पुराने समय में ईरान में एक न्यायप्रिय बादशाह हुआ था उसका नाम नौशेरखां था। इंसाफ पसंदगी और आचरण की शुद्धता के लिए वह प्रसिद्ध था। एक बार की बात है, वह जंगल में शिकार खेलने के लिए निकला। रात होने को थी अतः वहीं पड़ाव डालना पड़ा। भोजन की तैयारी होने लगी। रसोइये ने देखा कि सामग्री के साथ नमक नहीं है। उसने सोचा कि नमक की कमी से बादशाह बहुत नाराज होगा इसलिए वह पास के गाँव में नमक माँगने जाने लगा। लेकिन तब तक बादशाह को बात का पता चल चुका था।
बादशाह के बुलाकर पूछने पर रसोइये ने पास के गाँव से नमक लेने जाने की बात कही। बादशाह ने रसोइये को पास बुलाकर कहा- जितना भी नमक गाँव से लाओ, उसका मूल्य जरूर चुकाकर आना। रसोइये ने बादशाह की ओर देखा और कहा- हुजूर नमक जैसी मामूली चीज के कौन पैसे लेगा। बादशाह ने कहा- फिर भी तुम पैसे जरूर देकर आना। रसोइये ने विनम्रतापूर्वक कहा- हुजूर नमक देने वाले को इससे विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, बल्कि उसे तो खुशी होगी कि बादशाह सलामत की सेवा का अवसर मिल रहा है
इस पर नौशेरखां ने गुस्से में कहा- नमक देने वाले को शायद फर्क न पड़े, लेकिन बादशाह की एक गलत बात का दरबारियों पर गलत असर पड़ेगा। याद रखो, हुकूमत करने वाले को छोटी-छोटी गलतियों से सावधान रहना चाहिए। रसोइया चुप हो गया और ‘हुक्म की तामील होगी’ कहता हुआ चला गया और सोचने लगा कि यहाँ जंगल में कोई देखने-सुनने वाला नहीं है, फिर भी बादशाह अपने आचरण की शुद्धता के प्रति कितने सजग एवं कठोर हैं। और इस बात से उसका अपने बादशाह के प्रति सम्मान बढ़ गया।
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