एक सिद्धस्त महात्मा जी के पास एक व्यक्ति आया। महात्मा जी को प्रणाम कर बोला- “महात्मा जी मैं संसार की सबसे बड़ी गंदगी के बारे में पूछना चाहता हूँ। आप मेरा संशय दूर करें। और सबसे बड़ी गंदी चीज क्या है बतायें।”
महात्मा जी उसकी बातों पर तनिक मुस्काये और कहा- “मैं तुम्हारा संशय, तुम्ही से दूर करवाऊंगा। लेकिन तुम्हें इसके लिए मेरा छोटा-सा काम करना होगा।” वो तैयार हो गया। तो महात्मा जी बोले, “जाओ, दुनियाँ में जो सबसे गंदी वस्तु तुम्हें नजर आये उसे मेरे पास लेके आओ।”
वह व्यक्ति गया और तमाम गंदी से गंदी चीज खोजा, कुछ न मिला तो हताश हो स्वयं के मल को एक लकड़ी में लपेट कर ले आया। कहा, “महाराज यह इन्सान का मल है, मुझे इससे ज्यादा गंदी वस्तु और कोई नहीं लगी।”
महात्मा जी ने उसी “मल” से पूछा- “तू संसार में सबसे गंदा कैसे हो गया?” तो मल बोला- “स्वामी जी! मैं जब तक इस इन्सानी जिस्म से दूर था तब तक तो गंदा नहीं था। मुझे अन्नदेव कहकर ये इन्सान पूजता था। मैं जैसे ही इसके शरीर में पहुँचा और बाहर निकाला गया तो मल रूप में मुझे गंदगी का खिताब दे दिया गया। स्वामीजी दुनिया में इस इन्सान से गंदा दूसरा कोई नहीं। इसकी संगत मात्र से ही गंदगी का दाग मुझ अन्न देव को लगा।” उस गंदे मल की यह बात जब उस व्यक्ति ने सुना तो उसका सारा संशय जाता रहा। वो भली-भांति जान गया की, इन्सान से गंदा, दुनियाँ में दूसरा कोई नहीं।।
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