मां बनने का एहसास हर महिला के लिए सुखद होता है। लेकिन यदि किसी कारण से एक महिला मां के सुख से वंचित रह जाए तो उसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि, कंसीव न कर पाने के कई कारण होते हैं लेकिन यह एक महिला के जीवन को बेहद मुश्किल और दुखद बना देता है। दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है। जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है तो समाज उसे हीन भावना से देखने लगता है। इस कारण से एक महिला को लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ती है जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। ऐसी महिलाएं उम्मीद करती हैं कि लोग उनकी स्थित और भावनाओं को समझेंगे। परिवार और दोस्तों से बात करके उन्हें कुछ हद तक अच्छा महसूस होता है इसलिए ऐसे समय में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचें क्योंकि गर्भवती महिला या बच्चों को देखकर आप डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं।

null
null

असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी) के क्षेत्र में हुई प्रगति के साथ, इनफर्टिलिटी से संबंधित कई समस्याओं का इलाज संभव है। इस प्रकार इलाज की मदद से अब कई महिलाएं संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं।

महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कारण

  • पेल्विक पैथलॉजी (ओवरियन, ट्यूबल, गर्भाशय), यूट्रीन फाइब्रॉयड, एडिनोमायोसिस, कंजेनिटल यूट्रीन एनमेलीज़, यूट्रीन अढ़ेशन, यूट्रीन पॉलिप्स, क्रोनिक एंडोमेट्रैटिस, ट्यूबल ब्लॉकेज, ओव्युलेट्री डिस्फंक्शन, पीसीओएस आदि बीमारयां।
  • अधिक उम्र होने पर महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता खराब होने लगती है।
  • कामकाजी महिलाएं गर्भधारण को टालती रहती हैं लेकिन लोग उसे बांझ समझने लगते हैं।
  • जीवनशैली बदलाव जैसे कि धूम्रपान, शराब, तंबाकू का सेवन, शारीरिक गतिविधियों में कमी, नींद की कमी, खराब डाइट, मोटापा और तनाव आदि इनफर्टिलिटी को बढ़ावा देते हैं।
  • प्रदूषण और व्यावसायिक खतरा
  • आनुवांशिक विकार- क्रोमोसोमल असामान्यताएं, अपरिचित इनफर्टिलिटी, पुरुषों में समस्या, इनफर्टिलिटी का पारिवारिक इतिहास, असामान्य समस्याएं आदि।

एआरटी- इनफर्टिलिटी वाली कई महिलाओं के लिए वरदान

इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल कि आई वी एफ विशेषज्ञ डा.सागरिका अग्रवाल , बताती हैं कि एआरटी तकनीक आईवीएफ यानी इन विटरो फर्टिलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अण्डों व शुक्राणुओं को लैब में फर्टिलाइज किया जाता है। लैब में महिला के स्वस्थ्य अंडे को उसके पति के स्पर्म के साथ मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है, जिसे तैयार होने में कम से कम 3-4 दिनों का समय लगता है। भ्रूण तैयार होने के बाद उसे महिला के गर्भ में इंप्लान्ट कर दिया जाता है। कुछ ही दिनों में महिला प्रेग्नेंट हो जाती है। इस तकनीक को आईसीएसआई (इंट्रा साइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन), ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, लेज़र असिस्टेड हैचिंग, टीईएसई (टेस्टीकुलर स्पर्म एक्सट्रेक्शन) आदि के साथ पूरा किया जाता है।आईवीएफ बंद ट्यूब को खोलने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे कमज़ोर ओवरी, पीसीओसी, पीओआई, एंडोमेट्रियोसिस, यूट्रीन फाइब्रॉयड्स, एडीनोमायोसिस, खराब सीमेन, प्रार्थमिक या माध्यमिक इनफर्टिलिटी, अपरिचित फर्टिलिटी आदि वाले लोगों को भी फायदा मिलता है।

null
null

इनफर्टिलिटी के लिए केवल महिला जिम्मेदार नहीं होती

लोगों में एक धारणा बनी हुई है कि यदि कोई कपल कंसीव नहीं कर पा रहा है तो समस्या महिला में है। जबकि असल में देखा जाए तो 40-50% मामलों में कंसीव न करने पाने का जिम्मेदार पुरुष पार्टनर होता है। अक्सर इस बात का पता तब चलता है जब जांच के बाद महिला में कोई कमी नहीं दिखती है। जब डॉक्टर पुरुष पार्टनर को टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं तो समस्या पुरुष पार्टनर में निकलती है।जब कोई महिला पहली बार जांच के लिए जाती है तो या तो वह अकेली होती है या उसके साथ परिवार का कोई अन्य सदस्य होता है। दुर्भाग्य से पुरुष पार्टनर जांच के लिए उसके साथ नहीं जाता है। वहीं यह भी देखा गया है कि पुरुष अपने सीमेन का सैंपल चुपचाप अकेले में देने जाता है जिससे वह इस बात को अन्य लोगों से छिपा सके।कपल को यह समझना चाहिए कि जांच के लिए उन दोनों का मौजूद होना जरूरी है विशेषकर आइवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान। आईवीएफ केवल जरूरी जांचों को महत्व देता है जिससे यह तकनीक लोगों को मंहगी न लगे और वे आसानी से इसका लाभ उठा सकें।आवीएफ में की गई जांचे इनफर्टिलिटी के कारण की पहचान करती हैं जिसकी मदद से डॉक्टर एक उचित इलाज का चयन कर पाता है। इसके लिए ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड की मदद से ओवरी की जांच की जाती है, यूट्रीन की जांच अल्ट्रासाउंड और हिस्टीरोस्कोपी से की जाती है और सीमेन की जांच की जाती है।

null
null

यह भी पढ़ें

सैनिटाइज करें अपना बाथरूम

किशोर और कोविड-19 की चुनौतियां

क्या कोविड-19 के संक्रमण के फैलते हुए सुरक्षित है सेक्चुअल इंटरकोर्स