खान, जब भी हम यह शब्द सुनते है तो हिन्दी सिनेमा के तीन चेहरे ही याद आते है, शाहरुख, सलमान और आमिर खान। एक खान ऐसा खान भी था, जिसने अपने जबरदस्त अभिनय के बलबूते पर लोगों के दिल में बेहद खास जगह बनाई, वह भी खामोशी से। जब 29 अप्रैल 2020 को उनके निधन की खबर आई तो लोगों को भरोसा ही नहीं हुआ, लेकिन वह खामोशी इतना शोर मचा गई कि क्या खास, क्या आम सब स्तब्ध और दुःखी थे। जो व्यक्ति अपनी आंखों से दुनिया को मंत्र मुग्ध कर देता था वह उन्हीं लोगों की आंखों में आसूं देकर चला गया। लोगों को रह-रह कर उनके वे आखिरी शब्द जो फिल्म इंग्लिश मीडियम फिल्म के प्रमोशन के लिए बोले थे, उनके कानों में गूंजने लगे। उनका ऊंट एक ओर करवट तो लेे गया पर दुनिया में एक अलग ही आयाम स्थापित करके।
इरफान का जन्म 7 जनवरी 1967 में वीरों के भूमि राजस्थान राज्य के टोंक जिले के खजुरिया ग्राम में हुआ था। उनका पूरा नाम साहबजादा इरफ़ान अली खान था। उनके पिता टायर के बिजनस में थे। उनकी स्कूली शिक्षा और कॉलेज की पढ़ाई जयपुर में हुई थी। बचपन में क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन पैसों के अभाव में यह हो ना सका। उनकी किस्मत में तो कुछ अलग ही लिखा था। उसके बाद उन्होंने एनएसडी से अभिनय की शिक्षा ली और सिनेमा के क्षेत्र में अपने कदम रख दिए। उनकी पहली फिल्म सलाम बॉम्बे थी जो 1988 में रिलीज हुई थी। यह उनका किसी भी पर्दे पर पहला काम था, इसके बाद उन्होंने छोटे पर्दे पर भी अपनी धाक जमाना शुरू किया उनका पहला धारावाहिक चाणक्य था। बाद में चंद्रकांता, द ग्रेट मराठा आदि सीरियल में भी काम किया। वे ऐसे कलाकार थे जिन्होंने बॉलीवुड में ही नहीं हॉलीवुड में भी अपने अभिनय का डंका बजाया। उन्होंने स्लमडॉग मिलेनियर, लाइफ ऑफ पाई, अमेजिंग स्पाइडर मैन और इन्फर्नो जैसी कई और नामचीन हॉलीवुड फ़िल्मों में भी काम किया। ऐसा नहीं है कि इरफान को मिली शोहरत सिर्फ उनके भाग्य के भरोसे मिली हो, उसके पीछे कई वर्षों की मेहनत और संघर्ष की कहानी है।उनकी मेहनत और संघर्ष की झलक उनके व्यक्तित्व में दिखती थी। इरफान का सदैव मुस्कराता चेहरा, इतनी बड़ी सफलताओं के बावजूद वह विनम्रता और काम के प्रति उनका समर्पण अद्भुत था। इरफान को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी मिले। इरफान ने साल 2004 में फिल्म हासिल में सर्वश्रेष्ठ खलनायक के लिए फिल्म फेयर अवार्ड, 2008 में फिल्म लाइफ इन मेट्रो के लिए सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड, 2012 में फिल्म पान सिंह तोमर के लिए सर्वश्रे्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी अपने नाम किया। इरफान को साल 2011 में पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
फ़िल्मों में उनका कैरियर सलाम बॉम्बे से शुरू हुआ और इंग्लिश मीडियम पर जाकर रुका। इंग्लिश मीडियम उनकी आखिरी फ़िल्म साबित हुई। इस बीच उन्होंने हासिल, लाइफ इन मेट्रो, मकबूल, रोग, पान सिंह तोमर, हिन्दी मीडियम, लाइफ ऑफ पाई जैसी कालजयी फ़िल्मों में उत्कृष्ट काम किया। इरफान ने अपने शानदार और जानदार ऐक्टिंग से एक-एक किरदार को जीवंत कर दिया। पान सिंह तोमर का किरदार जिस शिद्दत से निभाया वह एक मिसाल है। इरफान ने हर तरह के किरदार निभाए, जिनमें से कुछ में वह खलनायक, सह नायक और मुख्य नायक का किरदार निभाया। फिल्म बिल्लू फिल्म में वह मुख्य नायक थे और शाहरुख खान उनके साहयक अभिनेता थे। कुछ फिल्मों में उन्होंने अतिथि अभिनेता का भी काम किया, लेकिन कुछ सेकेंड्स के रोल में भी दर्शकों की सीटी और प्यार दोनों बटोर के ले गए। इरफान को वर्ष 2018 में अपनी बीमारी के बारे में पता चला और उसके इलाज़ के लिए लंदन गए, वे न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर नाम की बीमारी से ग्रसित थे। 2019 में पुनः भारत लौटे और इंग्लिश मीडियम की शूटिंग पूरी की।
इरफ़ान खान का पूरा जीवन आदर्श था, वह मेहनत, सादगी, ईमानदारी, संघर्ष, समर्पण के अतुलनीय मिश्रण थे। फिल्म इंडस्ट्री में कई लोगों का मानना है कि इस इंडस्ट्री में बने रहने के लिए विवादों में रहना जरूरी है, लेकिन शायद ही कोई किस्सा होगा जिसके लिए इरफ़ान खान को कोई याद करेगा। उनका पूरा कैरियर इन सब बातों से बहुत दूर था। कहते है कि ऊपर वाले को भी अपने लिए अच्छे लोगों की जरूरत होती है, इसलिए उन्होंने इस corona काल में उम्दा और बेहतरीन कलाकार छीन लिया। इरफ़ान बॉलीवुड में एक ऐसा शून्य छोड़ कर गए है कि शायद ही कोई उसे भर पाए। किसी ने कहा था ज़िन्दगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए और इस बात को चरितार्थ करते हुए 53 वर्ष की आयु में इरफान जैसा अद्भुत कलाकार लोगों के दिलों में अमर होकर दुनिया को अलविदा कह गया।
