Overview: केदारनाथ को कहा जाता हैं देवताओं का पूजास्थल
केदारनाथ धाम भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र स्थल है, जिसकी उत्पत्ति से जुड़ी अनेक धार्मिक कथाएं हैं। इसे देवताओं का पूजा स्थल भी माना जाता है। आइए जानते हैं केदारनाथ कैसे बना शिव का धाम
Kedarnath Temple History: हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी चारधाम यात्रा की शुभ शुरुआत हो चुकी है। श्रद्धालुओं के जत्थे उत्तराखंड के ऊँचे पर्वतीय मार्गों से होकर चार प्रमुख तीर्थ स्थलों की ओर रवाना हो रहे हैं। इन चार धामों में एक प्रमुख तीर्थ है केदारनाथ, जो भगवान शिव को समर्पित है। चलिए जानते हैं केदारनाथ के बारे में विस्तार से कि कैसे केदारनाथ शिव का धाम बना और क्या विशेषताएं वहां की है?
केदारनाथ कैसे बना शिव का धाम
एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के पास गए। नारद मुनि ज्ञानी और धर्म के मार्गदर्शक थे। उन्होंने भगवान विष्णु से कहा, “प्रभु! आप तो हमेशा क्षीर सागर में शेषनाग पर विश्राम करते हैं और माता लक्ष्मी आपकी सेवा में रहती हैं। यह जीवनशैली धरती के प्राणियों के लिए कोई प्रेरणा नहीं बनती। संसार के लोग तो परिश्रम और तपस्या से ही आगे बढ़ सकते हैं।”
नारद मुनि की बात भगवान विष्णु के मन को छू गई। उन्होंने सोचा कि उन्हें भी एक ऐसा जीवन अपनाना चाहिए जिससे लोग कुछ सीख सकें। इसलिए उन्होंने संसार के कल्याण के लिए तपस्या करने का निश्चय किया और तपस्थली की खोज में हिमालय की ओर चल पड़े।
घूमते-घूमते भगवान विष्णु को हिमालय क्षेत्र में बद्रीनाथ नाम की एक पवित्र और शांत जगह मिली। यह स्थान उस समय भगवान शिव और माता पार्वती का निवास स्थान था। भगवान विष्णु समझ गए कि सीधे वहां जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह किसी और का निवास है। अतः उन्होंने एक युक्ति सोची – वे एक मासूम बालक का रूप धारण कर वहीं आकर घर के बाहर बैठ गए।
जब माता पार्वती ने उस बालक को देखा तो उनके भीतर की ममता उमड़ पड़ी। वे उसे अपने घर ले आईं और गोद में ले लिया। शिवजी को तुरंत आभास हो गया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है, यह स्वयं विष्णु हैं जो किसी उद्देश्य से आए हैं। उन्होंने माता पार्वती से यह बात कही, लेकिन माता अपने वात्सल्य भाव में थीं और नहीं मानीं।
फिर शिवजी और माता पार्वती कुछ समय के लिए वन में चले गए। जब वे लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका घर अंदर से बंद था – अर्थात विष्णु जी ने उसमें प्रवेश कर लिया था। यह देखकर पार्वती जी हैरान रह गईं, लेकिन शिवजी शांत थे। वे सब समझ चुके थे कि यह भगवान विष्णु की लीला है। तब माता पार्वती ने शिवजी से पूछा – “अब क्या करें?” शिव ने उन्हें समझाया कि अब इस स्थान को छोड़ देना चाहिए।
इस प्रकार शिव-पार्वती ने बद्रीनाथ को भगवान विष्णु के लिए छोड़ दिया और वे आगे हिमालय की ओर निकल पड़े। चलते-चलते वे एक ऊँचाई पर पहुंचे, जो चारों ओर से पर्वतों और बर्फ से ढका था। यह जगह अत्यंत शांत और पवित्र थी। उन्होंने वहीं पर अपना नया निवास बनाया और वही स्थान “केदारनाथ” कहलाया। इस तरह से केदारनाथ धाम भगवान शिव का प्रमुख निवास स्थल बन गया और आज भी यह स्थान उनकी महिमा और तपस्या का प्रतीक है।
केदारनाथ मंदिर की विशेषताएँ
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह प्राचीन मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और पंच केदार का भी प्रमुख केंद्र है। माना जाता है कि पांडवों के पौत्र राजा जनमेजय ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। बाद में आदि शंकराचार्य ने इसका पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया।
मंदिर तीन प्रमुख भागों में विभाजित है
गर्भगृह – जहाँ स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है।
मध्य भाग – यहाँ शिवलिंग के पास माँ पार्वती का श्री यंत्र तथा गणेश जी की आकृति स्थित है।
सभा मंडप – जहाँ श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
यहां एक अद्भुत बात यह है कि शिवलिंग पर प्राकृतिक यज्ञोपवीत दिखाई देता है, और पीछे की ओर स्फटिक की माला भी स्वयं बनी हुई प्रतीत होती है। मंदिर के अंदर चार विशाल स्तंभ हैं, जिन्हें चारों वेदों का प्रतीक माना जाता है। विशेष मान्यता है कि इन स्तंभों के पीछे से परिक्रमा करना अत्यंत पुण्यदायक होता है।
केदारनाथ को कहा जाता हैं देवताओं का पूजास्थल
केदारनाथ मंदिर की एक और अद्भुत विशेषता है, उसका अलौकिक स्वरूप तब भी जब यह छह महीने तक मनुष्यों के लिए बंद रहता है। भारी बर्फबारी के चलते जब मंदिर के कपाट शीतकाल में बंद हो जाते हैं, तो भी ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के गर्भगृह में दीपक स्वयं जलता रहता है।
कुछ स्थानीय निवासी यहां तक कहते हैं कि सर्दियों में मंदिर बंद होने के बावजूद, अंदर से घंटियों की ध्वनि सुनाई देती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब मंदिर मानवों के लिए बंद होता है, तो उन छह महीनों में देवता स्वयं वहां पूजा करते हैं। इसीलिए केदारनाथ को सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि देवताओं का पूजा-स्थल भी माना जाता है।
