उम्र के इस पड़ाव में भी ये दोनों तोमर दादियां पूरे गांव के नौजवानों में राइफल शूटिंग की अलख जगा रही हैं। यहीं नहीं चंद्रो दादी ने अपनी लगन और मेहनत से वर्ल्ड कि सबसे बुजुर्ग शार्प शूटर होने का रिकॉर्ड भी बनाया है। वहीं प्रकाशी दादी ने भी प्रतियोगिताओं करीब 200 मेडल जीतें हैं। उनके चार बेटें और बेटियां हैं। उनकी बेटी सीमा तोमर और पोती रूबी तोमर अंतरराष्ट्रीय शूटर हैं।
सफलता के गाड़े झंडे
चंद्रों दादी ने भारतीय शूटिंग्स क्षेत्र में कोच रहते हुए राष्ट्रीय व जिला स्तर पर स्वर्ण पदक जीतें हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा पूरे हिन्दुस्तान समेत दुनिया भर में मनवा लिया है। आज चंद्रो अपने आसपास के इलाकों के अलावा दूर के क्षेत्रों के बच्चों को भी ट्रेनिंग देती हैं। पटना और अमेठी के जिन 40-40 बच्चों को उन्होंने ट्रेनिंग दी, उनमें से कई आज नेशनल लेवल पर खेल रहे हैं।
वहीं प्रकाशी दादी ने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है और करीब 200 मेडल जीत चुकी है| उन्होंने भी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में लगभग 25 मेडल जीतकर रिकॉर्ड कायम किया। वह कोयंबटूर में सिल्वर मेडल, और चेन्नई में सिल्वर मेडल जीत चुकीं हैं। 2009 में सोनीपत में हुए चौधरी चरण सिंह मेमोरियल प्रतिभा सम्मान समारोह में उन्हें सोनिया गांधी ने सम्मानित किया। हालही में मेरठ में उन्हें स्त्री शक्ति सम्मान मिला। यही नहीं उन्हें भार की 100 वुमन अचीवर्स में चुना गया है।

जोहड़ी रायफल कल्ब में निशानेबाजी सिखाती चंद्रो दादी – तस्वीर फेसबुक वॉल से
कैसी बनी शूटर दादी ?
प्रकाशी जी बताती हें कि जब उनकी जेठानी चंद्रो 2001 में अपनी पोती को गांव में ही शूटिंग सिखाने के लिए जाती थीं। एक दिन पोती ने उनसे कहा, दादी आप भी निशाना लगाओ। चंद्रो ने दो-तीन निशाने बिल्कुल सटीक लगाए। कुछ समय बाद चंद्रो ने उन्हें भी निशाना लगाने को कहा। फिर क्या था पोती के कोच ने कहा, “आप दोनों देवारानी-जेठानी का निशाना अचूक हैं। आपको निशानेबाजी सिखनी चाहिए। बस तभी से उन्होंने पिस्टल थाम ली और निकल पड़ी अपनी मंजिल की ओर।
60 साल की उम्र में थामी पिस्टल
प्रकाशी जी बताती हैं कि उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कई संघर्षों का सामना किया। लेकिन उस राह में उनकी असम्भव की सीमा तब ही खत्म हो गई थी जब उन्होंने 60 साल की उम्र में हाथों में पिस्टल थामी थी। और इसके बाद मेहनत और लग्न ने चंद्रो और प्रकाशी दादी को शूटर दादी के नाम की पहचान दी।
लोगों के तानों की हुईं शिकार
प्रकाशी जी बताती हैं कि जब वे दोनों शूटिंग सीख रही थी तब उन्हें समाज के तानों का भी सामना करना पड़ा। गांववालें मजाक भी उड़ाते थे कहते थे कि, “बुढ़िया इस उम्र में कारगिल जाएगी क्या?” लेकिन दोनों ने किसी की बात नहीं सुनी। उनसे से ज्यादा तानें उनकी जेठानी चंद्रो तोमर को मिले। लोग कहते थे कि जेठानी को तो नवाबों का शौक था ही संग देवरानी को भी लगा लिया। घर में मालूम चला तो विरोध भी हुआ पर उनकी दिलचस्पी को देखते हुए सभी ने सहयोग किया जिसका नतीजा आज सारी दुनिया देख रही है। उनका लक्ष्य हमेशा शूटिंग ही रहा। दोनों ही 25 मी. तक का निशाना लगा चुकी हैं।
दिल्ली के डीआईजी को चटाई थी धूल
प्रकाशी दादी बताती हैं कि साल 2001 में दिल्ली में एक शूटिंग का एक कॉम्पिटीशन आयोजित हुआ। इसमें उन्होंने दिल्ली के डीआईजी को धूल चटाकर गोल्ड मेडल जीता। डीआईजी साहब गांव की इस महिला से हारने पर इतने शर्मिंदा हुए कि उन्होंने पुरस्कार वितरण समारोह का इंतजार भी नहीं किया और वहां से चले गये।

प्रकाशी तोमर (बाएं) और चंद्रो तोमर (दाएं) – तस्वीर फेसबुक वॉल से
गांव की मिट्टी में जमे हैं पांव
चंद्रो और प्रकाशी दादी ने भले ही अपनी निशानेबाजी से कई राज्यों और देशों की सीमा पार की है लेकिन उनके संस्कृति, उनकी वेशभूषा, उनकी भाषा में किसी भी तरह का बदलाव नहीं है। वे आज भी गांव की मिट्टी से जुड़ी हैं। आसाधारण प्रतिभा होने के बावजूद भी उनकी जीवनचर्या साधारण है। दोनों गांव में बैलगाड़ी चलाने के साथ घर का काम भी करती हैं। चंद्रो आज भी अपने घर का सारा काम खुद करती हैं। दोनों देवरानी-जेठानी के बीच में काफी प्यार है।
हर जन्म मोहे बिटिया ही कीजौ
प्रतिभावान दादी प्रकाशी का कहना है कि आज की महिलाएं पुरुषों से किसी भी काम में पीछे नहीं हैं। बस उनके हौसलों को उड़ान मिलनी चाहिए। निशानेबाजी का अधिकार सिर्फ पुरुषों को नहीं है बल्कि महिलाएं उनसे कई बेहतर हैं इस मामले में। सभी लड़कियों को आत्मनिर्भर बनना चाहिए। “मैं तो ईश्वर से यहीं दुआ करूंगी कि वह मुझे हर जन्म एक नारी के रूप में ही दुनिया में भेजे”।
महिला दिवस पर लें शपथ
प्रकाशी जी कहती हैं कि इस महिला दिवस हर लड़की, हर महिला को आत्मनिर्भर, सशक्त, बेबाक बनने की शपथ लेनी चाहिए। इस सृष्टि में नारी ईश्वर का वरदान है उसका सम्मान होना जरूरी है।
