Summary : परम सुंदरी की जान है हीरो-हीरोइन
कमाल की लोकेशन पर फिल्माई परम सुंदरी को देखना अच्छा लगता है, कुछ कमियां हैं लेकिन उन्हें अनदेखा भी कर सकते हैं।
Param Sundari Review: कभी-कभी फिल्मों में जोरदार कहानी की जरूरत नहीं होती। खूबसूरत लोकेशन, आकर्षक सितारे और हल्का-फुल्का मनोरंजन भी काम कर जाता है। ‘परम सुंदरी’ कोई महान फिल्म नहीं है, बेहद औसत है, बस इतना दम रखती है सिनेमाघर तक खींच लाए। सिद्धार्थ मल्होत्रा और जाह्नवी कपूर की जोड़ी इस फिल्म की जान है। दोनों के स्क्रीन पर आते ही ताजगी महसूस होती है। इस जोड़ी में कमाल की चमक और चुलबुलापन है, जो फिल्म को खींचने के लिए काफी है।
परम सुंदरी में कोई तनाव नहीं
कहानी तो एक लाइन में खत्म होने वाली है। दो अजनबी अचानक मिलते हैं, कुछ प्यारे संवादों से नजदीक आते हैं और धीरे-धीरे प्रेम की ओर बढ़ते हैं। यह सरलता दर्शकों को मीठी लगती है, तो कभी थोड़ी नकली भी। फिल्म की शुरुआत बेहद हल्की है, यह कोई तनाव नहीं देती। अंत तक आप पहुंचते हैं तो कमियां हावी होने लगती है और लगता है कि दोहराव हो रहा है।
परम सुंदरी है बेहद खूबसूरत
यह तो है कि फिल्म बेहद खूबसूरत है। इसे देख लेंगे तो केरल जाए बिना नहीं रह पाएंगे। बारिश से भीगी सड़कें, बैकवॉटर पर बाइक राइड्स, पुराने चर्च और त्योहारों की झलक… आप भूल नहीं सकते। यह सब देखने वालों को एक अलग ही माहौल में ले जाता है। निर्देशक ने केरल की संस्कृति, खाना, परंपराएं और लोककला जैसे कथकली व कलारिपयट्टु को भी कहानी में पिरोने की कोशिश की है, इसी से यह असली लगने लगती है। माहौल तो पूरा बना है यहां। फिल्म में उत्तर भारत और दक्षिण भारत के सिनेमा-संगीत प्रेम पर भी कमाल के मजाक देखने को मिलते हैं। यह सब मिलकर फिल्म को मजेदार बनाते हैं।
बेहद सुंदर कपल

सिद्धार्थ मल्होत्रा का अंदाज सहज और लुक कमाल है। जाह्नवी कपूर ने मलयाली लहजे में संवाद बोलने की मेहनत की है, लेकिन गुंजाइश रह गई। मलयाली भाषी इससे खुश नहीं हैं। कई जगह यह बनावटी है। जोड़ी की कैमिस्ट्री कमाल है, लेकिन कुछ जगह इसमें गहराई या नयापन कम पड़ गया लगता है।
स्क्रिप्ट में हिम्मत नहीं दिखी
फिल्म की सबसे दिक्कत है इसकी कहानी और पटकथा में साहस की कमी। एक मजबूत रोमांटिक-कॉमेडी बनने की क्षमता होने के बावजूद यह बार-बार बॉलीवुड की पुरानी आदतों और घिसे-पिटे विचारों में उलझ जाती है। हीरो-हीरोइन को अपनी रफ्तार से बढ़ने देने के बजाय, बीच-बीच में सह-कलाकारों पर फोकस खिसकता रहता है। इस कारण ही परम के दोस्त का किरदार और सुंदरी की छोटी बहन (इनायत वर्मा) कई सीन में बाजी मार ले जाते हैं।
एक अहम मुद्दा छूट गया
कॉस्ट्यूम के मामले में भी फिल्म थोड़ी कमजोर है। सिद्धार्थ जितने शानदार दिखते हैं, जाह्नवी की ड्रेसिंग को भी बढ़िया बनाया जा सकता था। खासकर तब, जब उन्हें मलयाली लड़की के रूप में पेश किया गया है। दिलचस्प यह है कि फिल्म ने आज की पीढ़ी की आदतों पर भी हल्की चोट की है कि कैसे लोग हर फैसला एआई और एल्गोरिद्म पर छोड़ देते हैं और न दिल की सुनते हैं, न दिमाग की। यह विचार कहानी में एक गंभीर लेयर एड कर सकता था, लेकिन उसे सतही अंदाज में ही छूकर आगे बढ़ा दिया गया।
फुरसत हो तो देख आओ
संगीत, हल्के-फुल्के मजाक, परिवार संग बैठकर देखने लायक सीन, इसे काफी नंबर दिला देते हैं। दिक्कत तब हो जाती है कि देखने वाले बार-बार कुछ नया होने का इंतजार ही करते रह जाते हैं, जो अंत तक होता ही है। ऐसे में ‘परम सुंदरी’ एक ऐसी फिल्म बनकर रह जाती जो अधूरा अहसास छोड़ जाती है।

