ चुकी होगी तुमसे दूर और तुम्हारे जीवन में कोई जगह ना रह जाने से…

तुम्हें भूलना आसान नहीं होगा, मुझे पता है मेरे बहुत से कमज़ोर पलों में मुझे आँसुओं से भी लड़ना होगा। इंसान बग़ैर भावनाओं का होता तो अच्छा होता। कभी तुमसे बात होगी तो विरह की कुछ पीड़ाओं को शायद तुम्हें बता पाऊँ, इससे तुम्हें तुम्हारे उस ईगो या सही शब्दों में कहूँ तो आत्मसम्मान को ख़ुराक मिल पाएगी कि मैंने तुम्हें खिलौना नहीं समझा…”

“बाप रे बाप…लाते कहाँ से हो तुम ये सब बातें? कुछ नहीं होने वाला ऐसा। तुम सोच भी कैसे सकते हो?”

“हा…हा…मैंने तो मस्ती ही की थी। ऐसा-वैसा कुछ सोचा नहीं। किताबें बहुत पढ़ी थी, बस तुम्हारा चेहरा पढ़ने का मन हुआ…”

“क्या लिखा देखा?”

“यही कि तुम दुनिया की वह हसीन शै हो, जिसे साथ लिए हुए ही मुझे जीना होगा…मुआह…” मैंने उसके माथे पर चूमा।

उसने भी प्रत्युत्तर में मेरे गालों पर मुझे चूमा और उस चुम्बन से अनुभव में आया वह, जो सत्य हो जाना था।

यकायक ही मैंने अपने अंदर झांकने का सख्त फ़ैसला लिया, मेरा दिल पत्थर तो नहीं हो रहा या कि, ख़ून पम्प करने की मशीन भर तो नहीं रह गया है।