anubhav badi cheez
anubhav badi cheez

एक युवक एक प्रसिद्ध तलवारबाज के पास पहुँचा और उससे तलवारबाजी सीखने की इच्छा प्रकट की। तलवारबाज ने उसे अपना शिष्य बना लिया। युवक ने कई साल तक उसके पास रहकर तलवार चलाना सीखा और अपनी लगन व मेहनत के बल पर इसमें भली-भांति पारंगत हो गया। कुछ मुकाबले जीतने के बाद उसे अपनी कला पर अभिमान हो गया।

जब भी अभ्यास के दौरान उसका गुरु उसे उसकी गलतियां बताता, वह बहुत अपमानित महसूस करता। एक दिन उसने गुरु से कहा कि मैं आपसे भी अच्छी तलवारबाजी करने लगा हूँ, इसलिए आपको मुझसे ईर्ष्या होती है। गुरु ने कहा कि मुझे तुमसे ईर्ष्या क्यों होगी। मैं तो तुम्हें सबसे अच्छा तलवारबाज बनाना चाहता हूँ। शिष्य ने कहा कि इसकी आवश्यकता नहीं है।

आप मुझसे मुकाबला करके देखिए, आपको पता लग जाएगा कि अच्छा तलवारबाज कौन है। गुरु ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। निर्धारित तिथि पर मुकाबला शुरु हुआ। कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे के वारों की काट करते रहे, लेकिन फिर एकाएक गुरु ने पैंतरा बदल कर वार किया और शिष्य संतुलन खोकर जमीन पर जा गिरा। गुरु ने उसकी गर्दन पर तलवार रख दी। शिष्य ने अपनी हार स्वीकार कर ली और बोला कि आपने इतने सालों में यह दांव मुझे क्यों नहीं सिखाया। गुरु बोला कि यह कोई दांव नहीं है, बल्कि अनुभव है जो अभिमान को परास्त करने में मदद करता है।

सारः अज्ञान से अधिक अभिमान मनुष्य की पराजय का कारण बनता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)