स्वर्णिम किरणें सर्वत्र बिखर चुकी थीं। कार्तिक माह की धूप सृष्टि को अपने आगोश में लेने का प्रयत्न करती, वृक्षों के पत्तों पर ढंकते छपते कोहरे को चीर कर बमश्किल बाहर आती दिख रही थी। धूप जब भी कोहरे को चीर कर इस प्रकार बाहर आती है तो इसका स्पर्श अत्यन्त सुखद लगता है। कुछ […]
